‘भारत में महिलाएं और बालिकाएं अभी भी संघर्षरत’

Edited By ,Updated: 10 Mar, 2021 03:02 AM

women and girls still struggling in india

भारत में महिलाएं और बालिकाएं अभी भी संघर्षरत हैं, उनका दमन हो रहा है, उनके साथ दुव्र्यवहार हो रहा है और उनके साथ भेदभाव हो रहा है और यही भारत की लाखों महिलाआें का भाग्य बन गया है। महिलाआें के साथ दुव्र्यवहार, बलात्कार, हत्या की खबरें हर दिन सुर्खियों

भारत में महिलाएं और बालिकाएं अभी भी संघर्षरत हैं, उनका दमन हो रहा है, उनके साथ दुव्र्यवहार हो रहा है और उनके साथ भेदभाव हो रहा है और यही भारत की लाखों महिलाआें का भाग्य बन गया है। महिलाआें के साथ दुव्र्यवहार, बलात्कार, हत्या की खबरें हर दिन सुर्खियों में रहती हैं। 

प्रतिदिन, प्रति मिनट देश के किसी न किसी भाग में निर्भया, कठुआ, उन्नाव, मुजफ्फरनगर, तेलंगाना, हाथरस जैसी घटनाएं होती रहती हैं। हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां पर बहुआें को केवल इसलिए जला दिया जाता है कि वे कम दहेज लेकर आई हैं। प्रत्येक 77 मिनट में ऐसी एक हत्या होती है। बालिका भू्रण हत्या केवल इसलिए कर दी जाती है क्योंकि वह लड़की है। 

फिर भी तमाशा जारी है और हमने सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। सरकार ने अनेक समारोह आयोजित किए और महिला योद्धाआें की सराहना की। लोकसभा अध्यक्ष ने महिला पत्रकारों के लिए दोपहर भोज का आयोजन किया। उच्चतम न्यायालय ने एक 14 वर्षीय गर्भवती बलात्कारी पीड़िता के मामले को सुनते हुए कहा हम महिलाआें को सर्वोच्च सम्मान देते हैं। न्यायालय इस बालिका का भ्रूण गिराने की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। 

कई विमानपत्तनों पर ए.टी.एस. प्रचालन का कार्य पूर्णत: महिला दल को सौंपा गया है। महाराष्ट्र में प्रत्येक जिले में केवल महिलाआें के लिए पांच कोरोना वैक्सीनेशन केन्द्र स्थापित किए गए तो किसी ने कहा कि हम महिलाआें के लिए समान अवसर देने की दिशा में कार्य कर रहे हैं और इस दिशा में हम विभिन्न क्षेत्रों में 25-30 प्रतिशत महिलाकर्मियों की भर्ती कर रहे हैं। तो दूसरी आेर पंजाब की महिलाएं टीकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में भाग ले रही हैं। 

यदि हम भारत में महिलाआें की स्थिति के पैमाने को संसद को बनाएं तो आशा की किरण नहीं दिखती है। वर्तमान लोक सभा में महिला सदस्यों की सर्वाधिक संख्या है किंतु वह केवल 14 प्रतिशत है जो 24 प्रतिशत के विश्व औसत से कहीं कम है। वर्ष 1950 में संसद में 5 प्रतिशत महिला सदस्य थीं और आज 69 वर्ष बाद उनकी संख्या में केवल 9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह बताता है कि इस क्षेत्र में वृद्धि कितनी धीमी रही। यही नहीं इस मामले में भारत अफगानिस्तान 27$ 7 प्रतिशत, पाकिस्तान 20$ 6 प्रतिशत और सऊदी अरब 19$ 9 प्रतिशत जैसे देशों से भी कहीं पीछे है। 

त्रिपुरा, नागालैंड, अरुणांचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य से लोकसभा में एक भी महिला सदस्य नहीं है। वस्तुत: नागालैंड से अभी तक कोई महिला विधायक नहीं चुनी गई है तथा लगभग 8000 उम्मीदवारों में से केवल 724 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने 54 अर्थात 13 प्रतिशत, भाजपा ने 53 अर्थात 12 प्रतिशत, मायावती की बसपा ने 24, ममता की तूणमूल कांग्रेस ने 23, पटनायक की बीजद ने 33 प्रतिशत, माकपा ने 10, भाकपा ने 4 और पवार की राकांपा से एक महिला ने चुनाव लड़ा। 222 महिलाआें ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। चार ट्रांसजैंडर उम्मीदवारों ने भी चुनाव लड़ा जबकि केजरीवाल की आप ने एक ट्रांसजैंडर उम्मीदवार को मैदान में उतारा। 

विधान सभाआें में स्थिति और भी खराब है। उनकी शैक्षिक स्थिति भी खराब है। 232 उम्मीदवार अर्थात 32 प्रतिशत ने अपनी शैक्षिक योग्यता कक्षा 5 से 12वीं पास तक दर्शाई। 37 उम्मीदवारों ने कहा कि वे केवल साक्षर हैं। 26 उम्मीदवार अशिक्षित निरक्षर थे जबकि शेष स्नातक थे। इसके अलावा आज देश में केवल कुछ महिला नेता हैं। सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, मायावती आदि। इंदिरा गांधी और जयललिता का देहांत हो चुका है। 

स्वतंत्रता संग्राम में भी हमारे देश में सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी, अरुणा आसफ अली, दुर्गा बाई देशमुख, सावित्री फूले जैसी स्वतंत्रता सेनानियों ने पुरुष स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ी। जिन्होंने न केवल पितृ सत्तात्मक समाज को नजरंदाज किया अपितु महिला सशक्तिकरण के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया। किंतु स्वतंत्रता के बाद भारत में महिलाएं दोयम दर्जे की बन गई हैं जहां पर न केवल नेता अपितु महिलाएं ही अवांछित और उपेक्षित बन गई हैं। 

कुल मिलाकर हमारा समाज अभी भी पितृ सत्तात्मक सोच रखता है जिसके चलते महिलाएं और बालिकाएं अभी भी एक असुरक्षित वातावरण में रहती हैं जहां पर उन्हें सैक्स की वस्तु के रूप में पुरुषों की यौन पिपासा को बुझाने के रूप में देखा जाता है। उन्हें हर स्थान पर समझौता करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। 

हमारे नेताआें को महिलाआें को बंधनों से मुक्त करने में मदद करने के लिए आगे आना होगा और उन्हें खुले वातावरण में उनका उचित स्थान दिलाना होगा। महिलाआें के लिए आरक्षण से इस मामले में सहायता मिलेगी। महिलाओं के अधिकारों के संबंध में क्रांतिकारी बदलाव की आवश्यकता है। केवल बातें करने से काम नहीं चलेगा। विश्व के कल्याण का तब तक कोई उपाय नहीं है जब तक महिलाआें की स्थिति में सुधार नहीं आता है।-पूनम आई. कौशिश 
 

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