महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना जरूरी

Edited By ,Updated: 21 Aug, 2020 04:57 AM

women need to be financially independent

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर भारतीय महिलाओं का सशक्तिकरण किया है। आज भी स्वतंत्र होने के लिए भारतीय महिलाएं वित्तीय तौर पर पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं हैं। यदि महिलाओं के सामान्य जीवन पर नजर डालें तो शर्म आती है। भारत में आज भी यदि महिलाएं अपनी...

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर भारतीय महिलाओं का सशक्तिकरण किया है। आज भी स्वतंत्र होने के लिए भारतीय महिलाएं वित्तीय तौर पर पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं हैं। यदि महिलाओं के सामान्य जीवन पर नजर डालें तो शर्म आती है। भारत में आज भी यदि महिलाएं अपनी पारिवारिक सम्पत्ति में से किसी कारणवश अपना अधिकार मांगती हैं तो उनमें से 80 प्रतिशत महिलाओं को उनके पारिवारिक सदस्यों तथा मित्रों द्वारा अपमानित किया जाता है। 

भारत में यही माना जाता है कि यदि एक बार बेटी का विवाह हो जाए तो उसे आवश्यक तौर पर परिवार की सम्पत्ति में से अपना सारा हिस्सा छोड़ देना चाहिए। माता-पिता यह महसूस करते हैं कि उन्होंने बेटी को दहेज में जो कुछ भी दिया है वह उसके लिए पर्याप्त है। आधिकारिक मालिक तब स्वत: सचल सम्पत्ति अथवा अचल सम्पत्तियों का उत्तराधिकारी बन जाता है। देशभर में महिलाओं के लिए सुरक्षा, खुशी ऐसी चीजें हैं जिनके लिए आपको यह सोच कर संतुष्ट होना पड़ता है कि भगवान की यही इच्छा होगी। दूसरे शब्दों में आपके भाग्य में अपने अधिकारों के लिए लडऩा नहीं लिखा है। आपके ससुराल वाले आपको जिन भी हालातों में रखें उसी में खुश रहें। 

मुझे पूरा यकीन है कि हर दूसरी औरत यह सोच कर सब कुछ चुपचाप सहन कर लेती है कि उसके माता-पिता को किसी तरह की शॄमदगी न उठानी पड़े। यह भी दुख की बात है कि जिन परिवारों की महिलाओं को विभिन्न परिस्थितियों में कष्ट सहने पड़ते हैं उन परिवारों को भी चुप रहने के लिए कहा जाता है क्योंकि यदि वे अधिकारों के लिए आवाज उठाते हैं अथवा लड़ाई लड़ते हैं तो उससे ही संबंधित परिवार को परेशानी अथवा शॄमदगी उठानी पड़ती है। 

बेटे के जन्म लेने से ही उसका यह जन्म सिद्ध अधिकार बन जाता है कि वह घर में लड़कियों से श्रेष्ठ है। लड़कियों को झुक कर रहना तथा छोटे भाइयों की सेवा करना सिखाया जाता है, जैसे कि वे किसी अन्य ग्रह से आए हों। इससे परिवार के पुरुष सदस्यों में एक तरह की श्रेष्ठता की भावना पैदा होती है। दुर्भाग्य से बच्चों के दिमाग में यह बात इस तरह से भर दी जाती है कि बड़े होने पर भी वे इससे बाहर नहीं निकल सकते और उनके लिए समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। यह मुख्य कारणों में से एक है कि भाई तथा पति आमतौर पर यह मान लेते हैं कि वे महिलाओं पर हुक्म चला सकते हैं और उनके साथ भावनात्मक और कई बार शारीरिक रूप से भी दुव्र्यवहार कर सकते हैं। 

किसी महिला की वित्तीय स्वतंत्रता तथा सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कि सभी सम्पत्तियां बेटों तथा बेटियों के बीच बराबर बांटी जाएंगी, बेटियों में एक नया आत्मविश्वास भरेगा और वे अपने अधिकारों पर कानूनी रूप से हक जता सकेंगी। इससे कुछ हद तक भाइयों को जबरन सारी सम्पत्ति पर अपना हक जताने से भी रोका जा सकेगा। लड़की के मन में बचपन से ही यह बात गहराई से भर दी जाती है कि यदि विवाह के बाद उन्हें अपने भाइयों का सहयोग चाहिए तो उन्हें सम्पत्ति में से अपने हिस्से के लिए दावा या लड़ाई नहीं करनी चाहिए।  यह एक तरह की भावनात्मक ब्लैकमेल है जो भारतीय परिवारों में बहुत सामान्य बात है। 

