आखिर क्यों महंगा हो रहा खाद्य तेल

Edited By jyoti choudhary,Updated: 01 Jun, 2021 01:27 PM

after all why edible oil is becoming expensive

पैट्रोल और डीजल की कीमतों से परेशान देश की जनता को अब खाद्य तेल के लिए भी ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ रही है। पिछले एक साल में खाद्य तेल की कीमतों में जबरदस्त तेजी देखने को मिली है और कीमतें 60 प्रतिशत से ज्यादा उछल चुकी हैं। कीमतों में तेजी का आलम यह...

बिजनेस डेस्कः पैट्रोल और डीजल की कीमतों से परेशान देश की जनता को अब खाद्य तेल के लिए भी ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ रही है। पिछले एक साल में खाद्य तेल की कीमतों में जबरदस्त तेजी देखने को मिली है और कीमतें 60 प्रतिशत से ज्यादा उछल चुकी हैं। कीमतों में तेजी का आलम यह है कि कीमतों में वृद्धि की औसत दर 11 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। आइए आसान सवाल-जवाब में जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर खाद्य तेल की महंगाई के पीछे क्या कारण हैं और सरकार कीमतों पर नियंत्रण के लिए किस हद तक दखल दे सकती है।

  • देश में खाने के तेल की कीमतें कितनी बढ़ी हैं 
  • केंद्रीय उपभोक्ता मत्रालय की वैबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछले एक साल में 6 प्रकार के खाद्य तेल की कीमतों में 20 से लेकर 56 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। सरसों के तेल की कीमत इस साल 28 मई को 44 रुपए प्रति लीटर बढ़ कर 171 रुपए प्रति लीटर हो गई है जबकि पिछले साल 28  मई को इसकी कीमत 118 रुपए प्रति लीटर थी। इसी अवधि में सोया तेल की कीमतें 50 प्रतिशत बढ़ी हैं। यदि खाद्य तेलों की प्रति माह की महंगाई की बात करें तो इनकी औसत वृद्धि दर 11 साल के उच्तम स्तर पर पहुंच गई है। 
     
  • देश में खाने के तेल की खपत कितनी है 
  • देश में प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के साथ लोगों की खाने-पीने की आदतें बदल रही हैं और लोग खाद्य तेल का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं। गांवों में सरसों के तेल की खपत ज्यादा है जबकि शहरों में सूरजमुखी और सोया के तेल की खपत ज्यादा है। 1993-94 और 2004-05 के मध्य देश के ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की खपत 0.37 किलो ग्राम प्रति माह से बढ़ कर 0.48 किलोग्राम हो गई थी। हालांकि इस के बाद के तुलनात्मक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन देश के घरेलू उत्पादन और आयात किए जाने वाले स्त्रोतों को मिला कर देश में प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की उपलब्धता बढ़ रही है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 5 साल के दौरान देश में खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता प्रति वर्ष 19.10 किलोग्राम से 19.80 किलोग्राम रही है।
     
  • खाद्य तेल का घरेलू उत्पादन कितना है और कितना तेल आयात किया जाता है 
  • कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2015-16 से लेकर 2019-20 के मध्य देश में खाद्य तेल की मांग बढ़ कर 23.48 मिलियन टन से बढ़ कर 25.92 मिलियन टन हो गई  है जबकि इस दौरान घरेलू आपूर्ति इस से काफी कम 8.63 मिलियन टन से लेकर 10.65 मिलियन टन के मध्य रही है। 2019-20 में सरसों और मूंगफली के प्राथमिक स्त्रोतों और नारियल, राइस ब्रैन, कॉटन और पाल्म आयल जैसे दूसरे स्त्रोतों को मिला कर उपलब्धता 10.65 मिलियन टन रही जबकि इस दौरान देश में खाद्य तेल की मांग 24 मिलियन टन रही। इस लिहाज से देश में मांग और आपूर्ति के मध्य 13 मिलियन टन का अंतर् रहा है। देश में खाने के तेल की बढ़ी मांग के चलते 2019-20 में भारत ने 61559  करोड़ रुपए की कीमत का 13.35  मिलियन टन खाद्य तेल आयात किया है और यह देश की कुल मांग का 56 प्रतिशत है। आयात किए गए कुल तेल में 7 मिलियन टन पाल्म आयल, 3.5 मिलियन टन सोयाबीन आयल और 2.5 मिलियन टन सूरजमुखी का तेल शामिल है। भारत अजर्जेंटीना और ब्राजील से सोया तेल खरीदता है जबकि इंडोनेशिया और मलेशिया से पाल्म आयल की खरीद की जाती है और सूरजमुखी का तेल भी अर्जेंटीना से खरीदा जाता है।
     
