Edited By ,Updated: 18 Sep, 2015 10:45 AM
राज्यों की खस्ताहाल बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को वित्तीय मदद नहीं देने के अपने फैसले पर केंद्र सरकार अड़ी हुई है
नई दिल्लीः राज्यों की खस्ताहाल बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को वित्तीय मदद नहीं देने के अपने फैसले पर केंद्र सरकार अड़ी हुई है लेकिन उसने इन कंपनियों को वित्तीय और तकनीकी पुनर्गठन की राह पर लाने के लिए ऐसी नीति अपनाई है, जिसमें सख्ती भी है और इनाम भी। अगर राज्य अब केंद्र द्वारा सुझाए गए पुनर्गठन में चूक करते हैं और घाटा कम करने में नाकाम रहते हैं तो उन्हें वित्तीय मदद देने के बजाय उन्हें मिलने वाले केंद्रीय कोष में कटौती की जा सकती है। मामले की जानकारी रखने वाले अधिकारियों ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा गठित 'वितरण सुधार समिति (डीआरसी)' केंद्रीय बिजली मंत्रालय और विशेषज्ञ समूह को सुधार के तरीकों पर सुझाव देगी।
डिस्कॉम के कर्ज को राज्य सरकार के हवाले कर दिया जाएगा, जो इसके एक हिस्से को पूरा करने के लिए संभवत: बॉन्ड जारी करेंगी। हरेक राज्य के लिए यह हिस्सा अलग-अलग हो सकता है। सूत्रों ने बताया कि अगर राज्य सरकार बॉन्ड की शर्तें पूरी करने में विफल रहती है या लाभांश भुगतान में चूक करती है तो केंद्र सरकार राज्य को मिलने वाली रकम का कुछ हिस्सा काटकर बॉन्डधारकों का बकाया चुका देगी। एक अधिकारी ने बताया कि राज्यों के सामने जो विकल्प रखे जाने का प्रस्ताव है, यह उन्हीं में से एक है।
बकाया कर्ज चुकाने और सुधार करने के लिए राज्यों को बिजली महंगी भी करनी होगी और केंद्र की सुधार योजनाओं- एकीकृत बिजली विकास योजना (आईपीडीएस) और दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीयूजीजेवाई) के तहत अपना तकनीकी नुकसान भी कम करना होगा। केंद्र सरकार यह योजना सभी राज्यों के खस्ताहाल बिजली बोर्डों के सामने रखेगी। जो राज्य अपनी बिजली व्यवस्था को बेहतर करने के लिए ये नियम और शर्तें स्वीकार करेंगे, उन्हें भी इस योजना में शामिल कर लिया जाएगा। समिति मुख्य रूप से आठ राज्यों पर ध्यान दे रही है, जिनका 3.17 लाख करोड़ रुपए के कुल कर्ज में सबसे ज्यादा हिस्सा है। ये राज्य राजस्थान, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा, झारखंड, बिहार और तेलंगाना हैं।
इस समिति के चेयरमैन बिजली मंत्रालय के सचिव होंगे और इसमें सभी राज्यों के प्रतिनिधि, वित्त मंत्रालय में बैंकिंग सचिव, पावर फाइनैंस कॉरपोरेशन के चेयरमैन सदस्य के तौर पर शामिल होंगे और टॉरन्ट पावर, टाटा पावर और सीईएससी के वरिष्ठï कार्यकारी विशेष आमंत्रित सदस्य होंगे। बातचीत की प्रक्रिया में शामिल एक वरिष्ठï कार्यकारी ने बताया, 'दो बातों पर विचार हो रहा है - मौजूदा घाटा कैसे कम किया जाए और नुकसान या कर्ज बढऩे से कैसे रोका जाए। बैंक पहले से ही इस क्षेत्र को और कर्ज देने से इनकार कर रहे हैं। इन पैमानों के जरिए ही डिस्कॉम पर सख्ती की जा सकती है। कोई एकतरफा तरीका नहीं है।'
अधिकारी ने बताया कि इसमें प्रोत्साहन भी है। उन्होंने कहा, 'राज्य सरकारें डिस्कॉम का घाटा अपने ऊपर लेती हैं तो सकल राज्य बजट योजना में कर्ज का हिस्सा बढ़ सकता है। राज्यों को उनकी वित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) सीमा में करीब 0.25 फीसदी की रियायत दी जाएगी। इससे राज्यों को नुकसान वहन करने और लघु अवधि में बॉन्ड जारी करने में मदद मिलेगी।' एफआरबीएम से तात्पर्य यह है कि राज्य के ऊपर कितना घाटा है। इसमें रियायत मिलने से राज्यों को अपने राजकोषीय घाटे में राहत मिल जाती है। पीडब्ल्यूसी इंडिया में पावर ऐंड यूटिलिटी पार्टनर संबितोश महापात्र ने कहा, 'राज्यों को आखिर तक यानी राज्य बिजली बोर्ड के परिचालन से लेकर मांग प्रबंधन तक में सुधार करने होंगे। कम मियाद वाले ये पैमाने तभी कारगर होंगे, जब राज्य घाटे को लंबी अवधि में सख्ती से पाटने की योजना बनाएंगे।'