किसानों के लिए चीनी हुई कड़वी, कीमतों में गिरावट से किसान चिंतित

Edited By jyoti choudhary,Updated: 29 May, 2018 02:27 PM

chinese bitter for farmers

चाहे महाराष्ट्र में इस सीजन में गन्ना पिराई का काम खत्म हो चुका है और इसने 107 लाख टन चीनी का उत्पादन करके एक रिकार्ड बना दिया है

मुम्बईः चाहे महाराष्ट्र में इस सीजन में गन्ना पिराई का काम खत्म हो चुका है और इसने 107 लाख टन चीनी का उत्पादन करके एक रिकार्ड बना दिया है परंतु गन्ना उत्पादकों और चीनी मिलों के डायरैक्टरों को चिंता ने घेर रखा है। इसके साथ आम लोगों में इस बात की खुशी है क्योंकि चीनी की कीमत 40 रुपए किलो से गिर कर 38 रुपए किलो हो गई है। इस तरह किसानों को अब चीनी कड़वी लगनी शुरू हो गई है।

देशभर में चीनी की कुल पैदावार 320 लाख टन के मुकाबले महाराष्ट्र इसका एक-तिहाई पैदा करता है। चीनी की कीमतें गिरने से राज्य के किसानों में हड़कम्प मच गया है। चीनी की कीमतें असैम्बली चुनावों में निणार्यक भूमिका निभाती हैं। हर सहकारी चीनी मिल में किसान स्टोक होल्ड करते हैं और चीनी की कीमतें नीचे आने से लाभ में बहुत अंतर आ जाता है। नतीजे के तौर पर चीनी मिलों के लाभ और किसानों के लाभांश में कमी आ जाती है।

कई चीनी मिलें किसानों को कम से कम कीमत अदा करने में असफल रही हैं और 30 अप्रैल तक उन्होंने किसानों को 22000 करोड़ रुपए दिए थे। 118 मिलों में से केवल 57 मिलों ने किसानों के बकाया का सौ प्रतिशत भुगतान किया है।

सरकार दे चीनी एक्सपोर्ट की आज्ञा
किसानों के हित खतरे में होने के कारण मिलों के डायरैक्टरों ने केन्द्र सरकार से मांग की कि वह पैदावार को मुख्य रखते हुआ चीनी एक्सपोर्ट करने की आज्ञा दे। इन्दापुर सहकारी चीनी मिल के चेयरमैन हर्षवर्धन पटेल ने कहा कि केन्द्र की तरफ  से चीनी के एक्सपोर्ट पर पाबंदी है परंतु चीनी के आयात करने से घरेलू चीनी उत्पादकों पर 30,000 करोड़ रुपए का प्रभाव पड़ेगा। किसानों के ङ्क्षचता में डूबे होने के कारण अगले गन्ना पिराई के अक्तूबर सीजन में मिलें कैसे गन्ने की पिराई करेंगी जबकि 10.7 लाख हैक्टेयर में गन्ना बीजा जा चुका है। बाद में किसानों को और ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। सर्वाधिक बढ़त के साथ महाराष्ट्र इस वर्ष पिछले साल की तुलना में दोगुने से भी अधिक उत्पादन कर रहा है। ऐसे में केंद्र सहित राज्य सरकारों के समक्ष चुनौती है कि मिलों की रक्षा कैसे की जाए?

‘फिलहाल यह संकट अस्थायी है’ 
एक चीनी मिल के चेयरमैन ने तो यहां तक कहा है कि हो सकता है कि मिलें कच्ची चीनी पैदा करें जबकि रिफायंड सफेद चीनी की अपेक्षा कच्ची चीनी के एक्सपोर्ट के और ज्यादा मौके हैं। सहकारिता मंत्री सुभाष देशमुख ने कहा है कि फिलहाल यह संकट अस्थायी है और इस पर जल्दी काबू पा लिया जाएगा। चीनी मिल एसोसिएशन ने भी पूर्व केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के पास पहुंच की है कि वह केन्द्र पर अपना प्रभाव डालते हुए केन्द्र को चीनी एक्सपोर्ट की आज्ञा देने के लिए मनाएं। बंपर उत्पादन का नुक्सान किसानों को भी न हो, यह सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती होनी चाहिए। इस वर्ष चीनी का अनुमानित उत्पादन पिछले सत्र की तुलना में लगभग 56 प्रतिशत अधिक है। इसका असर चीनी की घरेलू कीमतों में इतना पड़ा कि इसका थोक भाव 26 रुपए प्रति किलोग्राम के साथ 3 वर्षों के निचले स्तर पर आ गया।

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