यहां सोने जितना महंगा है इत्र

Edited By ,Updated: 08 Jul, 2015 02:00 PM

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सोने-चांदी के बाजार दरीबा कलां में करीब 200 साल से अपनी बेशकीमती खुशबू के लिए मशहूर 'रूह गुलाब' की डिमांड भले ही घटती जा रही हो

नई दिल्लीः सोने-चांदी के बाजार दरीबा कलां में करीब 200 साल से अपनी बेशकीमती खुशबू के लिए मशहूर 'रूह गुलाब' की डिमांड भले ही घटती जा रही हो लेकिन इसकी कीमत बेशकीमती धातुओं को भी मात दे रही है। मात्र 10 ग्राम इत्र का दाम हजार दो हजार नहीं पूरे 18,000 रुपए तक पहुंच गया है। हाल में निर्यात पर लगी बंदिशों के कारण एक्सपोर्ट घटने और घरेलू मार्कीट में कैमीकल व ऐल्कॉहॉल परफ्यूम से मिल रही चुनौती के बावजूद फर्म 'गुलाब सिंह जौहरी मल' के इस प्रीमियम ब्रैंड की कीमत में कोई कमी नहीं आई है। इसकी एक वजह इसकी भारी-भरकम लागत भी है। फर्म का दावा है कि रूह गुलाब की 5 ग्राम मात्रा के लिए ही खास किस्म के 40 किलोग्राम गुलाब खर्च करने पड़ते हैं।

शॉप के मालिकों में से एक प्रफुल्ल गांधी बताते हैं, ''हमारे पास 50 रुपये से लेकर 5 और 10 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के इत्र भी हैं लेकिन रूह गुलाब हमेशा से आम आदमी की पहुंच से बाहर रहा है। बीते कुछ समय से एक्सपोर्ट घटने और घरेलू बाजार में कैमीकल परफ्यूम की चुनौती के बावजूद इसके दाम रोके रखना या घटाना हमारे वश में नहीं रहा। फिलहाल 10 ग्राम इत्र की कीमत 18,000 रुपए है।''

चांदनी चौक में सन 1818 से इत्र का कारोबार कर रही फर्म की हाथरस के पास हसायन में एक इत्र बनाने वाली डिस्टिलियरी है। गुलाब सिंह जौहरी मल की दूसरी ब्रांच के मालिक नवीन गांधी बताते हैं, ''इसे बनाने की प्रक्रिया बेहद महंगी और जटिल है। एक तो यह हसायन की मिट्टी में उपजे गुलाब से बनता है, दूसरा प्रोसेस में काफी सा‌वधानी बरतनी होती है।'' वह बताते हैं कि अरमानी, अजेरो और बरबेरी जैसे बड़े ब्रैंड के महंगे परफ्यूम का चलन बढ़ रहा है। इसका असर उनके छोटे और मझोले ब्रैंडों पर ज्यादा पड़ा है। रूह गुलाब के कद्रदान पहले भी कम थे और लेने वाले आज भी आ जाते हैं।

नवीन कहते हैं कि हाल में सरकार ने सैंडल ऑइल और इत्र का निर्यात बंद कर दिया, जिसके चलते उनके कई ब्रैंड की विदेशी बाजारों में सप्लाई आधी हो गई। घरेलू मोर्चे पर कुछ नॉर्म्स उन्हें कारोबार को विस्तार देने की इजाजत नहीं देते। इसके लिए फर्म को अपने तौर-तरीके बदलने होंगे, जिससे उनकी दशकों पुरानी पहचान का संकट भी खड़ा हो सकता है। ऐसे में फर्म सीमित मात्रा में ही अपने उत्पादों को बेच रही है। वह बताते हैं कि इत्र के ज्यादातर कद्रदान मुस्लिम तबके से आते हैं, क्योंकि वे ऐल्कॉहॉल वाले सेंट को आस्था के खिलाफ मानते हैं।

 

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