मुनाफे का स्वाद खो रही दार्जिलिंग की चाय, कई बागान बिक्री पर लगे

Edited By jyoti choudhary,Updated: 30 May, 2021 03:32 PM

darjeeling tea losing its taste of profits many gardens are on sale

देश में प्रीमियम चाय का उत्पादन करने वाले दार्जिलिंग के चाय बागानों और चाय उत्पादकों के लिए 2017 में गोरखालैंड आंदोलन के बाद शुरू हुआ बुरा दौर थमने का नाम नहीं ले रहा। 2017 के गोरखालैंड आंदोलन के बाद 2020 में कोरोना महामारी और अब 2021 में मौसम की...

बिजनेस डेस्कः देश में प्रीमियम चाय का उत्पादन करने वाले दार्जिलिंग के चाय बागानों और चाय उत्पादकों के लिए 2017 में गोरखालैंड आंदोलन के बाद शुरू हुआ बुरा दौर थमने का नाम नहीं ले रहा। 2017 के गोरखालैंड आंदोलन के बाद 2020 में कोरोना महामारी और अब 2021 में मौसम की दुश्वारी के बाद दार्जिलिंग के कई बागान बिक्री पर लगे हैं लेकिन उन्हें खरीदार नहीं मिल रहा। इस बीच निर्यातकों को नेपाल से भी चुनौती मिल रही है और उत्पादकों का नुक्सान कम होने का नाम नहीं ले रहा।

कम बरसात से दार्जिलिंग में उत्पादन पर असर
इस साल मौसम की दुश्वारियों के कारण भारी नुक्सान हो रहा है। बरसात की कमी के कारण देश में उम्दा चाय उत्पादन करने वाले दार्जिलिंग के 87 चाय बागानों में इस साल उत्पादन कम हो कर 50 फीसदी रह गया है। गुडरिक ग्रुप के सी.ई.ओ. अतुल अस्थाना ने कहा कि चाय बागानों के लिए पत्तों की तुड़ाई का पहला दौर निर्णायक होता है और पहले दौर में पत्तों की तुड़ाई से ही पूरे सीजन के उत्पादन की जमीन तैयार होती है।

पिछले साल मार्च महीने में देश में लॉकडाऊन होने के कारण चाय बागानों में काम करने वाले लोग घरों में ही रहने पर मजबूर हो गए थे लिहाजा पहले चरण की तुड़ाई नहीं हो पाई और इस साल बरसात की कमी के कारण नुक्सान झेलना पड़ रहा है।

भारतीय चाय के निर्यात में गिरावट, नेपाल को मिलने लगे आर्डर
चमोन्ग ग्रुप के चेयरमैन अशोक लोहिया ने कहा कि 2017 में 104 दिन तक चले गोरखालैंड आंदोलन से चाय का उत्पादन 72 प्रतिशत कम हो गया और इस दौरान उत्पादकों को 70 प्रतिशत की राजस्व हानि हई | चाय का उत्पादन न होने के कारण उत्पादक विदेशों में निर्यात नहीं कर पाए और भारतीय चाय के जर्मनी और यू.के.जैसे बड़े आयातको ने नेपाल का रुख कर लिया और नेपाल ने बड़े पैमाने पर यूरोप में चाय निर्यात करनी शुरू कर दी। जर्मनी भारतीय चाय का सबसे बड़ा आयातक है और 10 साल पहले तक जर्मनी भारत से 2 मिलियन किलोग्राम चाय का आयात करता था और यह पिछले साल कम हो कर 1.5 मिलियन किलोग्राम रह गया है। चाय के उत्पादन और निर्यात में लगातार गिरावट आ रही है जबकि लागत के मुताबिक कीमतों में वृद्धि नहीं हो रही।

