देश में सर्वाधिक रोजगार देने वाले टैक्सटाइल्स उद्योग पर संकट जारी

Edited By jyoti choudhary,Updated: 05 Aug, 2019 10:47 AM

crisis over most textile industry giving jobs to the country

देश में कपास सत्र वर्ष 2019-20 के लिए अभी तक लगभग 116.1 लाख हैक्टेयर में कपास की बुआई हो चुकी है तथा हाल ही में हुई बारिश से बुआई में तेजी भी बनी हुई है। अभी तक कपास की बुआई पिछले वर्ष के मुकाबले 4.88 प्रतिशत से अधिक है। वर्ष 2017-18

जैतोः देश में कपास सत्र वर्ष 2019-20 के लिए अभी तक लगभग 116.1 लाख हैक्टेयर में कपास की बुआई हो चुकी है तथा हाल ही में हुई बारिश से बुआई में तेजी भी बनी हुई है। अभी तक कपास की बुआई पिछले वर्ष के मुकाबले 4.88 प्रतिशत से अधिक है। वर्ष 2017-18 सत्र के दौरान कपास की कुल 126.7 लाख हैक्टेयर में बुआई हुई थी। भारत का कपास उत्पादन में सर्वाधिक स्थान आता है। 

सूत्रों की मानें तो इस बार कपास की बुआई पिछले वर्ष के मुकाबले कम रह सकती है लेकिन कपास की वर्तमान फसल को देखते हुए ऐसा लगता है कि उत्पादन 4 करोड़ गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) हो सकता है। अभी तक कपास फसल के लिए मौसम अनुकूल चल रहा है और आगे भी मौसम अनुकूल रहने के कयास लगाए जा रहे हैं। 

सूत्रों के अनुसार मौसम अनुकूल रहा तो भारत कपास उत्पादन में विश्व भर में प्रथम रहेगा। गजराज टैक्सटाइल्स लि. सामाना के मैनेजिंग डायरैक्टर भानू प्रताप सिंगला के अनुसार देश में सबसे अधिक रोजगार टैक्सटाइल्स उद्योग दे रहा है लेकिन यह उद्योग 3-4 माह से बड़ी आॢथक संकट में आ चुका है। 

देश में कपास उत्पादन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है लेकिन कपास भाव बहुत अधिक होने से भारत अंतर्राष्ट्रीय मार्कीट के साथ मुकाबला नहीं कर सकता है। कपास का एम.एस.पी. बहुत अधिक है। सरकार को टैक्सटाइल्स उद्योग के भारी आॢथक संकट को देखते हुए कपास भाव पर कंट्रोल करना चाहिए और भारतीय कपास निगम को रूई कताई मिलों को ही बेचनी चाहिए। 
सिंगला व सतलुज स्पिन टैक्स लिमिटेड मानसा के एम.डी. शामलाल गोयल भोला ने पी.एम. मोदी व कपड़ा मंत्री ईरानी से आग्रह किया है कि भारतीय यार्न निर्यात को कम से कम 5 प्रतिशत तुरंत इन्सैंटिव दिया जाए और कताई मिलों की सबसिडी जो पिछले 3-4 सालों से कपड़ा मंत्रालय में रुकी पड़ी है, को तुरन्त जारी किया जाए। इससे भारतीय टैक्सटाइल्स उद्योग को एक बहुत बड़ी आर्थिक राहत मिल जाएगी। 

भारत से लगभग 1.50 से 1.75 करोड़ गांठ का यार्न व रूई निर्यात होती है। अंतर्राष्ट्रीय मार्कीट में यार्न सस्ता होने से भारतीय यार्न की मांग बुरी तरह से ठप्प है। भारतीय यार्न के भाव काफी बढ़ गए हैं क्योंकि भारत में कपास का एम.एस.पी. ऊंचा होने से यार्न महंगा तैयार होता है। यार्न के बड़े-बड़े स्टॉक होने से बहुत मिलों ने 25-30 प्रतिशत खपत कम कर दी है। मिलों ने डिस्पैरिटी में बड़ा धन खराब किया है।

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