जीएम सरसों की पर्यावरण संबंधी मंजूरी को लेकर केंद्र ने SC में दिया जवाब

Edited By jyoti choudhary,Updated: 11 Nov, 2022 05:59 PM

center responds in sc regarding environmental clearance of gm mustard

केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल जवाब में कहा है कि सेंटर फॉर जेनेटिक मैनीपुलेशन आफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) द्वारा ट्रांसजेनिक मस्टर्ड हाइब्रिड डीएमएच-11 को पर्यावरण संबंधी मंजूरी लंबी और थकाऊ समीक्षा की प्रक्रिया के बाद दी गई है, जो...

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल जवाब में कहा है कि सेंटर फॉर जेनेटिक मैनीपुलेशन आफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) द्वारा ट्रांसजेनिक मस्टर्ड हाइब्रिड डीएमएच-11 को पर्यावरण संबंधी मंजूरी लंबी और थकाऊ समीक्षा की प्रक्रिया के बाद दी गई है, जो 2010 में शुरू की गई थी। न्यायालय ने 3 नवंबर को केंद्र सरकार से कहा था कि जीन संवर्धित (जीएम) सरसों की बोआई अगली सुनवाई तक रोक दी जाए। केंद्र ने न्यायालय से कहा था कि हाल के तथ्यों को सामने लाने के लिए उसे वक्त दिए जाने की जरूरत है।

यह शपथपत्र संभवतः केंद्र सरकार की पहली आधिकारिक स्वीकारोक्ति है, जो डीएचएम-11 को पिछले माह पर्यावरण मंजूरी देने के बाद सामने आई है। अपने 67 पेज के शपथपत्र में केंद्र सरकार ने सीजीएमसीपी के आवेदन की पृष्ठभूमि को शामिल किया है, जिसने डीएमएच-11 को अनुमति दी है और इसकी वैज्ञानिक व देश के लिए इसकी सामाजिक आर्थिक जरूरतों के बारे में बताया है।

इसमें कहा गया है कि पर्यावरण संबंधी सशर्त मंजूरी (डीएमएच-11) में जरूरी नियामकीय व तकनीकी मंजूरियां लिए जाने की शर्त शामिल हैं। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया के पीठ ने पिछली सुनवाई में कहा था कि याचियों ने कहा है कि यह फसल हानिकारक है।

केंद्र ने कहा, ‘हाइब्रिड डीएमएच-11 की वाणिज्यिक मंजूरी के पहले पर्यावरण संबंधी मंजूरी दी गई है। भारतीय कृषि एवं अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की निगरानी में नया हाइब्रिड विकसित किया गया है। यह मंजूरी तकनीकी और नियामकीय निगरानियों के अधीन है।’केंद्र सरकार का कहना है  भारत में कुल खाद्य तेल का 50 से 60 प्रतिशत आयात होता है, ऐसे में नई जेनेटिक तकनीक का इस्तेमाल करना जरूरी है। इससे आयात पर निर्भरता कम होगी।

केंद्र ने कहा, ‘हाइब्रिड किस्म परंपरागत किस्मों की तुलना में ज्यादा पैदावार देती है। जीएम सरसों को हर्बीसाइट टॉलरेंट (एचटी) तकनीक के मुताबिक विकसित नहीं किया गया है।’

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