Edited By Supreet Kaur,Updated: 07 Aug, 2018 10:01 AM
2 साल पहले एेपल के मुख्य कार्याधिकारी टिम कुक ने भारत बारे कहा था कि यहां दुनिया के जाने-माने और पसंदीदा ब्रांड्स में से एक एेपल को लेकर लोगों में काफी उत्साह है। एेपल भारतीय ग्राहकों के साथ ही सरकार की ब्रांड के प्रति दिलचस्पी को भुनाने के लिए देश...
बिजनेस डेस्कः 2 साल पहले एेपल के मुख्य कार्याधिकारी टिम कुक ने भारत बारे कहा था कि यहां दुनिया के जाने-माने और पसंदीदा ब्रांड्स में से एक एेपल को लेकर लोगों में काफी उत्साह है। एेपल भारतीय ग्राहकों के साथ ही सरकार की ब्रांड के प्रति दिलचस्पी को भुनाने के लिए देश में विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने की संभावना तलाश रही थी। हालांकि आज की तारीख में कम्पनी का विनिर्माण संयंत्र तो भारत में स्थापित नहीं हो पाया, वहीं एेपल की बाजार हिस्सेदारी में अन्य कम्पनियों ने सेंध लगा दी है जिससे इसकी हिस्सेदारी में तेज गिरावट दर्ज की गई।
अक्तूबर-दिसम्बर 2017 में इसकी बाजार हिस्सेदारी 47 प्रतिशत थी जो जनवरी-मार्च में 20 प्रतिशत और अप्रैल-जून 2018 में 13.6 प्रतिशत रह गई। यह आंकड़ा काऊटरप्वॉइंट रिसर्च से जुटाए गया है। इसकी तुलना में वनप्लस जैसे ब्रांड्स की बाजार हिस्सेदारी बढ़ी है और इसने एेपल को तीसरे नंबर पर धकेल दिया है। काऊंटप्वॉइंट रिसर्च ने कहा कि अप्रैल-जून में एेपल की बाजार हिस्सेदारी भारत में सबसे निचले स्तर पर चली गई क्योंकि अब तक कभी भी उसकी हिस्सेदारी 14 प्रतिशत से नीचे नहीं गई थी।
वनप्लस की बाजार हिस्सेदारी 40 प्रतिशत पहुंची
दूसरी ओर अप्रैल-जून में प्रीमियम स्मार्टफोन बिक्री के लिहाज से चीन की कम्पनी वनप्लस की बाजार हिस्सेदारी 40 प्रतिशत पहुंच गई और सैमसंग 34 प्रतिशत के साथ दूसरे पायदान पर रही। प्रीमियम फोन का मतलब 30,000 रुपए और उससे अधिक कीमत वाले फोन से हैं। एेपल की बाजार हिस्सेदारी में कमी का एक प्रमुख कारण हैंडसैट पर आयात शुल्क में बढ़ौतरी है। दिसम्बर 2017 से हैंडसैट के आयात पर 3 बार शुल्क बढ़ाया गया है। इसके साथ ही कम्पनी ने भारत में अपनी वितरण रणनीति में भी व्यापक बदलाव किया है।
एेपल की रणनीति में बदलाव
कम्पनी की रणनीति में बदलाव के पीछे आयात शुल्क को देखते हुए एेपल की योजना भारत प्रथम रणनीति से पीछे हटना तो नहीं है? यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि कम्पनी के 90 प्रतिशत से ज्यादा आईफोन भारत में आयात किए जाते हैं। सूत्रों का कहना है कि शुल्क में लगातार बढ़ौतरी से एेपल लंबे समय तक अपने उत्पादों पर छूट देने की स्थिति में नहीं रह सकती है।