Edited By Supreet Kaur,Updated: 30 Apr, 2018 09:42 AM
चने का बम्पर प्रोडक्शन इस बार किसानों के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आया है। बीते वर्ष के मुकाबले किसानों को चने का भाव 42 प्रतिशत तक कम मिल रहा है। वर्ष 2017 में अप्रैल के दूसरे सप्ताह में मध्यप्रदेश की मंडियों में चने की औसत कीमत 5931 रुपए प्रति क्विंटल...
नई दिल्लीः चने का बम्पर प्रोडक्शन इस बार किसानों के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आया है। बीते वर्ष के मुकाबले किसानों को चने का भाव 42 प्रतिशत तक कम मिल रहा है। वर्ष 2017 में अप्रैल के दूसरे सप्ताह में मध्यप्रदेश की मंडियों में चने की औसत कीमत 5931 रुपए प्रति क्विंटल थी, जो 2018 में गिरकर 3446 रुपए पर आ गई है। यह गिरावट 41.9 प्रतिशत की है। चने का न्यूनतम समर्थन मूल्य बोनस सहित 4400 रुपए है। इस वजह से देश के चना किसानों को करीब 6000 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ेगा। कृषि मंत्रालय के मुताबिक देश में इस बार चने का रिकॉर्ड 11.10 मिलियन टन उत्पादन हुआ है।
इस तरह से हो रहा नुक्सान
इस बार चने का कुल उत्पादन 1100 लाख किं्वटल हुआ है। सरकार ने चना खरीद का लक्ष्य 424.4 क्विंटल रखा है। यानी इसके बाद जो चना बचता है वह ओपन मार्कीट में बेचा जाएगा और उसका भाव बाजार तय करेगा। चने का एम.एस.पी. 4400 रुपए प्रति क्विंटल है और मार्कीट प्राइस 3300 से लेकर 3500 रुपए के बीच है। जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अविक साहा के मुताबिक हर एक क्विंटल पर किसान को 900 से 1100 रुपए का नुक्सान उठाना पड़ रहा है।
सरकार नहीं ले रही एक्शन
मार्कीट मिरर ग्रुप के एग्री रिसर्च हैड हितेशा भाला कहते हैं कि आने वाले वक्त में चने की स्थिति में सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। जब तक सरकार सट्टेबाजी पर लगाम नहीं लगाती तब तक बाजार में उछाल नहीं आएगा, मगर सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। सरकार की नीतियों के चलते कृषि प्रधान देश में हालात बहुत ही गंभीर हो गए हैं। अगर अभी पॉलिसी लैवल पर एक्शन नहीं हुए तो हम ये भी नहीं कह पाएंगे कि भारत एक कृषि प्रधान देश है।