बेहद धूमिल है आर्थिक हालात, आने वाले समय में यह और भी बुरी हो सकती: ड्रेज़

Edited By jyoti choudhary,Updated: 05 Apr, 2020 05:42 PM

economic conditions are very bleak it could be worse in the coming times

भारत की मैक्रोइकोनॉमिक स्थिति बेहद धूमिल है और लोकल व देशव्यापी स्तर पर लॉकडाउन जारी रहता है तो आने वाले समय में यह और भी खराब हो सकती है। जाने माने अर्थशास्त्री जीन ड्रेज़ ने रविवार को यह बात कही।

नई दिल्लीः भारत की मैक्रोइकोनॉमिक स्थिति बेहद धूमिल है और लोकल व देशव्यापी स्तर पर लॉकडाउन जारी रहता है तो आने वाले समय में यह और भी खराब हो सकती है। जाने माने अर्थशास्त्री जीन ड्रेज़ ने रविवार को यह बात कही। ड्रेज़ ने आगे कहा कि लॉकडाउन की वजह से देश के कई कोने में सामाजिक अस्थिरता बढ़ रही है। कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए एहतियात के तौर पर 21 दिन का लॉकडाउन किया गया है।

न्यूज एजेंसी PTI से खास बातचीत में ड्रेज़ ने कहा, 'स्थित बेहद धूमिल है और आने वाले समय में यह और भी बुरी हो सकती है। अभी भी लगता है कि लोकल या राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन जारी रह सकता है। संभव है कि वैश्विक मंदी भारतीय ​अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित करे।' 

रोजगार पर पड़ेगा असर
भारतीय ​अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस आउटब्रेक के इम्पैक्ट पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि रोजगार पर इसका असर पड़ेगा। कुछ सेक्टर्स बुरी तरह प्रभावित होंगे। हालांकि, संकट की इस घड़ी में मेडिकल केयर जैसे सेग्मेंट में ग्रोथ देखने को मिल सकती है।

बैंकिंग सेक्टर पर भी पड़ेगा असर
उन्होंने कहा, '​अधिकतर सेक्टर्स की स्थिति खराब होती है तो उनके लिए खतरा पैदा हो सकता है...यह ठीक वैसा है जैसे किसी साइकिल एक पहिया पंक्चर हो जाए तो आप उम्मीद नहीं कर सकते हैं ​वो कितनी आगे तक जाएगी। आसान शब्दों में कहें तो अगर यह संकट कुछ और समय के लिए रहता है तो अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करेगा। इसमें बैंकिंग सेक्टर भी शामिल होगा।' 

प्रवासी मजूदरों की होगी कमी
ड्रेज़ का कहना है कि लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजूदर हैं तो अपने घरों तक चल पड़ेंगे। आने वाले कुछ समय के लिए वो शहरों की तरफ बढ़ने में हिचकेंगे। उन्होंने कहा, 'अगर किसी के पास थोड़ी बहुत जमीन भी नहीं है तो उन्हें अपने घर पर रहकर काम करना भी मुश्किल होगा।' उन्होंने आगे कहा कि कई ऐसे सेक्टर्स हैं, जो प्रवासी मजूदर पर अधिक निर्भर हैं। ऐसे में इन सेक्टर्स में मजूदरों की कमी हो सकती है। 

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