कृषि में समृद्धि लाने की संभावना सीमित: पनगढिया

Edited By ,Updated: 18 May, 2015 04:21 PM

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नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिया ने कृषि के माध्यम से लोगों में समृद्धि आने की सीमित संभावनाओं का उल्लेख करते हुए कहा

नई दिल्लीः नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिया ने कृषि के माध्यम से लोगों में समृद्धि आने की सीमित संभावनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि तेजी से बढ़ रही औद्योगिक गतिविधियां और सेवा क्षेत्र में समृद्धि लाने की अपार संभावना है।

पनगढिया ने नीति आयोग की आज लांच की गई वैबसाइट पर अपने पहले ब्लॉग पर यह बात लिखी है। उन्होंने कहा कि भारतीय किसान और उनके बच्चों को तेजी से बढ़ रही औद्योगिक गतिविधियों और सेवा क्षेत्र से मिलने वाली संभावनाओं को समझना चाहिए। उन्होंने हाल ही में गैर सरकारी संगठन लोकनीति द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण का हवाला भी दिया है जिसमें भाग लेने वाले 62 फीसदी किसानों ने कहा था कि यदि शहर में उन्हें रोजगार मिलेगा तो वे कृषि को छोडने के लिए तैयार है। इसी सर्वेक्षण में शामिल किसानों के बच्चों में से 76 फीसदी ने कृषि को छोड़कर दूसरे पेशे को स्वीकारने की बात भी कही थी। उन्होंने राष्ट्र की समृद्धि एवं रोजगार सृजन में औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि काफी लंबे समय से विकास दर 6 फीसदी से अधिक बनी हुई है और उद्योग एवं सेवा क्षेत्र कृषि से अधिक तेजी से बढ़ रहा है।

पनगढिया ने देश में कृषि की स्थिति का उल्लेख करते हुए लिखा है कि बहुत समय के बाद मध्य प्रदेश में वर्ष 2011-12 और 2013-14 के दौरान कृषि की विकास दर 20 प्रतिशत से अधिक रही है जिसे बनाए रखना असंभव जैसा है। उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास में लगातार 10 वर्षाें तक कृषि की औसत राष्ट्रीय विकास दर 5 फीसदी से कम रही है। उन्होंने भूमि उपयोग के तरीके पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया में ऐसी आशंका जताई जा रही है कि औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र के तीव्र विकास होने से कृषि भूमि उस क्षेत्र में चली जाएगी जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है लेकिन ऐसी आशंकाएं कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर गौर किए बिना जाहिर की जा रही है।

वर्ष 2012-12 में गैर कृषि क्षेत्रों जैसे हाऊसिंग, उद्योग, कार्यालय, सड़क, रेलवे और इसी तरह के दूसरे क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि का मात्र 8 प्रतिशत हिस्सा था। उन्होंने सरकार के श्रम कानून में संशोधन करने की तारीफ करते हुए कहा कि सहकारी संघवाद के जरिए सरकार ने राज्यों को संशोधित श्रम कानून को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है जिससे रोजगार सृजन में मदद मिलेगी। मध्य प्रदेश और राजस्थान ने इसमें त्वरित पहल की है और ऐसी खबरे आ रही है केन्द्र सरकार श्रम कानून में भारी बदलाव पर विचार कर रही है। सरकार 44 केन्द्रीय श्रम कानूनों को 5 तक सीमित करने के साथ ही रोजगार अनुकूल सुधार भी करने जा रही है। 

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