2025 तक 14 अरब डॉलर का बाजार बनेगा को-लिविंग क्षेत्रः रिपोर्ट

Edited By jyoti choudhary,Updated: 18 Dec, 2019 12:27 PM

co living sector to become  14 billion market by 2025 report

देश के शीर्ष-30 शहरों में को-लिविंग क्षेत्र का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। छात्रों और पेशेवरों की बढ़ती मांग के कारण यह क्षेत्र 2025 तक दोगुना बढ़कर करीब 14 अरब डॉलर (करीब 99.35 हजार करोड़ रुपए) का बाजार बन सकता है। वर्तमान में इस क्षेत्र का बाजार...

नई दिल्लीः देश के शीर्ष-30 शहरों में को-लिविंग क्षेत्र का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। छात्रों और पेशेवरों की बढ़ती मांग के कारण यह क्षेत्र 2025 तक दोगुना बढ़कर करीब 14 अरब डॉलर (करीब 99.35 हजार करोड़ रुपए) का बाजार बन सकता है। वर्तमान में इस क्षेत्र का बाजार 6.67 अरब डॉलर का है। को-लिविंग आवास का एक ऐसा आधुनिक रूप है, जहां लोग रहने के स्थान को आपस में साझा करते हैं।

वैश्विक संपत्ति सलाहकार कंपनी कुशमैन एंड वेकफील्ड ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट ‘को-लिविंग रिडिफाइनिंग अर्बन रेंटल लिविंग’ में कहा है कि को-लिविंग क्षेत्र सालाना 11.2 फीसदी की दर से बढ़ेगा। इस क्षेत्र में 2025 तक बेड की मांग बढ़कर 57 लाख हो जाएगी, जो वर्तमान में 41.9 लाख है। कुशमैन एंड वेकफील्ड इंडिया के कंट्री हेड एवं एमडी अंशुल जैन ने कहा, ‘को-लिविंग तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है। देश के शीर्ष-30 शहरों में इसमें 2025 तक दोगुना से अधिक वृद्धि की उम्मीद है। भारत में को-लिविंग मॉडल में सबसे अधिक युवा (छात्र एवं पेशेवर) रहते हैं।’

अंतरराष्ट्रीय निवेशक भी लगा रहे हैं पैसा
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में को-लिविंग बाजार तेज गति से विकसित हो रहा है। भविष्य की मांग को देखते हुए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय संस्थागत निवेशक इस क्षेत्र में लगातार पैसा लगा रहे हैं। 2019 की चौथी तिमाही तक देशभर के प्रमुख को-लिविंग शहरों में बेड की क्षमता दो लाख से अधिक है, जिसके 2021 तक बढ़कर 6 लाख तक पहुंचने का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि युवा जैसे-जैसे कार्यबल का हिस्सा बनते जाएंगे, उन्हें रहने के लिए किराए के आवास की जरूरत होगी लेकिन बड़े शहरों और महानगरों में मकान तलाशना आसाना नहीं है। इसके अलावा, उच्च शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों के रहने के लिए आवास की सुविधा सीमित है। ऐसे में देश में छात्रों और पेशेवरों की बढ़ती संख्या इस क्षेत्र की वृद्धि में मददगार साबित हो सकती है। 

बदल जाएगा आवास बाजार का स्वरूप 
रिपोर्ट में कहा गया है कि रोजगार या शैक्षणिक अवसरों की पेशकश करने वाले शहरों या स्थानों में साझा किराये के आवास की अवधारणा नई नहीं है। बाहरी श्रमबल और छात्र पिछले तीन-चार दशक से इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। हालांकि, पढ़ाई या नौकरी के लिए नए शहरों की ओर रुख करने वाले युवाओं को मकान मालिकों के नकारात्मक रवैये के कारण आवास की सुविधा नहीं मिल पाती है, जो को-लिविंग कारोबार को बढ़ाने में सहायक साबित हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, को-लिविंग कारोबार विकसित होने के साथ शहरी इलाकों में किराए वाले आवास बाजार का स्वरूप बदल जाएगा।

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