  • खाने वाले तेल की कीमतें क्यों बढ़ रही हैं?
  • कीमतों में यह वृद्धि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आई तेजी का परिणाम है। भारत अपनी जरूरत का 56 प्रतिशत खाद्य तेल आयात करता है और पिछले कई महीने से खाद्य तेल की कीमतों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेजी देखने को मिली है। मलेशिया की कमोडिटी एक्सचेंज बुर्सा में 25 मई को पाल्म तेल का दाम 3890 रिंगिट प्रति टन रहा जबकि पिछले साल इसी दौरान इसकी कीमत 2281 रिंगिट प्रति टन थी। शिकागो बोर्ड आफ ट्रेड पर 24 मई को सोयाबीन का जुलाई वायदा 559.51 प्रति टन पर ट्रेड कर रहा था जबकि पिछले साल इसकी कीमत 306.16 डॉलर प्रति टन था। इन दोनों कमोडिटी एक्सचेंजों पर बढ़ रहे खाद्य तेल की कीमतों का असर देश में खाने के तेल की कीमतों पड़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य तेलों की महंगाई का सूचकांक फ़ूड एन्ड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन प्राइस इंडेक्स पिछले साल के 81 के मुकाबले बढ़ कर अप्रैल में 162 हो चुका है। 
     
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतें क्यों बढ़ रही हैं 
  • साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इण्डिया (एस.ई.ए.आई.) के कार्यकारी निदेशक बी.वी. मेहता का मानना है कि इसका एक बड़ा कारण वेजिटेबल आयल से बायो फ्यूल बनाना है। खाद्य तेल की शिफ्टिंग अब फ़ूड बास्केट से फ्यूल बास्केट की तरफ हो रही है। अमरीका, ब्राजील और अन्य देशों में सोयाबीन के तेल से रिन्यूबल फ्यूल बनाने पर जोर दिया जा रहा है। चीन द्वारा बड़े पैमाने पर की जा रही खरीद, मलेशिया में लेबर को लेकर चल रहा विवाद, पाल्म और सोया की बिजाई वाले इलाकों में समुंद्री तूफान ला निफिया का प्रभाव और मलेशिया और इंडोनेशिया में पाल्म आयल का निर्यात शुल्क भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर  पर तेल की कीमतें बढ़ने के कारण हैं। एफ.ए.ओ. की मई महीने की रिपोर्ट के मुताबिक अमरीका के सोयाबीन की पैदावार के इलाकों में सूखे मौसम और तापमान के संतुलित न होने के कारण बिजाई का काम पिछड़ने के कारण 2021-22 में सोया के उत्पादन को लेकर चिंता बढ़ी है। उधर अर्जेंटीना में भी मौसम के अनुकूल न होने और सूखे की अवधि लंबी होने से फसल का उत्पादन अनुमान के अनुसार न होने की आशंका है। 
     
  • सरकार के सामने क्या विकल्प हैं 
  • साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इण्डिया को लगता है कई यदि सरकार खाद्य तेल पर लगने वाले आयत शुल्क में कमी कर दे तो छोटी अवधि में कीमतों में तेजी से कुछ हद तक राहत मिल सकती है।  इस साल 2 फरवरी से लागू करों की दर के मुताबिक एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर और डिवैलमैंट सैस और सामाजिक सुरक्षा सैस को मिला कर सरकार खाद्य तेल पर 35.75 प्रतिशत कर वसूल करती है। रिफाइंड, ब्लीच्ड और डिऑड्राइज्ड (आर.बी.डी.) पाल्म आयल पर आयात शुल्क की दर 59.40 प्रतिशत है इसी प्रकार कच्चे और रिफाइंड सोयाबीन आयल पर आयात शुल्क 38.50 प्रतिशत से लेकर 49.50 प्रतिशत तक है हालांकि खाद्य तेल की इंडस्ट्री आयाच शुल्क कम करने के पक्ष में नहीं है।

यदि सरकार ऐसा करती है तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतें तेज हो जाएंगी और इससे सरकार को राजस्व का नुक्सान को होगा ही, ग्राहकों को भई इससे कोई फायदा नहीं होगा। इसकी कीमतों को नियंत्रित करना का एक अन्य रास्ता सरकार द्वारा पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के तहत खाद्य तेल की बिक्री है और ऐसा करके सरकार निचले तबके को महंगे तेल से राहत दे सकती है।
 

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