42 भारतीय बैंकों ने 2.12 ट्रिलियन रुपए का लोन किया राइट ऑफ

Edited By jyoti choudhary,Updated: 01 Dec, 2019 10:46 AM

42 indian banks loaned rs 2 12 trillion write off

देश के 42 कमर्शियल बैंकों ने वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान कुल 2.12 ट्रिलियन रुपए का लोन राइट ऑफ किया है। यह जानकारी वित्त मंत्रालय की तरफ से संसद में दी गई। राइट ऑफ की गई लोन की यह राशि पिछले साल की तुलना में 42 प्रतिशत अधिक है।

नई दिल्लीः देश के 42 कमर्शियल बैंकों ने वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान कुल 2.12 ट्रिलियन रुपए का लोन राइट ऑफ किया है। यह जानकारी वित्त मंत्रालय की तरफ से संसद में दी गई। राइट ऑफ की गई लोन की यह राशि पिछले साल की तुलना में 42 प्रतिशत अधिक है। पिछले वित्त वर्ष में 1.5 ट्रिलियन रुपए का लोन राइट ऑफ  किया गया था। इसके अलावा इसमें 20 प्रतिशत नॉन-परफॉर्मिंग एसैट्स (एन.पी.ए.) भी शामिल था। बैंक सामान्य रूप से अपनी बैलेंस शीट को क्लीयर रखने के लिए उसमें से एन.पी.ए. को राइट ऑफ  कर देते हैं। इससे एक तरफ  जहां बैंक की देनदारियों में कमी होती है वहीं संभावित नुक्सान भी खातों से हट जाता है।

सूत्रों के अनुसार साल 2014-15 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से भारतीय बैंक अपने करीब 5.7 ट्रिलियन रुपए के बैड लोन को राइट ऑफ कर चुके हैं। अब तक देश के सार्वजनिक क्षेत्र के 21 बैंक अपने खातों से बैड लोन को राइट ऑफ  कर चुके हैं। साल 2018-19 में इन बैंकों ने 1.9 ट्रिलियन रुपए का बैड लोन राइट ऑफ किया है। यह कुल बैंकों की रकम का 90 प्रतिशत है। खबर है कि स्टेट बैंक ऑफ  इंडिया (एस.बी.आई.) ने सबसे अधिक 56,500 करोड़ रुपए का लोन राइट ऑफ किया है। पिछले कुछ वित्तीय वर्ष में कई बैंकों के विलय के बाद एस.बी.आई. को लोन राइट ऑफ में काफी बढ़ौतरी हुई है।

4 साल में बैंकों के खातों में बैड लोन की राशि 3 गुना बढ़ी
पिछले 4 साल में बैंकों के खातों में बैड लोन की राशि 3 गुना बढ़ चुकी है। साल 2014-15 में यह राशि 3.2 ट्रिलियन रुपए थी जो 2018-19 में 9.4 ट्रिलियन रुपए पहुंच गई। लोन को राइट ऑफ करने का मतलब है कि जो लोन वसूला नहीं जा सकता उसे बैलेंस शीट से हटा दिया जाता है। इसका उद्देश्य बैलेंस शीट को ठीक रखना होता है।

तकनीकी रूप से लोन की राशि भले ही खाते में न दिखाई दे लेकिन इसकी वसूली की प्रक्रिया रुकती नहीं है, यानी कि भविष्य में यह पैसा मिलने की उम्मीद बनी रहती है। इसके साथ ही इस राशि को वसूल करने के लिए बैंक के पास कानूनी कार्रवाई का विकल्प खुला होता है।
बैंक कानूनी तरीके से राइट ऑफ किए गए कर्ज की वसूली के लिए स्वतंत्र रहता है। यदि राइट ऑफ  किए गए लोन की रिकवरी हो जाती है तो संबंधित वित्त वर्ष की बैलेंस शीट में उसे लाभ के रूप में दर्शाया जाता है।


 

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