बैंकों के 4 लाख करोड़ और हो सकते हैं NPA

Edited By Punjab Kesari,Updated: 31 Oct, 2017 11:17 AM

4 lakh crores of banks and npas may be

लगभग 8 लाख करोड़ रुपए के एन.पी.ए. से जूझ रहे बैंकों के लिए अच्छी खबर नहीं है। पावर सैक्टर को दिया गया लगभग 4 लाख करोड़ रुपए का कर्जा एन.पी.ए. हो सकता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि लगभग 51,000 मैगावाट कैपेसिटी के पावर प्लांट बंद पड़े हैं। इतना ही नहीं,...

नई दिल्ली: लगभग 8 लाख करोड़ रुपए के एन.पी.ए. से जूझ रहे बैंकों के लिए अच्छी खबर नहीं है। पावर सैक्टर को दिया गया लगभग 4 लाख करोड़ रुपए का कर्जा एन.पी.ए. हो सकता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि लगभग 51,000 मैगावाट कैपेसिटी के पावर प्लांट बंद पड़े हैं। इतना ही नहीं, 23,000 मैगावाट के ऐसे प्लांट भी हैं जो अंडर कंस्ट्रक्शन हैं और अगले 5 साल में इंस्टाल हो जाएंगे लेकिन वर्तमान हालात को देखते हुए इन प्लांट के भी चालू होने की संभावना कम है।

क्यों बंद पड़े हैं प्लांट
हाल ही में रिसर्च फर्म क्रिसिल द्वारा जारी ईयर बुक के मुताबिक पिछले 2 साल के दौरान डोमैस्टिक कोल सप्लाई में तो सुधार हुआ है। इसके बावजूद कई प्राइवेट पावर प्लांट्स को कोयले की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा कई ऐसे प्लांट्स भी हैं जिनके साथ डिस्कॉम्स (बिजली वितरण कम्पनियां) या तो पावर परचेज एग्रीमैंट (पी.पी.ए.) नहीं कर रही हैं या पहले से किया गया पी.पी.ए. खत्म कर दिया है।

क्यों नहीं हो रहे पी.पी.ए. 
दरअसल डिस्कॉम्स की आॢथक हालत ठीक नहीं है इसलिए वे पी.पी.ए. साइन नहीं कर रहे हैं, दूसरा पिछले 2 साल के दौरान सोलर और विंड पावर की कीमतों में काफी कमी आई है। इस कारण राज्यों की डिस्कॉम्स थर्मल पावर की बजाय सोलर व विंड पावर परचेज करने पर ज्यादा फोकस कर रही है। हाल ही में आंध्र प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक की सरकारी डिस्कॉम्स ने थर्मल पावर प्लांट्स से लैटर ऑफ अवार्ड (एल.ओ.ए.) रद्द करने को कहा है क्योंकि थर्मल के मुकाबले सोलर व विंड पावर सस्ती पड़ रही है।

5 साल में और बिगड़ सकते हैं हालात
रिपोर्ट बताती है कि लगभग 23,000 मैगावाट के पावर प्लांट अंडर कंस्ट्रक्शन हैं जो अगले 5 साल में ऑनलाइन हो जाएंगे लेकिन हालात नहीं सुधरे तो ये प्लांट भी प्रोडक्शन शुरू नहीं कर पाएंगे और लगभग 1 लाख 30 हजार करोड़ रुपए का इन्वैस्टमैंट प्रभावित होगा जो एन.पी.ए. की राशि को और अधिक बढ़ा देगा।

क्यों है कोयले की दिक्कत
जानकार बताते हैं कि 2 साल में डोमैस्टिक कोल की सप्लाई तो बढ़ी है लेकिन पिछले कुछ साल के दौरान जितने भी प्लांट बने हैं उनमें से अधिकतर इम्पोर्टेड कोल से चलते हैं। उनमें ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है कि वे केवल इम्पोर्टेड कोल से ही चल सकते हैं लेकिन इम्पोर्टेड कोल की कीमत लगातार बढ़ रही है इसलिए इस कोयले की सप्लाई कम हो रही है। वहीं कोल इंडिया के अधिकारी बताते हैं कि हाइड्रो और न्यूक्लियर पावर प्लांट का प्रोडक्शन कम होने के कारण थर्मल पर दबाव बढ़ा है जिस कारण कोल प्रोडक्शन अधिक होने के बावजूद सभी थर्मल प्लांट को कोयले की पूरी सप्लाई नहीं हो पा रही है। 

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