Edited By jyoti choudhary,Updated: 21 Dec, 2018 11:48 AM
कृषि कर्जमाफी की उम्मीद में बहुत से किसान लोन चुकाना बंद कर देते हैं और इसका असर बैंकों की वित्तीय स्थिति पर पड़ता है। इसके बाद बैंक नए लोन बांटने पर तब तक सुस्त हो जाते हैं, जब तक सरकार उन्हें पैसे ना लौटा दे लेकिन
नई दिल्लीः कृषि कर्जमाफी की उम्मीद में बहुत से किसान लोन चुकाना बंद कर देते हैं और इसका असर बैंकों की वित्तीय स्थिति पर पड़ता है। इसके बाद बैंक नए लोन बांटने पर तब तक सुस्त हो जाते हैं, जब तक सरकार उन्हें पैसे ना लौटा दे लेकिन इसमें कई सालों का वक्त लग जाता है। यह किसानों के लिए पूंजी पूर्ति को धीमा कर देता है और इस वजह से बहुत से किसानों को कर्ज के लिए नॉन बैंकिंग स्रोत का रुख करना पड़ता है।
ताजा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 2014-15 से जून 2018 के बीच कृषि संबंधित नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट (NPA) दोगुना होकर करीब 10.6 फीसदी हो गया। राज्य स्तरीय बैंकर्स कमिटी के मुताबिक, जून से पहले करीब एक साल में कृषि लोन पर NPA बढ़कर 24 फीसदी हो गया है। राजस्थान में कार्यरत एक सीनियर बैंकर ने कहा, 'यह स्वभाविक है, जब कर्जदार कर्जमाफी की उम्मीद देखते हैं तो बैंकों को पेमेंट करना बंद कर देते हैं। राजस्थान में भी अब यही ट्रेंड दिख रहा है।' गौरतलब है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम के साथ ही राजस्थान में भी कर्जमाफी की घोषणा की गई है।
राज्य सरकारें हिसाब में करती हैं देरी
मार्च 2018 में कृषि NPA करीब 5.1 फीसदी था लेकिन लोन डिफॉल्ट समस्या का एक हिस्सा है। बैंकों की बड़ी चिंता यह भी है कि सरकारें कर्जमाफी के बाद उनको पैसा चुकाने में कई साल लगा देती हैं। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु ने 2016 में 6,041 करोड़ रुपए कर्जमाफी की घोषणा की थी लेकिन सरकार कॉपरेटिव संस्थाओं को 3,169 करोड़ रुपए अगले पांच साल में देगी।