ऋण शोधन न्याय प्रक्रिया के लिए ऐतिहासिक है एस्सार स्टील मामले में न्यायालय का फैसला: साहू

Edited By jyoti choudhary,Updated: 24 Nov, 2019 06:35 PM

court s verdict in essar steel case is historic for debt settlement

ऋण शोधन और दिवाला संहिता बोर्ड (आईबीबीआई) के प्रमुख एम एस साहू ने कहा है कि एस्सार स्टील मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय ऋण शोधन कानूनी विधि के लिए ऐतिहासिक है। इससे उन पक्षों पर लगाम लगेगा जो बीच में समाधान प्रक्रिया बाधित करने का प्रयास करते...

नई दिल्लीः ऋण शोधन और दिवाला संहिता बोर्ड (आईबीबीआई) के प्रमुख एम एस साहू ने कहा है कि एस्सार स्टील मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय ऋण शोधन कानूनी विधि के लिए ऐतिहासिक है। इससे उन पक्षों पर लगाम लगेगा जो बीच में समाधान प्रक्रिया बाधित करने का प्रयास करते हैं। ऋण शोधन एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) 2016 के तहत कंपनी ऋण शोधन प्रक्रिया (सीआईआरपी) के समयबद्ध निपटान के प्रावधान हैं। आईबीबीआई के प्रमुख ने कहा कि लागू होने के तीन साल में संहिता एक व्यापक और समृद्ध कानूनी प्रक्रिया साबित हुआ है। इस दौरान हर अदालती फैसले के बाद ऋण शोधन कानून की जड़ें मजबूत होती रही हैं। 

उच्चतम न्यायालय ने 15 नवंबर को ऋण शोधन समाधान प्रक्रिया के तहत आर्सेलर मित्तल की एस्सार स्टील के 42,000 करोड़ रुपए में अधिग्रहण के लिए रास्ता साफ कर दिया। कानूनी चुनौतियों के कारण यह लंबे समय से लंबित था। साहू ने कहा कि फैसला समाधान पेशेवर, समाधाव आवेदनकर्ता, कर्जदाताओं की समिति (सीओसी), न्यायाधिकरण और अपीलीय प्राधिकरण की भूमिका स्पष्ट करता है। उन्होंने कहा, ‘‘यह निर्णय ऋण शोधन न्याय प्रक्रिया के मामले में ऐतिहासिक है। यह भारत में ऋण शोधन कानून के बुनियादी ढांचे के अनुरूप है।''

अन्य बातों के अलावा न्यायालय का फैसला समाधान प्रक्रिया के दौरान लाभ के वितरण का भी समाधान करता है और समाधान योजना के बाद दावों पर लगाम लगाता है। साहू ने कहा, ‘‘यह (फैसला) अपवादस्वरूप मामलों को छोड़कर कंपनी ऋण शोधन प्रक्रिया के लिए 330 दिन की समयसीमा को बरकरार रखता है। यह समाधान योजना के तहत राशि के वितरण से जुड़े प्रावधानों को भी बरकरार रखता है।'' उन्होंने कहा, ‘‘यह एस्सार के मामले में आर्सेलर मित्तल की समाधान योजना पर मुहर लगाता है जिसे कर्जदाताओं की समिति ने संशोधित किया और स्वीकार किया। इससे उन पक्षों पर अंकुश लगेगा जो विभिन्न आधार पर बीच में समाधान प्रक्रिया रोकने की कोशिश करते थे। इससे सीआईआरपी के समयबद्ध तरीके से निपटान की प्रक्रिया दुरूस्त हुई है।'' आईबीबीआई के आंकड़े के अनुसार 30 सितंबर की स्थिति के अनुसार 2,540 से अधिक मामलों को इस संहिता के तहत कार्रवाई के लिए दाखिल किया जा चुका है। इसमें से 1,497 मामलों में समाधान की कार्रवाई चल रही है। 

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