घरेलू तांबा उद्योग के मुनाफे में लग रही सेंध

Edited By ,Updated: 11 Jan, 2016 11:49 AM

copper industry aditya birla

बीते साल मई से तांबे की वैश्विक कीमतों में गिरावट का असर अब देसी कंपनियों के मुनाफे पर भी नजर आने लगा है। इस साल ट्रीटमेंट

मुंबईः बीते साल मई से तांबे की वैश्विक कीमतों में गिरावट का असर अब देसी कंपनियों के मुनाफे पर भी नजर आने लगा है। इस साल ट्रीटमेंट और रिफाइनिंग (टीसी/आरसी) शुल्क पिछले साल से कम रहने की सूरत में उनका मुनाफा और सिकुड़ सकता है। मेटल बुलेटिन की रिपोर्ट के अनुसार चीन की सबसे बड़ी कॉपर स्मेल्टर चियांग्सी कॉपर और चिली की तांबा खान आंतोफागस्ता ने 2016 के लिए टीसी/आरसी के लिए 97.35 डॉलर प्रति टन और 9.7735 सेंट प्रति एलबी (पाउंड) की दरों पर सहमति जताई है। रिपोर्ट के अनुसार अनुसार ये दरें पिछले साल की प्रसंस्करण दरों के मुकाबले 9 फीसदी और 10.7 फीसदी कम हैं। 

हिंदुस्तान कॉपर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ''अगर स्मेल्टर और खननकर्ता अब भी बातचीत कर रहे हैं तो यह बिल्कुल स्पष्ट है कि बाजार में मंदी का रुख है। भारतीय स्मेल्टरों के लिए हमें पिछले साल के मुकाबले टीसी/आरसी सौदे 10 फीसदी कम कीमत पर मिल रहे हैं।'' टीसी/आरसी दरों के लिए भारतीय तांबा स्मेल्टिंग कंपनियां जापानी-कोरियाई बेंचमार्क का पालन करती हैं और आमतौर पर जनवरी के आखिर में या फरवरी की शुरूआत में समझौता हो जाता है। तांबा टीसी/आरसी का भुगतान खननकर्ताओं द्वारा स्मेल्टरों को दिया जाता है और यह तांबा उद्योग की कमाई का एक अहम हिस्सा है। टीसी/आरसी में कटौती कंपनी के प्रदर्शन के लिहाज नकारात्मकता का संकेत है।  

आदित्य बिड़ला समूह की प्रमुख कंपनी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज, सार्वजनिक क्षेत्र की हिंदुस्तान कॉपर और अनिल अग्रवाल के वेदांत समूह की स्टरलाइट इंडस्ट्रीज देसी बाजार की तीन सबसे बड़ी तांबा स्मेल्टिंग कंपनियां हैं। इनमें से हिंदुस्तान कॉपर एकमात्र ऐसी कंपनी है जो स्मेल्टिंग गतिविधियों के अलावा खनन कार्य में भी लगी हुई है। दुनिया में ज्यादातर धातुओं के सबसे बड़े उपभोक्ता देश चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी की वजह से मई से ही वैश्विक स्तर पर तांबे की कीमतों में गिरावट का रुख देखने को मिल रहा है। औद्योगिक धातुओं की कीमतें इस हफ्ते लुढ़ककर सात साल के निचले स्तर 4,486 डॉलर प्रति टन के स्तर पर आ गई जबकि पिछले साल मई में तांबे की कीमत 6,500 डॉलर प्रति टन के स्तर पर थीं।

हाजिर टीसी/आरसी शुल्कों में मध्य-2015 से ही तांबे की तरह गिरावट का रुझान देखने को मिल रहा है। ब्रोकरेजों का कहना है कि देसी स्मेल्टिंग कंपनियां इसके असर से अछूती रहीं क्योंकि उन्होंने खननकर्ताओं से लंबी अवधि के सौदे कर रखे हैं। एसकेएस कैपिटल ऐंड रिसर्च के पोर्टफोलियो प्रबंधक गिरिराज डागा ने कहा, ''कॉपर स्मेल्टिंग कंपनियों का मुनाफा पिछले दो वर्षों से उच्चतम स्तर पर था। अब टीसी/आरसी दरों में करीब 10 फीसदी गिरावट के साथ ही इन कंपनियों के मुनाफे पर भी सालाना आधार पर करीब 7-8 फीसदी असर पड़ सकता है। यह पहला मौका होगा जब इन कंपनियों पर तांबे की कीमतों में आई गिरावट का असर पड़ेगा।''

 

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