दबाव वाली संपत्ति के समाधान के लिये नये विकल्प को लेकर परिस्थितियां अनुकूल लगती हैं: आईबीबीआई प्रमुख

Edited By jyoti choudhary,Updated: 03 Jan, 2021 05:44 PM

circumstances seem favorable for a new option to solve

भारतीय ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) के चेयरपर्सन एमएस साहू ने कहा है कि दबाव वाली संपत्ति के समाधान के लिए नए विकल्पों के प्रयोग को लेकर परिस्थितियां अनुकूल जान पड़ती हैं। अब बाजार अदालत की निगरानी में चलने

नई दिल्लीः भारतीय ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) के चेयरपर्सन एमएस साहू ने कहा है कि दबाव वाली संपत्ति के समाधान के लिए नए विकल्पों के प्रयोग को लेकर परिस्थितियां अनुकूल जान पड़ती हैं। अब बाजार अदालत की निगरानी में चलने वाले दिवाला प्रक्रिया और अदालत के दायरे से बाहर की प्रक्रिया के बीच के एक नए विकल्प को लेकर उम्मीद कर रहा है। 

ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता (आईबीसी) दबाव वाली संपत्तियों के मामले में बाजार आधारित और समयबद्ध तरीके से समाधान में मदद कर रहा है और अब एक पहले से तैयार (प्री-पैक) रूपरेखा भी काम हो रहा है। साहू ने कहा, ‘‘चूंकि ऋण शोधन प्रक्रिया से जुड़े कुछ कार्य औपचारिक प्रक्रिया शुरू होने से पहले पूरे कर लिए जाते हैं तथा औपचारिक प्रक्रिया के कुछ मामलों से बचा जा रहा है, ऐसे में प्री-पैक समाधान से लागत और समय दोनों की बचत होती है।'' 

आईबीसी को क्रियान्वित कर रहे आईबीबीआई ने संबंधित पक्षों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए कई कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि ज्यादातर देशों में कोविड-19 संकट जैसी आपात स्थिति के कारण कई व्यवहारिक कारोबार एक साथ विफल हुए और अपने पैरों में पर खड़े नहीं रह पाए। ऋण शोधन व्यवस्था को इस तरह की स्थिति से उत्पन्न हालात से निपटने के लिए तैयार नहीं किया गया था। साथ ही उन्हें संकट से बचाने के लिए समाधान आवेदनों की उपलब्धता को लेकर भी चिंता है। 

साहू ने कहा, ‘‘इस स्थिति ने पहले से तैयार रूपरेखा की जरूरत को रेखांकित किया है। यह व्यवस्था कामकाज को कम-से-कम प्रभावित करते हुए तेजी से मामले पर विचार करती है, यह लागत प्रभावी और दबाव वाली संपत्ति के समाधान में उपयुक्त है।'' ई-मेल के जरिए दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि चीजों से सीखने और परिवेश के परिपक्व होने तथा कर्जदाता एवं कर्जदार के बीच निष्पक्ष संबंध के साथ ऐसा जान पड़ता है कि दबाव वाली संपत्ति के समाधान के लिए नए विकल्पों का उपयोग करने को जमीन तैयार है। 

साहू ने कहा, ‘‘बाजार ऐसे समाधान रूपरेखा की वकालत और उम्मीद कर रहा है जो अदालत की निगरानी में ऋण शोधन रूपरेखा और अदालत के बाहर पुनर्गठन योजनाओं के बीच की ‘हाइब्रिड' (मिली-जुली) रूपरेखा हो, इस व्यवस्था में सबसे लोकप्रिय पहले से तैयार रूपरेखा है।'' आमतौर पर, प्री-पैक प्रक्रियाओं में कर्जदाता, शेयरधारक और मौजूदा प्रबंधन/प्रवर्तक एक साथ आकलन कर संभावित खरीदार की तलाश कर सकते है। उसके बाद, वे मामले को मंजूरी के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के पास ले जाने से पहले समाधान योजना पर बातचीत कर सकते हैं। एक दिसंबर 2016 से पिछले साल सितंबर तक आईबीसी के तहत कुल 4,008 कंपनी ऋण शोधन समाधान प्रक्रियाएं (सीआईआरपी) शुरू हुई। 

आईबीबीआई के आंकड़े के अनुसार इनमें से 473 मामले अपील, समीक्षा या निपटान के तहत बंद कर दिए गए जबकि 291 मामलों को वापस ले लिया गया। वहीं, 1,025 मामलों में परिसमापन के आदेश दिए गए और 277 में समाधान योजना को मंजूरी दी गई। सीआईआरपी एक दिसंबर, 2016 से प्रभाव में आया। कोविड-19 महामारी के कारण सरकार ने आईबीसी के तहत पिछले साल 25 मार्च से किसी नए मामले को लाने की कार्यवाही को निलंबित किया हुआ है। पिछले महीने निलंबन की इस अवधि को मार्च तक बढ़ा दिया गया है। 

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