पानी बचाने के लिए धान की जगह मक्का की खेती करें किसान

Edited By jyoti choudhary,Updated: 07 Jul, 2019 11:57 AM

farmers cultivate maize instead of paddy to save water

वर्षा की अनिश्चितता, भूगर्भ जल के गिरते स्तर और तापमान में वृद्धि के कारण खरीफ के दौरान धान की जगह खेत में मेड़ बनाकर मक्का की खेती की नई विधि विकसित कर ली गई है जो न केवल किसानों के लिए आर्थिक रुप से लाभदायक है बल्कि बड़ी मात्रा में पानी की बचत में...

नई दिल्लीः वर्षा की अनिश्चितता, भूगर्भ जल के गिरते स्तर और तापमान में वृद्धि के कारण खरीफ के दौरान धान की जगह खेत में मेड़ बनाकर मक्का की खेती की नई विधि विकसित कर ली गई है जो न केवल किसानों के लिए आर्थिक रुप से लाभदायक है बल्कि बड़ी मात्रा में पानी की बचत में सहायक भी है।

राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा (समस्तीपुर) ने दस वर्षो के अनुसंधान के बाद मेड़ बना कर खरीफ मक्का की खेती की विधि विकसित की है। बिहार में एक किलो मक्का की पैदावार के लिए 1150 से 9500 लीटर पानी की जरुरत होती है जबकि इतनी ही धान की पैदावार के लिए 3500 से 5000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

विश्वविद्यालय के मक्का अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिक मृत्युंजय कुमार ने बताया कि खेत में स्थायी तौर पर मेड़ बनाकर उस पर मक्का और अन्य फसलों की खेती से फसलों को पानी की कम जरुरत होती है, प्राकृतिक रुप से पोषक तत्वों का निर्माण होता है जिसका लाभ पौधों को मिलता है और सौर ऊर्जा का बेहतर उपयोग होता है। इससे पैदावार में वृद्धि होती है। स्थायी तौर पर मेड़ के रहने से किसानों को हर फसल में जुताई का खर्च भी बचता है।

देश में मक्का उत्पादन में बिहार सातवें स्थान पर है और यहां खरीफ के दौरान 2.4 लाख हेक्टेयर में तथा रबी के दौरान 2.8 लाख हेक्टेयर में मक्का की खेती की जाती है। खरीफ के मक्का की पैदावार 6.2 लाख टन और रबी के दौरान इसकी पैदावार 21.3 लाख टन होती है। राज्य में मक्के के बीज का भी निजी क्षेत्र में उत्पादन किया जाता है। आम तौर पर किसान समतल जमीन पर मक्का की खेती करते हैं जिससे पानी की अधिक जरुरत होती है और कई बार बीज से पौधा निकलने की दर भी कम होती है। परम्परागत विधि की तुलना में मेड़ पर मक्का लगाने से नाले में पानी दिया जाता है जो परम्परागत विधि की तुलना में काफी कम होता है और पौधों को नमी अधिक समय तक मिलती है जिससे पोषक तत्वों का लाभ भी उसे भरपूर मिलता है। इस विधि से बीज में अंकुरण भी अच्छा होता है।

समस्तीपुर और बेगूसराय जिले में 2009 से 2018 तक अलग अलग पद्धति से मक्के की खेती के दस प्रयोग किए गए जिसमें स्थायी मेड़ विधि को उत्पादन और लागत की द्दष्टि से सार्वाधिक उपयुक्त पाया गया। इस विधि में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 67 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 18 सेंटीमीटर रखा गया था। परम्परागत विधि की तुलना में मेड़ विधि से खेती पर लगभग दस प्रतिशत अधिक पैदावार ली गई। समस्तीपुर और बेगूसराय में तो 14 प्रतिशत से अधिक पैदावार ली गई। वर्ष 2004 से 2013 के दौरान बिहार के समस्तीपुर, बेगूसराय, कटिहार और पूर्णिया जिले में भूगर्भ जल का स्तर दो से तीन मीटर नीचे चला गया है जिसके कारण मेड़ विधि से मक्के की खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ा है।

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