बैंकों के हर 100 में से 76 रुपए डुबो रहे हैं नीरव-माल्या जैसे कॉर्पोरेट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Mar, 2018 03:05 AM

corporates like nirav mallya are dropping 76 out of every 100 of the banks

नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे कॉर्पोरेट बैंकों को कैसे खोखला कर रहे हैं, वह आर.बी.आई. के नए आंकड़ों से साफ हो जाता है। बैंकों के कुल डूबे लोन (एन.पी.ए.) में से 76 प्रतिशत पैसे बड़े कॉर्पोरेट डुबो रहे हैं। यानी अगर किसी बैंक के 100 रुपए डूबते हैं तो...

नई दिल्ली: नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे कॉर्पोरेट बैंकों को कैसे खोखला कर रहे हैं, वह आर.बी.आई. के नए आंकड़ों से साफ हो जाता है। बैंकों के कुल डूबे लोन (एन.पी.ए.) में से 76 प्रतिशत पैसे बड़े कॉर्पोरेट डुबो रहे हैं। 

यानी अगर किसी बैंक के 100 रुपए डूबते हैं तो उसमें से 76 रुपए प्रमुख तौर पर कॉर्पोरेट द्वारा डुबोए जाते हैं, जबकि बाकी रकम छोटे कारोबारी, किसान, होम लोन, एजुकेशन लोन लेने वाले कस्टमर की वजह से डूब रही है। खास बात यह है कि पिछले 4 साल में कॉर्पोरेट्स के लोन डिफॉल्ट की हिस्सेदारी काफी तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2013 में यह 59 रुपए के लैवल पर थी। यानी बैंकों के डूबे 100 रुपए में कॉर्पोरेट की हिस्सेदारी 59 रुपए हुआ करती थी। 

कैसे बढ़ता गया कॉर्पोरेट फ्रॉड
आर.बी.आई. के आंकड़ों के अनुसार गैर-प्राथमिकता वाले सैक्टर (जिसके तहत प्रमुख रूप से कॉर्पोरेट लोन आते हैं) की वर्ष 2017 में बैंकों के ग्रॉस एन.पी.ए. में 76.6 प्रतिशत हिस्सेदारी थी जबकि प्राथमिकता वाले सैक्टर (एग्री लोन, एजुकेशन, होम और माइक्रो एंड स्मॉल सैक्टर को दिए गए लोन) की हिस्सेदारी 23.4 प्रतिशत थी। रिपोर्ट के अनुसार पिछले 4 साल में यह हिस्सेदारी काफी तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2013 में गैर-प्राथमिकता वाले सैक्टर (जिसके तहत प्रमुख रूप से कॉर्पोरेट लोन आते हैं) की हिस्सेदारी कुल एन.पी.ए. में 59 प्रतिशत थी, जो 2014 में बढ़कर 64.4 प्रतिशत, 2015 में 65.7 प्रतिशत व 2016 में 74.9 प्रतिशत पहुंच गई।

एस.बी.आई. पर सबसे ज्यादा इम्पैक्ट
आर.बी.आई. आंकड़ों के अनुसार गैर-प्राथमिकता वाले सैक्टर (जिसके तहत प्रमुख रूप से कॉर्पोरेट लोन आते हैं) द्वारा किए गए डिफॉल्ट का सबसे ज्यादा असर एस.बी.आई. को हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार एस.बी.आई. में गैर-प्राथमिकता वाले सैक्टर के जरिए हुए एन.पी.ए. की हिस्सेदारी 82.4 प्रतिशत है, जो पिछले 4 साल से लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2013 में यह हिस्सेदारी केवल 55.9 प्रतिशत थी जो अब 82 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इसी तरह प्राइवेट सैक्टर बैंकों में यह हिस्सेदारी पिछले 4 साल में 74 से बढ़कर 82 प्रतिशत तक पहुंच गई है। 

सख्ती की वजह से एन.पी.ए. आ रहे हैं सामने 
बैंकर जी.एस. ङ्क्षबद्रा के अनुसार पिछले 3-4 साल में एन.पी.ए. की समस्या काफी बड़ी हो गई है। इसकी वजह इकोनॉमिक स्लोडाऊन के साथ-साथ नियमों का सख्त होना भी रहा है। आर.बी.आई. ने कई ऐसे कदम उठाए हैं जिसकी वजह से बैंक अब अंडर रिपोॄटग नहीं कर सकते हैं। इसकी वजह से एन.पी.ए. भी काफी तेजी से सामने आ रहे हैं। आर.बी.आई. के आंकड़ों के अनुसार सितम्बर 2017 तक अकेले पब्लिक सैक्टर बैंकों का एन.पी.ए. 8 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। 

देश में 9063 विलफुल डिफॉल्टर
वित्त मंत्रालय के अनुसार दिसम्बर 2017 तक देश में कुल 9063 विलफुल डिफॉल्टर हैं। यानी ये ऐसे लोग हैं जो कर्ज चुकाने की क्षमता रखते हैं लेकिन जानबूझ कर कर्ज नहीं चुका रहे हैं। सरकार के अनुसार अकेले इन 9063 लोगों पर 1.10 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का लोन बैंकों पर बकाया है।

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