भारत में पैठ बनाने के लिए स्थानीयकरण पर जोर दे रही आइकिया

Edited By jyoti choudhary,Updated: 10 Nov, 2018 03:44 PM

emphasizing on localization to make penetration in india

स्वीडिश होम फर्निशिंग कंपनी आइकिया भारत में अपने बिजनेस को लेकर काफी सावधानी बरत रही है। कंपनी नहीं चाहती कि उससे इस तरह की कोई गलती हो जो उसने चीन में की थी। इसलिए वर्तमान में कंपनी का मुख्य फोकस दो चीजों स्थानीयकरण

नई दिल्लीः स्वीडिश होम फर्निशिंग कंपनी आइकिया भारत में अपने बिजनेस को लेकर काफी सावधानी बरत रही है। कंपनी नहीं चाहती कि उससे इस तरह की कोई गलती हो जो उसने चीन में की थी। इसलिए वर्तमान में कंपनी का मुख्य फोकस दो चीजों स्थानीयकरण (लोकलाइजेशन) और प्रतिस्पर्धी मूल्यों (कॉम्पिटिटिव प्राइस) पर है। बता दें कि आइकिया ने भारत में अपना पहला स्टोर इसी साल अगस्त में हैदराबाद में खोला था।

कंपनी द्वारा ऑफर किए जा रहे 7,500 प्रॉडक्ट्स के दाम अन्य जगहों की तुलना में भारत में ज्यादा अफॉर्डेबल हैं। आइकिया की इंडियन वेबसाइट पर फ्रीहेटेन कॉर्नर सोफा बेड विद स्टोरेज 37,500 रुपए की कीमत पर लिस्टेड है जबकि इसी प्रॉडक्ट की यूके में कीमत 43,000 रुपए है। आइकिया स्थानीय लोगों की टेस्ट का भी पूरा ख्याल रख रहा है। जैसे अधिकांश भारतीय या तो हाथ से खाते हैं या चम्मच का प्रयोग करते हैं। शायद ही कभी कांटे वाली चम्मच का उपयोग करते हैं। इसलिए कंपनी ने बच्चों के प्लास्टिक कटलरी पैक को हटा दिया और इसके बजाय सिर्फ 15 रुपए विभिन्न रंगों के चार चम्मच बेचना शुरू कर दिया हैं। 

आइकिया इंडिया के स्ट्रैटिजिक प्लानर अमिताभ पांडे कहते हैं, हम अपने ग्लोबल पोर्टफोलियो के हिसाब से कई उत्पादों को भारत में कम लागत पर बेच रहे हैं और कम मार्जिन पर काम कर रहे हैं लेकिन हम जानते हैं कि वॉल्यूम इसके लिए तैयार होगा। कंपनी का कहना है कि उसको भारतीय परिवारों की जरूरतों के हिसाब से प्रॉडक्ट्स के स्थानीयकरण का एहसास हुआ और वैसे भी मार्केट को जीतने के लिए ग्राहक ही मुख्य घटक है जो दाम के प्रति बेहद संवेदनशील है। भारतीय ग्राहक किसी भी मल्टीनैशनल प्रॉडक्ट को प्रीमियम के रूप में देखता है। 

अमिताभ पांडे जो तकरीबन 15 सालों तक पेप्सिको के साथ काम कर चुके हैं, कहते हैं, आइकिया ने अपना हैदराबाद स्टोर लॉन्च करने से 18 महीने पहले देश की लंबाई और चौड़ाई के हिसाब से 1000 से अधिक घरेलू सर्वे किए थे। उन्होंने कहा, 'लोगों को उनके प्राकृतिक पर्यावरण में देखने और उनसे बात करने से कहीं ज्यादा बेहतर कुछ भी नहीं है। हमने देखा कि उन्होंने कैसे खाना पकाया, कैसे सोया और किस तरह बैठे, और फिर हमने सोचा कि कैसे हम उनके मौजूदा मेन्यु को उनके अनुरूप बनाने के लिए ट्विक कर सकते हैं।'  

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