Edited By Supreet Kaur,Updated: 17 Aug, 2018 10:31 AM
कर्ज की रकम वापस नहीं होने के कारण होने वाली प्रविजनिंग लगातार बढ़ते रहने से जून तिमाही में सरकारी बैंकों का घाटा पिछले साल के मुकाबले पचास गुना से ज्यादा बढ़ गया। इस बीच फंसे कर्जों के ताजा संग्रहण की रफ्तार सुस्त पड़ी है क्योंकि लोन डिफॉल्ट के...
बिजनेस डेस्कः कर्ज की रकम वापस नहीं होने के कारण होने वाली प्रविजनिंग लगातार बढ़ते रहने से जून तिमाही में सरकारी बैंकों का घाटा पिछले साल के मुकाबले पचास गुना से ज्यादा बढ़ गया। इस बीच फंसे कर्जों के ताजा संग्रहण की रफ्तार सुस्त पड़ी है क्योंकि लोन डिफॉल्ट के बड़े मामले पहले की तिमाहियों में ही बैंकरप्ट्सी कोर्ट के हवाले किए जा चुके थे।
मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 21 पब्लिक सेक्टर बैंकों का कुल घाटा बढ़कर 16,600 करोड़ रुपए हो गया, जो सालभर पहले सिर्फ 307 करोड़ रुपए था। इसका पता रेग्युलेटरी फाइलिंग के डेटा से चला है। जून तिमाही में सिर्फ सात बैंकों ने लाभ दिया है जबकि साल भर पहले ऐसे 12 बैंक थे। बॉन्ड प्राइस में उथलपुथल के चलते हुए ट्रेडिंग लॉस से बैंकों की मुसीबत बढ़ी है, लेकिन आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी के साथ ही प्रमोटरों के रीपेमेंट के बेहतर तौर तरीके अपनाने के चलते बैंकों का डिफॉल्ट्स लेवल बढ़ने के आसार खत्म हो गए हैं।
इस बीच एनपीए के लिए सरकारी बैंकों का कुल प्रविजन सालाना आधार पर 28 फीसदी उछाल के साथ 51,500 करोड़ रुपए हो गया है। 31 मार्च को खत्म तिमाही में सरकारी बैंकों का लॉस अब तक के सबसे ऊपरी लेवल 62,700 करोड़ रुपए पर पहुंच गया था। उस तिमाही में घाटे में जानेवाले बैंकों की संख्या 19 थी।