Edited By jyoti choudhary,Updated: 22 Feb, 2019 12:25 PM
अंडरकंस्ट्रक्शन फ्लैटों पर मौजूदा 12 प्रतिशत की जगह 3 और 5 प्रतिशत गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जी.एस.टी.) चार्ज करने की मंत्री समूह की सिफारिश से रियल एस्टेट सैक्टर पर टैक्स का बोझ तो घटेगा लेकिन रियल्टर्स को इनपुट टैक्स क्रैडिट का लाभ छिन जाना खटक रहा...
नई दिल्लीः अंडरकंस्ट्रक्शन फ्लैटों पर मौजूदा 12 प्रतिशत की जगह 3 और 5 प्रतिशत गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जी.एस.टी.) चार्ज करने की मंत्री समूह की सिफारिश से रियल एस्टेट सैक्टर पर टैक्स का बोझ तो घटेगा लेकिन रियल्टर्स को इनपुट टैक्स क्रैडिट का लाभ छिन जाना खटक रहा है। उनका मानना है कि कच्चे माल और सर्विसेज की लागत पर चुकाए गए टैक्स का क्रैडिट नहीं मिलने से उनकी लागत में कोई खास कमी नहीं आएगी, जिससे घरों की कीमत में बहुत ज्यादा कटौती नहीं होने जा रही।
इंडस्ट्री और बायर्स दोनों के लिए प्रस्ताव फायदेमंद: एसोचैम
एसोचैम की अफोर्डेबल हाऊसिंग पर नैशनल काऊंसिल के चेयरमैन प्रदीप अग्रवाल ने कहा कि सरसरी नजर में यह प्रस्ताव इंडस्ट्री और बायर्स दोनों के लिए फायदेमंद है। अभी बिना कम्प्लीशन सर्टीफिकेट वाले घरों पर 12 प्रतिशत जी.एस.टी. लगता है, जो घटकर 5 प्रतिशत हो जाएगा, जबकि अफोर्डेबल हाऊसिंग पर रेट मात्र 3 प्रतिशत ही होगा लेकिन कच्चे माल पर इनपुट क्रैडिट नहीं मिलना एक बड़ी चुनौती होगी।
कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता रहता है एडजस्ट
एक्सपर्ट्स का कहना है कि फिलहाल जमीन की लागत को शामिल करते हुए सरकार 33 प्रतिशत अबेटमैंट भी देती है, जिससे जी.एस.टी. का प्रभावी रेट 12 की बजाय 8 प्रतिशत ही रह जाता है। इस पर इनपुट टैक्स क्रैडिट मिलने से वास्तविक बोझ और घट जाता है और कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव भी एडजस्ट होता रहता है लेकिन बिना क्रैडिट के एकमुश्त 5 प्रतिशत रेट बहुत ज्यादा राहत देता नहीं दिखता।
इनपुट क्रैडिट छिनने से घरों के दाम रह सकते हैं स्थिर
वैल्थ क्लीनिक के सी.एम.डी. अमित रहेजा ने कहा कि इनपुट क्रैडिट छिनने से वास्तव में घरों के दाम स्थिर या कुछ मामलों में बढ़ भी सकते हैं। गुलशन होम्स के डायरैक्टर दीपक कपूर के मुताबिक रेट घटने के बाद इनपुट टैक्स क्रैडिट नहीं मिलने से कंस्ट्रक्शन लागत बढ़ जाएगी क्योंकि ज्यादातर बिल्डिंग मैटीरियल्स पर रेट ज्यादा हैं और कच्चे माल पर हमें ज्यादा कर चुकाना पड़ता है। बिल्डर्स के पास इस लागत का बोझ ग्राहकों पर डालने के अलावा बहुत कम विकल्प होंगे। ऐसे में कीमतें घटेंगी या नहीं, कहना मुश्किल है।