Edited By Supreet Kaur,Updated: 05 Aug, 2019 01:22 PM
अगर कोई हाउजिंग प्रॉजेक्ट समय पर पूरा नहीं होता है और खरीदार पजेशन नहीं लेना चाहता तो बिल्डर इसके लिए दबाव नहीं बना सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने नैशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेशल कमिशन (एनसीडीआरसी) की इस बात पर मुहर लगा दी है। सुप्रीम.......
नई दिल्लीः अगर कोई हाउजिंग प्रॉजेक्ट समय पर पूरा नहीं होता है और खरीदार पजेशन नहीं लेना चाहता तो बिल्डर इसके लिए दबाव नहीं बना सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने नैशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेशल कमिशन (एनसीडीआरसी) की इस बात पर मुहर लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खरीदार अपना रिफंड भी मांग सकता है।
पुणे के एक बिल्डर के मामले में एनसीडीआरसी के आदेश को बरकरार रखते हुए जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने कहा, 'मान लेते हैं कि मकान अब पजेशन के लिए तैयार है लेकन पांच साल की देरी हो चुकी है। अब खरीदार पर पजेशन के लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि पांच साल कम नहीं होते हैं। इसलिए बिल्डर को ब्याज के साथ जमा की गई राशि वापस करनी चाहिए। आयोग के इस फैसले को गलत नहीं ठहराया जा सकता है।' एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में कहा था कि अगर हाउजिंग प्रॉजेक्ट में देरी हो गई है तो खरीदार को पजेशन लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है और खरीदार रिफंड भी मांग सकता है। गुड़गांव के एक मामले में यह आदेश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पुणे के मारवेल सेल्वा रिज स्टेट के मामले में यही आदेश दिया है।
कंपनी ने श्रीहरि गोखले को जुलाई 2012 में एक विला बेचा था और दिसंबर 2014 तक पजेशन देने का वादा किया था। गोखले ने 2016 में एनसीडीआरसी से 13.4 करोड़ रुपए के रिफंड के लिए अपील की। बिल्डर ने एनसीडीआरसी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिसमें 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ 8.14 करोड़ रुपए का मूलधन चुकाने की बात कही गई थी। सुनवाई के दौरान बिल्डर की तरफ से कहा गया कि विला बनकर तैयार है और 21 दिन में इसका सर्टिफिकेट जारी हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस विला को गोखले नहीं लेना चाहते और इसे किसी और को भी तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक पूरी तरह से आदेश लागू नहीं हो जाता।