कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव का अभी सही आकलन कर पाना मुश्किल: RBI

Edited By rajesh kumar,Updated: 26 Aug, 2020 01:30 PM

difficult accurately assess economic impact of covid 19 rbi

रिजर्व बैंक ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव का सही आकलन करना मुश्किल है क्योंकि अभी नयी स्थितियां उभर ही रही हैं। आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा, ‘कोविड-19 महामारी से जुड़ी स्थितियां अभी तेजी से उभरती जा रही हैं।

नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव का सही आकलन करना मुश्किल है क्योंकि अभी नयी स्थितियां उभर ही रही हैं। आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा, ‘कोविड-19 महामारी से जुड़ी स्थितियां अभी तेजी से उभरती जा रही हैं। ऐसे में इसके पूर्ण वृहत आर्थिक प्रभाव का सही आकलन करना मुश्किल है।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 और उसकी रोथाम के लिये लगाये गये ‘लॉकडाउन’ के भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभावों के बारे में नव केंसवादी मान्यताओं वाले तैयार गतिशील संभाव्यताओं पर आधारित सामान्य संतुलन (डीएसजीई) के मॉडल से एक अस्थायी और मोटा आकलन प्राप्त होता है।

इस मॉडल के तहत यह माना गया कि संक्रमण के मामले अगस्त 2020 में उच्च स्तर पर होंगे और जब अर्थव्यवस्था सर्वाधिक प्रभावित होगी और अर्थव्यवस्था की संभावनाओं की तुलना में वस्तविक उत्पादन 12 प्रतिशत कम हो जाएगा। इस माडल में को तीन आर्थिक अभिकर्ताओं..परिवार, कंपनी और सरकार रख कर आकलन किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार ‘लॉकडाउन’ में लोगों (परिवार) को घर पर रहना पड़ रहा है, इससे कंपनियों के लिये श्रमिकों की आपूर्ति प्रभावित हुई है। गैर-जरूरी सामानों के उपलब्ध नहीं होने और आय कम होने से खपत घटी। लोगों के मिलने-जुलने पर प्रतिबंध से महामारी का प्रसार थमता है।

आरबीआई ने कहा कि मॉडल में दूसरो परिदृश्यों की कल्पना की गयी है। पहला, लॉकडाउन एक से श्रमिकों की आपूर्ति और उत्पादकता कम होने से अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष पर असर पड़ता है।दूसरी स्थिति, लॉकडाउन दो है। इसमें सीमांत लागत में वृद्धि पर विचार किया गया है। दोनों ही परिदृश्य में मुद्रास्फीति में कमी की संभावना देखी गयी। दूसरी स्थिति में कंपनियां लाभ पर असर होने के कारण उत्पादन कम करेंगी। वेतन में कम वृद्धि होगी और अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर गिरावट होगी। आरबीआई ने कहा हालांकि इस परिदृश्य में महामारी से ठीक होने की दर तीव्र होती दिखती है। इसका कारण लोगों के बीच संपर्क के अवसरों का सीमित होना है।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘इसके उलट पहली स्थिति में उत्पादन में कटौती कम दिखती है पर इससे संक्रमण में वृद्धि के कारण मांग में संकुचन ज्यादा होने की की संभावना है। इस प्रकार, लॉकडाउन के परिदृश्य में अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट आती है लेकिन महामारी के मोर्चे पर सुधार अधिक तेजी से होता है।’ तीसरा परिदृश्य यह माना गया है जिससमें सरकार लॉकडाउन नहीं लगती है और महामारी अधिक व्यापक होती। इस स्थिति में जनवरी 2021 के दूसरे पखवाड़े में संक्रमण उच्चतम स्तर पर होता और इससे ठीक होने की दर धीमी होती।

आरबीआई ने कहा, ‘‘इस स्थिति में श्रम की कमी निरंतर बनी रहती और आपूर्ति झटकों के कारण मुद्रास्फीति तथा उत्पादन अंतर पर दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता। इससे एक तरफ जहां मुद्रास्फीति निरंतर बढ़ती हुई होती वहीं संभावित उत्पादन में गिरावट की प्रवृत्ति होती। रिपोर्ट के अनुसार संक्षेप में, लॉकडाउन के बिना कोवि-19 आपूर्ति को बुरी तरह प्रभावित करती। यह मुद्रास्फीति में लगातार वृद्धि और उत्पादन के स्थायी नुकसान का कारण बनता। ‘लॉकडाउन’ दो की स्थिति जो वास्तविकता के करीब जान पड़ती है, में 2020-21 की अप्रैल-जून तिमाही में आर्थिक गतिविधियों में गिरावट निचले स्तर तक पहुंचती है और इसके बाद वृद्धि में 2020-21 की जनवरी-मार्च तिमाही से सकारात्मक बढ़ोतरी के साथ इसमें (आर्थिक गतिविधियों) धीरे-धीरे सुधार आता है।


 

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