शी-बाइडेन में ताइवान पर नहीं बनी बात

Edited By ,Updated: 29 Nov, 2021 04:14 AM

xi biden did not talk about taiwan

लम्बे समय से अपेक्षित अमरीका-चीन के बीच आभासी तकनीक के जरिए 3 घंटे तक बातचीत हुई। इस बातचीत में हालांकि ताइवान मुद्दे पर कोई सहमति नहीं बनी क्योंकि चीन ताइवान को अपने देश

लम्बे समय से अपेक्षित अमरीका-चीन के बीच आभासी तकनीक के जरिए 3 घंटे तक बातचीत हुई। इस बातचीत में हालांकि ताइवान मुद्दे पर कोई सहमति नहीं बनी क्योंकि चीन ताइवान को अपने देश का एक प्रांत मानता है, जिसे वह जरूरत पडऩे पर जोर जबरदस्ती से हथिया कर रहेगा। 

वहीं अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ताइवान की स्वाधीनता और सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। इस बातचीत के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि वे एक चीन नीति का पालन जरूर करते हैं लेकिन ताइवान जलडमरू मध्य क्षेत्र में किसी एक देश द्वारा भौगोलिक या राजनीतिक सीमाओं को बदलने या अशांत बनाने की कोशिश का विरोध करेंगे। हालांकि उन्होंने ताइवान का नाम नहीं लिया। 

चीन के आक्रामक तेवर बातचीत के दौरान भी जारी रहे। शी जिनपिंग ने भी अमरीका का नाम लिए बिना कहा कि अगर दुनिया के किसी भी देश ने चीन के अंदरूनी मामलों में दखल देने की कोशिश की तो वह देश आग से खेलेगा। शी ने कहा कि चीन का एकीकरण चीनी जनता की इच्छा है और वह ताइवान के साथ अपना विलय शांतिपूर्ण तरीके से चाहता है। शी ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर ताइवान ने लाल रेखा पार की तो पेइचिंग निर्णायक कदम उठाएगा। 

बाइडेन की चिंता शिनच्यांग, तिब्बत और हांगकांग को लेकर थी, साथ ही चीन द्वारा इन जगहों पर मानवाधिकारों के हनन का मामला भी बातचीत का विषय बना। बाइडेन ने इन मुद्दों पर अमरीकी चिंता को शी के सामने जाहिर किया लेकिन शी जिनपिंग ने सीधे और सपाट लहजे में अमरीका को चीन के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दे डाली। 

चीन के सरकारी मीडिया सी.सी.टी.वी. ने कहा कि शी ने बाइडेन के साथ कई मुद्दों पर बातचीत की जिनमें ताइवान, लोकतंत्र और मानवाधिकार, व्यापार, सुरक्षित ऊर्जा, पर्यावरण परिवर्तन और सामुदायिक स्वास्थ्य शामिल रहे। इसके अलावा अफगानिस्तान, ईरान और कोरियाई प्रायद्वीप पर भी चर्चा हुई। इस बातचीत के बाद अमरीका ने जहां अपना सहयोग ताइवान के लिए दिखाया, वहीं चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने कहा कि बाइडेन के साथ वार्ता स्पष्ट, सफल, रचनात्मक और आशावादी रही। 

दूसरी तरफ व्हाइट हाऊस की तरफ से बयान जारी कर मीडिया को बताया गया कि बाइडेन ने अमरीका की प्राथमिकताएं, उसके इरादों को चीन के सामने बिना लाग-लपेट के रखा। इस वार्ता के बाद हालांकि चीनी उप विदेश मंत्री सिये फंग ने चीनी मीडिया को बताया कि बातचीत सकारात्मक रही और इसमें 3 सिद्धांतों, 4 प्राथमिकताओं, 2 क्षेत्रों पर सर्वसम्मति बनी तथा एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर चीन-अमरीका संबंधों पर बातचीत हुई। 

इस वार्ता में हालांकि चीन ने आपसी सम्मान, सहयोग, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की बात जरूर की लेकिन ताइवान को लेकर चीन के जो तेवर हैं उसे देखते हुए साफ है कि वह ताइवान पर अपना कब्जा करके मानेगा और उसमें अमरीका या किसी दूसरे देश का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा। इसके अलावा तकनीक, अर्थव्यवस्था, ऊर्जा समेत जलवायु बदलाव और गर्म होती धरती पर भी बात हुई लेकिन दोनों देशों में ताइवान पर सहमति नहीं बन सकी। 

चीन और अमरीका दोनों के लिए ताइवान का मुद्दा हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। 1972, 1979 और 1982 में अमरीका ने एक चीन और ताइवान को उसका हिस्सा माना था, लेकिन बाइडेन का ताइवान को किसी भी बाहरी आक्रमण के विरुद्ध सहयोग की बात दोहराना यह बताता है कि भले ही चीन अपनी बात पर अड़ा रहे लेकिन अमरीका चीन को ताइवान पर मनमानी नहीं करने देगा। 

इस बातचीत के दौरान अमरीकी पक्ष से ताइवान के बारे में जो बातें सामने आई हैं उनसे साफ हो जाता है कि चीन ने जो बातें इस संदर्भ में जारी की थीं वे सिर्फ प्रोपेगंडा बनकर रह गई हैं। अमरीकी कांग्रेस ने वर्ष 1979 में जो ताइवान रिलेशन एक्ट पास किया था, उसके अनुसार अमरीका और ताइवान के लोगों के बीच आधिकारिक तौर पर पर्याप्त लेकिन गैर राजनयिक संबंध जारी रहेंगे। अमरीका और ताइवान के संबंधों पर छह सिद्धांत हैं। ये सिद्धांत वर्ष 1982 में अमरीका द्वारा जारी किए गए थे जो यह बताते हैं कि अमरीका हर हाल में ताइवान का समर्थन जारी रखेगा भले ही दोनों देशों के बीच अब आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। 

14 नवम्बर को अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने वांग यी से फोन पर करीब 90 मिनट तक ताइवान मुद्दे पर बात की और चीन द्वारा ताइवान पर सैन्य, राजनयिक, आर्थिक दबाव बनाने पर अपनी चिंता जताते हुए कहा कि उसे ताइवान के साथ सकारात्मक बात की पहल करनी चाहिए, ताकि ताइवान जलडमरू मध्य क्षेत्र में शांति बनी रहे। 

चीन एक तरफ ताइवान पर अपना कब्जा जमाना चाहता है, साथ ही धमकी भरे अंदाज में दूसरे देशों को इससे दूर रहने को कहता है। चीन चाहे कितने राऊंड की बात अमरीका से कर ले लेकिन वह अपना दावा ताइवान पर कभी नहीं छोड़ेगा। ताइवान को चीन के चंगुल से बचाने के लिए वैश्विक शक्तियों को एकजुट होकर चीन पर आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य दबाव बनाना होगा नहीं तो निरंकुश, तानाशाह चीन न सिर्फ ताइवान, बल्कि पूरे दक्षिण चीन सागर के साथ अपने समुद्री पड़ोसियों की जमीनों पर भी अपना कब्जा जमा लेगा।

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