Edited By ,Updated: 10 Oct, 2020 03:19 AM
इस आधुनिक युग में भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक एवं सम्मान देने का केवल दावा किया जाता है, किंतु वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया की लगभग 35 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी प्रकार की हिंसा का...
इस आधुनिक युग में भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक एवं सम्मान देने का केवल दावा किया जाता है, किंतु वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया की लगभग 35 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी प्रकार की हिंसा का शिकार हो रही हैं। किंतु सोशल मीडिया पर दुनिया की 60 प्रतिशत महिलाओं के साथ ऑनलाइन हिंसा होती है। अब महिलाओं को केवल अंधेरी सुनसान सड़कों में गुजरने से ही डर नहीं लगता, बल्कि उन्हें सोशल मीडिया से भी उतना ही डर लगता है। यह हिंसा भले ही शारीरिक न हो, किंतु मानसिक रूप से वह महिलाओं को उतना ही उत्पीड़ित करती है।
प्लेनेट इंटरनैशनल संस्था की एक नई रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 60 प्रतिशत महिलाएं सोशल मीडिया पर किसी न किसी प्रकार की हिंसा का सामना करती हैं। इसी कारण 20 प्रतिशत महिलाओं को अपना सोशल मीडिया अकाऊंट बंद कर देना पड़ता है। कोई महिला जब सोशल मीडिया पर पोस्ट करती है,या अपनी तस्वीरें डालती है, तो कई बार उसे मजबूर होकर अपनी पोस्ट और तस्वीरें हटानी पड़ती हैं। इसीलिए ज्यादातर महिलाएं अपने सोशल मीडिया अकाऊंट को प्राइवेट कर देती हैं।
भारत समेत 22 देशों की चौदह हजार से ज्यादा महिलाओं के बीच एक सर्वे किया गया। इस सर्वे में शामिल महिलाओं की उम्र 15 से 25 वर्ष के बीच थी। इस सर्वे के मुताबिक 39 प्रतिशत महिलाओं के साथ ऑनलाइन हिंसा की घटनाएं फेसबुक पर, 23 प्रतिशत घटनाएं इंस्टाग्राम पर और 14 प्रतिशत घटनाएं व्हाट्सएप पर होती हैं। यानी पहले नंबर पर फेसबुक, दूसरे नंबर पर इंस्टाग्राम और तीसरे नंबर पर व्हाट्सएप है। जबकि स्नैपचैट पर 10 प्रतिशत, ट्विटर पर 9 प्रतिशत और टिक टॉक पर 6 प्रतिशत ऑनलाइन हिंसा महिलाओं को झेलनी पड़ती है। सोशल मीडिया का कोई भी प्लेटफार्म महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है।
इसी वर्ष दिल्ली और आसपास के शहरों में किए गए एक सर्वे के अनुसार, इंटरनैट पर महिलाओं के साथ होने वाली ऑनलाइन हिंसा के मामले 36 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। जबकि ऑनलाइन हिंसा के मामले में सजा की दर 40 प्रतिशत से घटकर 25 प्रतिशत रह गई है। यानी अगर सौ पुरुष सोशल मीडिया पर ऑनलाइन हिंसा करते हैं तो उनमें से केवल 25 को ही सजा होगी और वह भी जब उन सौ पुरुषों के खिलाफ मुकद्दमा होगा। जबकि महिला के साथ रेप के मामलों में सजा की दर 27 प्रतिशत है। यानी ऑनलाइन ङ्क्षहसा का शिकार होने वाली महिलाओं की स्थिति, असल जिंदगी में हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं से भी बदतर है। यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है।
वर्चुअल प्लेटफार्म पर होने वाली हिंसा भी असल जिंदगी में होने वाली हिंसा जैसी ही खतरनाक होती है। इसी ऑनलाइन हिंसा और छेडख़ानी के कारण फेसबुक पर 74 प्रतिशत महिलाओं को किसी न किसी को ब्लॉक करना पड़ता है। इंस्टाग्राम पर भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के सामने ब्लॉक करने की स्थिति अधिक उत्पन्न होती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का मकसद वैसे तो एक दूसरे से संपर्क स्थापित करना और अपने विचारों को एक दूसरे तक पहुंचाना है। किंतु अब सोशल मीडिया की छेडख़ानी और ऑनलाइन हिंसा की वजह से महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अपने सोशल मीडिया अकाऊंट को प्राइवेट रखना अधिक पसंद करती हैं क्योंकि प्राइवेट रखने में ही उनकी भलाई है।
महिलाओं के प्रति असुरक्षा और भेदभाव की जो स्थिति हमारे असली समाज में है, वही स्थिति अब सोशल मीडिया की इस आभासी दुनिया में भी दिखाई दे रही है। कुल मिलाकर महिलाओं के साथ ईव टीजिंग (महिलाओं से छेड़छाड़) जैसी घटनाएं अब केवल घर के बाहर ही नहीं होतीं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी महिलाओं को उसी प्रकार सताया जाता है। यह वर्चुअल दुनिया भी भेदभाव से परे नहीं है। सोशल मीडिया पर होने वाला यह भेदभाव यहीं तक सीमित नहीं है।-रंजना मिश्रा