GST: सामान सस्ता नहीं करने वाली कम्पनियों पर शिकंजा

Edited By Supreet Kaur,Updated: 19 Oct, 2018 10:27 AM

action on companies which not cheap prices

इंकम टैक्स डिपार्टमैंट को संदेह है कि कई कन्ज्यूमर गुड्स और सर्विसेज कम्पनियां जी.एस.टी. के रेट में कमी का फायदा ग्राहकों को नहीं दे रही हैं, इसलिए उन पर शिकंजा कसते हुए उनकी जांच शुरू की गई है। अधिकारियों का मानना है कि रेट में कमी के बावजूद...

मुम्बईः इंकम टैक्स डिपार्टमैंट को संदेह है कि कई कन्ज्यूमर गुड्स और सर्विसेज कम्पनियां जी.एस.टी. के रेट में कमी का फायदा ग्राहकों को नहीं दे रही हैं, इसलिए उन पर शिकंजा कसते हुए उनकी जांच शुरू की गई है। अधिकारियों का मानना है कि रेट में कमी के बावजूद कम्पनियों ने अपने प्रोडक्ट्स और सेवाओं को सस्ता नहीं किया और वे मुनाफाखोरी कर रही हैं।

इंडस्ट्री पर नजर रखने वालों का कहना है कि जांच के पहले दौर में इनडायरैक्ट टैक्स डिपार्टमैंट के अधिकारी एफ.एम.सी.जी., रीयल एस्टेट और कन्ज्यूमर गुड्स सैगमैंट पर फोकस करेंगे, जिनका ग्राहकों पर सीधा असर होता है। महंगाई दर बढऩे के बीच इंकम टैक्स डिपार्टमैंट यह कदम उठा रहा है। जब जी.एस.टी. को लागू किया गया था, तब इससे महंगाई बढऩे की आशंका जताई गई थी। इनडायरैक्ट टैक्स अधिकारी टैलीकॉम और बैंकिंग सैक्टर की भी जांच कर सकते हैं।

टैक्स एक्सपर्ट्स ने कहा कि कुछ कम्पनियों को अपनी लागत पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है और उन्हें न सिर्फ  जी.एस.टी. रेट में कमी बल्कि इनपुट टैक्स क्रैडिट से हुए फायदे को भी ग्राहकों तक पहुंचाना चाहिए। ईवाई इंडिया में टैक्स पार्टनर अभिषेक जैन ने बताया कि इंडस्ट्री को अपनी लागत देखनी चाहिए। खासतौर पर वे कम्पनियां जो मास सैगमैंट से जुड़ी हैं, उन्हें टैक्स रेट में कमी से जो फायदा हुआ है, उसे ग्राहकों तक पहुंचाना चाहिए। जी.एस.टी. में एंटी-प्रॉफिटीयरिंग की शर्त रखी गई थी। इसके मुताबिक नए टैक्स के लागू होने से कम्पनियों को जो भी बचत होनी थी, उसे ग्राहकों तक पहुंचाना जरूरी था। लीगल एक्सपर्ट्स का कहना है कि कुछ मामलों में कम्पनियों को हुए फायदे का पता लगाने में मुश्किल हो सकती है।

एक्सपर्टस का यह भी कहना है कि मुनाफाखोरी के मामले में कम्पनी पर पैनल्टी लगाए जाने के बाद विवाद सुलझाने की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर कम्पनी नैशनल एंटी-प्रॉफिटीयरिंग अथॉरिटी के फैसले को चुनौती देती है तो उसके निपटाने का कोई सिस्टम नहीं है। टैलीकॉम और बैंकों के मामले में समस्या और गंभीर है क्योंकि उनमें इनपुट टैक्स क्रैडिट का स्कोप काफी ज्यादा है। वे कैपिटल एक्सपैंडीचर पर टैक्स क्रैडिट की मांग कर सकते हैं। पहले सर्विस सैक्टर के लिए ऐसा सिस्टम नहीं था। 

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