मैं अपनी बहुत-सी मित्रों को जानती हूं जिन्होंने इसी कारण से समस्याओं से बचने के लिए माता-पिता की सम्पत्ति में अपने पूरे अधिकार  छोड़ दिए। मगर फिर भी जरूरत के समय उन्हें अपने भाइयों का वित्तीय सहयोग नहीं मिला। मेरा पक्का मानना है कि जहां तक बच्चों की बात है अभिभावक उनमें बांटो और राज करो की भावना भर कर कई तरह की गलतफहमियां पैदा करते हैं। 

बेशक किसी समय इससे उनका लाभ होता होगा लेकिन दीर्घकाल में उनका भाई-बहनों में वह विश्वास कायम नहीं रह जाता जिसकी वे आशा करते हैं। मैं जानती हूं कि हमारे समाज में हमसे पुरुषों का सामना करने की आशा नहीं की जाती। हमसे यह भी आशा की जाती है कि हमारी प्रवृत्ति केवल देने वाली हो। यदि आपको घर अथवा कार्य स्थल पर भावनात्मक या शारीरिक रूप से प्रताडि़त किया जाता है तो आपसे चुप रहने की आशा की जाती है। अन्यथा आप पर ही संबंधित व्यक्ति द्वारा बुरे बर्ताव का आरोप लगा दिया जाता है। 

आजकल के बच्चे कहीं अधिक परिपक्व तथा विश्वासपूर्ण हैं तथा लड़कियां अब चुपचाप यातनाएं सहन करने वाली नहीं हैं। हमारी अधिकतर लड़कियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने तथा धमकाए जाने से बचने के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। सभी पारिवारिक सदस्यों से प्रार्थना है कि वे अपने घर की बेटियों की शिक्षा सुनिश्चित करने के अतिरिक्त उन्हें यह भी सिखाएं कि ‘लाज शर्म एक औरत का गहना है’, कि आप हर मामले में पुरुषों से श्रेष्ठ हैं। अगर आप हमें लक्ष्मी मानते हैं तो हमारा आदर करें...कंजक की पूजा भी करते हो और फिर रेप भी।  

पेट में ही मार देते हो, हम आपको जन्म दें, दूध पिलाकर बड़ा करें और  अपना हक तक अदालत से लें। सेवा करें हम, गालियां खाएं हम दिन-रात और मर्द लोगों की रोज रेप की खबरें आती हैं। आपने किसी बुजुर्ग महिला को बाहर फैंके जाते सुना होगा, बहनों, बेटियों, पत्नियों को रोज प्रताडि़त किया  जाता है मगर अब महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए और उनके दिमाग में यह भरा जाए कि जो उनका है उसके लिए लडऩे में कोई शर्म नहीं। 

यदि आप तलाकशुदा हैं तो यह आपकी गलती है, यदि आप एक सफल करियर वाली महिला हैं तो आपने ऊपर तक पहुंचने के लिए जरूर अपने जिस्म का सौदा किया होगा। वाह! हम महिलाएं आपको जन्म देती हैं, जब महिलाएं जन्म लेती हैं तो उन्हें लक्ष्मी कहा जाता है।

मगर कई समाजों में जब महिला मासिक धर्म के चक्र में आती है तो उसे अछूत बना दिया जाता है। हम महिलाएं आपको अपना दूध पिलाती हैं और यदि बलात्कार हो जाए तो उसमें हमारी ही गलती निकाली जाती है। तब कोई भी हमसे शादी करने के लिए आगे नहीं आता है। मगर अंतत: यदि आप दुर्गा हैं तथा अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ती हैं तो आपको डायन बना दिया जाता है। इसके बावजूद हम महिलाएं धैर्यपूर्वक अपने माता-पिता की देख-रेख तथा उनसे प्रेम करती हैं क्योंकि विवाह करवाने के बाद बेटा तो गायब हो जाता है। 

ऐसी स्थितियों से समयबद्ध तरीके से निपटने के लिए विशेष अदालतें तथा विशेष महिला अधिकारी होनी चाहिएं अन्यथा कानून अपना काम नहीं कर पाएगा। महिलाएं एक से दूसरी जगह तक भागती रहेंगी और जो भी कुछ उनके पास है उसे वकीलों तथा सरकारी अधिकारियों को गंवा देंगी। यहां तक कि हमारे आज के समाज में भी गलती हमेशा महिला की होती है, अपने भाइयों के साथ लडऩा केवल एक उत्पीडऩ होगा।-देवी एम. चेरियन

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