Edited By ,Updated: 13 Oct, 2020 02:06 AM
यह ‘‘लंदन से दिल्ली आए हैं दो यौम के लिए
यह जहमतें उठाएं फकत कौम के लिए’’
महान व्यंग्यकार अकबर इलाहाबादी का
यह ‘‘लंदन से दिल्ली आए हैं दो यौम के लिए
यह जहमतें उठाएं फकत कौम के लिए’’
महान व्यंग्यकार अकबर इलाहाबादी का वरिष्ठ आगा खान पर उपहास है, 20वीं शताब्दी के शुरू होने पर भारतीय राजनीति में आगा खान छाए रहे थे। समाजवादी पार्टी (सपा) को देखना भी उसी तरह मुश्किल है, जैसे आगा खान के लिए था। मगर अकबर इलाहाबादी के छंद उस नेता के लिए लागू होते हैं, जिसने एक बार गोमती पर आग लगाने का वायदा किया था। अखिलेश की यात्रा पीछे की ओर मुड़ी हुई है, आगा खान से भिन्न वह लंदन की ओर यात्रा पर हैं।
मेरे इस आलेख के लिखने तक अखिलेश तथा उनका परिवार लंदन के वाशिंगटन होटल में ही ठहरा हुआ था, जहां से वह किसानों का आंदोलन, हाथरस कांड, कोविड-19 लॉकडाऊन को देख रहे थे। समाजवादी पार्टी के युवराज चुनावी पराजयों का एक दार्शनिक दृष्टिकोण देख चुके हैं, ऐसा प्रतीत होता है तथा वह सी.बी.आई., प्रवर्तन निदेशालय और इसी तरह की एजैंसियों के डर से छिपे हुए लगते हैं।
ऐसी भी अटकलबाजियां हैं कि लंदन में अखिलेश विजय माल्या, मेहुल चोकसी, नीरव मोदी, ललित मोदी तथा इन जैसे अनेकों के चक्र में अपने आपको पाए बैठे हैं। ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है कि अखिलेश एक आर्थिक अपराधी होने के नाते भागे हुए हैं। मगर लखनऊ में ऐसी अफवाहें रोजाना चल रही हैं। सपा कैडर विशेष तौर पर इस बात से नाराज है कि न तो संस्थापक मुलायम सिंह यादव और न ही अध्यक्ष अखिलेश 4 अक्तूबर को पार्टी की 28वीं वर्षगांठ पर उपस्थित थे।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) नेता मायावती के भय की स्थिति उच्च स्तर पर है, जब से नोटबंदी के दौरान उनकी लूट उजागर हुई है। इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो अजय मोहन बिष्ट से रूप बदल कर और कुमाऊं के निष्कलंक ठाकुर होने के बाद गोरखनाथ मठ के भगवा चोले में महंत बने। उन्होंने अपनी मूल पहचान जो एक ठाकुर परिवार की है, उसे पकड़ रखा है। इसके चलते अन्य ऊंची जातियों की भौंहें तन गई हैं। आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह ने एक सर्वे का उल्लेख करते हुए योगी पर जातीय पक्षपात करने का आरोप लगाया। उन्होंने सरकार में अधिकारियों की नियुक्ति में पक्षपात किया। संजय सिंह के अनुसार बोर्ड में शामिल किए गए लोगों में से 64 प्रतिशत ठाकुर ही थे। इससे संजय सिंह को न केवल मानहानि झेलनी पड़ी बल्कि अन्य 14 मामले पार्टी के सहयोगियों पर मढ़ दिए गए।
क्या योगी आदित्यनाथ द्वारा की गई सहज गलतियों ने उन्हें चुनावी तौर पर आलोचनीय बना दिया है? नवम्बर के पहले सप्ताह में 7 विधानसभा सीटों का उपचुनाव ऐसी बातों को खोजने का मौका प्रदान करेगा। बिहार विधानसभा चुनावों के साथ यू.पी. की बातें मेल खाती हैं जहां पर लोजपा नेता रामविलास पासवान की मौत के बाद अनिश्चितताएं बरकरार हैं। बिहार में पासवान एक मार्गदर्शक थे। उनकी मौत के बाद राज्य में सब कुछ अस्थिर हो सकता है।
जिस ढंग से योगी प्रशासन ठोकर खा रहा है, उससे यह लगता है कि उन्हें बुरी तरह परामर्श दिया गया है। यह भी निश्चित है कि यदि उन्हें परामर्श दिया गया है तो योगी में इसका प्रतिरोध करने की शक्ति भी है। क्या इस तरह की कार्यप्रणाली नागपुर तथा यू.पी. में सत्ता केंद्र में योगी को लाडला साबित करेगी। लखनऊ में उनके उदय को देखते हुए योगी कुछ पथ प्रदर्शक साबित होंगे। उन्होंने मार्च 2017 में 403 में से 324 सीटें जीती थीं। आर.एस.एस.-भाजपा हाईकमान ने मुख्यमंत्री के तौर पर मनोज सिन्हा पर अपना भरोसा जताया था। मगर योगी ने अपने आपको बिल्कुल फिट करार दिया, जिस तरह से वह उत्तर प्रदेश की गद्दी पर काबिज हुए, इस बात से कई लोग नाराज हैं तथा योगी के लडख़ड़ाने का इंतजार कर रहे हैं।
सपा में कुछ लोग अखिलेश की उदासीनता से थक चुके हैं। 2013 में सपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन था जिसने अपने सहयोगियों को डबल क्रास किया। आखिर कांग्रेस ने ऐसा क्यों किया? कांग्रेस अपने आपको पुनर्जीवित करने के लिए स्थिर नहीं कर पा रही। 2017 का चुनाव नि:संदेह विपक्ष के लिए एक बड़ी पराजय था। मगर भाजपा के लिए काफी कुछ चुनावी छलकपट भी था। चुनावी घपले की सूची को रेखांकित किया गया मगर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने आगे बढऩे से इंकार कर दिया। उन्होंने पाया कि यह एक विवादास्पद मुद्दा है। ठाकुरों को छोड़ कर योगी आदित्यनाथ ने प्रत्येक वर्ग जिसमें मुसलमान, दलित, ओ.बी.सी. शामिल हैं, को विकास दूबे की घटना के बाद अलग-थलग कर दिया है। यू.पी. में ब्राह्मणों को अलग-थलग कर आप जीत हासिल नहीं कर सकते।-सईद नकवी