Edited By rajesh kumar,Updated: 28 Jul, 2020 03:44 PM
एचडीएफसी लि. के चेयरमैन दीपक पारेख ने सोमवार को आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास से आग्रह किया कि वे कर्ज की किस्त लौटाने के लिये दी गयी मोहलत आगे नहीं बढ़ायें क्योंकि कई इकाइयां भुगतान की क्षमता रखने के बावजूद इस योजना का अनुचित लाभ उठा रही हैं और इससे...
नई दिल्ली: एचडीएफसी लि. के चेयरमैन दीपक पारेख ने सोमवार को आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास से आग्रह किया कि वे कर्ज की किस्त लौटाने के लिये दी गयी मोहलत आगे नहीं बढ़ायें क्योंकि कई इकाइयां भुगतान की क्षमता रखने के बावजूद इस योजना का अनुचित लाभ उठा रही हैं और इससे वित्तीय क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। कोविड-19 संकट को देखते हुए रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों और वित्तीय संस्थानों की तरफ से दिये गये कर्ज की किस्त लौटाने को लेकर छह महीने के लिये दी गयी मोहलत अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो रही है। अब इस छूट को तीन महीने के लिये और बढ़ाये जाने की मांग हो रही है क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण आय पर असर अब भी बना हुआ है। देश के कई भागों में ‘लॉकडाउन’ फिर से लगाये जाने से कारोबारी गतिविधियां सामान्य नहीं हो पायी हैं।
किस्त लौटाने की अवधि न बढ़ाएं
उद्योग मंडल सीआईआई द्वारा आयोजित कार्यक्रम के दौरान आरबीआई गवर्नर के साथ बातचीत के एक सत्र में पारेख ने दास से अनुरोध किया, ‘कृपया कर्ज की किस्त लौटाने को लेकर दी गयी मोहलत की अवधि नहीं बढ़ायें क्योंकि हम यह देखते हैं कि जिन लोगों के पास भुगतान की क्षमता है, चाहे वह व्यक्ति हो या फिर कंपनी, वे इसका बेजा लाभ ले रही हैं और भुगतान को टाल रही हैं।’ उन्होंने कहा ऐसी चर्चा है कि इसे तीन महीने के लिये और बढ़ाया जा सकता है, इससे हम पर असर पड़ रहा है और इससे खासकर छोटी एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) प्रभावित हो रही हैं। इस पर आरबीआई के गवर्नर ने कहा कि वह इस समय कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन उन्होंने सुझाव सुन लिया है।
‘लॉकडाउन में दी थी तीन महीने की राहत
उल्लेखनीय है कि मार्च में आरबीआई ने ‘लॉकडाउन’ से कर्जदारों को राहत देने के लिये कर्ज की किस्त लौटाने को लेकर तीन महीने की राहत दी। यह राहत एक मार्च से 31 मई तक भुगतान वाले किस्तों के लिये दी गयी। बाद में 22 मार्च को रिर्जव बैंक ने मोहलत अवधि 31 अगस्त तक के लिये बढ़ा दी। पारेख ने यह भी सुझाव दिया कि केंद्रीय बैंक को वित्तीय संस्थानों के बांड सीधे खरीदने चाहिए क्योंकि यह कुछ अन्य देशों में हो रहा है। उन्होंने कहा वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंक निजी क्षेत्र के बांड, वाणिज्यिक पत्रों को खरीदता है..., आपने यह रुख अपनाया है कि हम बैंकों को कोष देंगे और बैंक इन उत्पादों को खरीदेंगे। इस पर दास ने कहा कि देश में कानून इसकी अनुमति नहीं देता। हालांकि उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में एक लाख करोड़ रुपये के बांड जारी किये गये जो पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही के मुकाबले कहीं अधिक है।
दास ने कहा, ‘..ज्यादातर संसाधन ‘एएए’ रेटिंग वाले बांड में गये जबकि ‘एए’ और ‘ए’ रेटिंग वाले बांड में पैसा नहीं गया।’ सरकार कुछ योजनाएं लायी है। इसमें दबाव वाली एनबीएफसी और आवास वित्त कंपनियों से बांड की खरीद और पहले नुकसान पर 20 प्रतिशत तक की गारंटी शामिल है। दास ने कहा कि ‘एएए’ रेटिंग से नीचे वाले बांड में भी गतिविधियां देखी जा रही हैं और केंद्रीय बैंक द्वारा नकदी बढ़ाने के उपायों के साथ स्थिति बदली है।
आरबीआई चीजों पर नजर बनाए हुए
उन्होंने कहा, ‘मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि आरबीआई चीजों पर नजर रखे हुए है...जब भी कुछ कदम उठाने की जरूरत होगी, हम पहल करने से नहीं झिझकेंगे।’ पारेख ने गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में वृद्धि से बचने के लिये एक बारगी पुनर्गठन की भी वकालत की। उन्होंने कहा कि अगले साल मार्च में एनपीए बढ़कर करीब 12 से 15 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। ‘अगर एनबीएफसी और आवास वित्त कंपनियों को पुनर्गठन की अनुमति मिलती है, हम भविष्य की समस्या से स्वयं को बचा सकते हैं।’