पिछले साल चाय का उत्पादन 6.7 मिलियन किलोग्राम रहा है। 8 साल पहले यह 9 मिलियन किलोग्राम था जबकि आठ साल पूर्व चाय का निर्यात 4.14 मिलियन किलोग्राम था जो पिछले साल कम हो कर 3.10 मिलियन किलोग्राम रह गया। इसी साल जनवरी में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी बढ़ा कर 202 रुपए करने से लेबर पर आधारित इस इंडस्ट्री की लागत बढी है। एक चाय उत्पादक ने कहा कि दार्जिलिंग में शायद ही कोई ऐसा चाय बागान होगा जिसे इस समय मुनाफा होगा और कई बागान इस समय बिक्री पर लगे हैं लेकिन उन्हें कोई खरीदार नहीं मिल रहा।

पिछले साल के मुकाबले 25 प्रतिशत कम उत्पादन
दार्जिलिंग स्थित टी. रिसर्च एसोसिएशन (टी.आर.ए.) के वरिष्ठ विज्ञानी एस.सनिग्रही का मानना है कि अप्रैल के महीने में पहले चरण की तुडाई चरम पर होती है और करीब 20 फीसदी फसल का उत्पादन होता है और इसी दौरान कंपनियां करीब 30 प्रतिशत राजस्व कमाती हैं। टी.आर.ए. के आंकड़ों के मुताबिक इस साल अप्रैल तक चाय उत्पादन 2020 के मुकाबले 24.73 प्रतिशत कम है जबकि 2019 के मुकाबले यह कमी 48.86 प्रतिशत है। इस साल मई में उत्पादन 3 से 5 प्रतिशत और कम हो सकता है क्योंकि कम बरसात के अलावा चाय के बागानों में हए कीटों के हमले का असर आना अभी बाकी है। इसका मतलब है कि मई और जून के महीने का उत्पादन भी पहले से ही प्रभावित हो चुका है।

पहले चरण की तुड़ाई में होने वाली चाय की पैदावार महंगे दाम पर बिकती है और टी.बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल दार्जिलिंग में कोरोना के कारण हुए लॉकडाऊन के चलते पहले चरण की पैदावार 2019 के मुकाबले 16 प्रतिशत कम हुई थी। चाय के उत्पादन में यह कमी सिर्फ दार्जिलिंग में ही देखने को नहीं मिली बल्कि असम और पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में करीब 137 मिलियन किलोग्राम चाय उत्पादन का नुकसान हुआ है। चाय के उत्पादन में वैश्विक स्तर पर 22 प्रतिशत की कमी आई है और इसका मुख्य कारण भारत में चाय उत्पादन में 10 प्रतिशत की कमी है।

दाम बढ़ें लेकिन उत्पादकों को फायदा नहीं
लॉकडाऊन के दौरान बड़ी संख्या में लोग घरों में रहने पर मजबूर हुए और उनके घर में काम करने के दौरान चाय की खपत बढ़ गई। हालांकि इस दौरान घर से बाहर होने वाली चाय की खपत में कमी आई लेकिन इसके बावजूद चाय की कीमतों में तेजी देखने को मिली रेटिंग एजैसी इकरा की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर के बागानों की सी.टी.सी. (क्रश्ड, टियर और मशीन प्रोसैस्ड) की कीमत में 50 प्रतिशत की तेजी आई है और यह 70 रुपए प्रति किलो तक महंगी हो गई है जबकि दक्षिण भारत की इसी तरह की चाय की कीमत में 46 प्रतिशत तेजी आई है और यह 44 रुपए प्रति किलो महंगी हुई है लेकिन दार्जिलिंग के चाय उत्पादकों को इसका फायदा नहीं हुआ। 

इकरा के प्रैजीडैंट कोशिक दास ने कहा कि दार्जीलिंग की प्रीमियम चाय निर्यात की जाती है और पहले चरण की तुड़ाई में उसका उत्पादन गिरने से उत्पादों को नुक्सान हो गया। यहां की जो प्रीमियम चाय देश में आम दुकानदारों द्वारा बेची जाती है, लॉकडाकत में उनकी दुकाने बंद होने के कारण बिक्री नहीं हो पाई। वित्त वर्ष 2020-21 में दार्जिलिंग के चाय बागानों की औसतन 350 रुपए प्रति किलो के हिसाब से नीलामी हुई है जबकि 2019-20 में यह नीलामी 330 रुपए प्रति किलो के हिसाब से हुई थी।
 

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