फ्लैट मिलने में देरी हुई तो बिल्डर देगा हर महीने 20 हजार जुर्माना

Edited By ,Updated: 25 Jan, 2016 12:56 PM

flat parsvnath developers

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग का यह फैसला फ्लैट खरीदने वाले लोगों के लिए बड़ी राहत का सबब हो सकता है।

लखनऊः राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग का यह फैसला फ्लैट खरीदने वाले लोगों के लिए बड़ी राहत का सबब हो सकता है। आयोग ने पार्श्वनाथ डिवेलपर्स को प्रॉजैक्ट में देरी होने पर फ्लैट खरीदने वाले ग्राहकों को प्रति माह 20,000 रुपए का हर्जाना दिए जाने का आदेश दिया है। आयोग ने लखनऊ के गोमतीनगर में पार्श्वनाथ प्लैनेट नाम से चल रहे प्रॉजैक्ट में देरी होने के मामले में यह कड़ा फैसला सुनाया है। 

आयोग ने आदेश दिया है कि बिल्डर को 175 स्केवयर मीटर का फ्लैट बुक कराने वाले लोगों को 15 हजार रुपए प्रति माह का मुआवजा देना होगा। इसके अलावा इससे बड़े फ्लैट बुक कराने वाले लोगों को फ्लैट मिलने तक हर महीने 20 हजार रुपए का भुगतान करने का फैसला सुनाया है। यह आदेश एनसीडीआरसी के उस आदेश के एक महीने बाद आया है, जिसमें गुड़गांव के कुछ प्रॉजैक्ट्स में देरी पर बिल्डरों को प्रॉजैक्ट्स में देरी के लिए सालाना 12 फीसदी का हर्जाना देने का आदेश दिया गया था। 

पार्श्वनाथ के मामले में आयोग ने पाया कि बिल्डर ने 2006 में ग्राहकों के साथ डील की थी, इसके तहत 42 महीनों के अंतराल में फ्लैट दिए जाने की बात थी, यह अवधि 2009-10 में पूरी हो रही थी लेकिन अब तक ग्राहकों को फ्लैटों का आवंटन नहीं किया जा सका है। 

आदेश के मुताबिक डील होने के 54वें महीने से पेनल्टी शुरू होगी और यह फ्लैटों के आवंटित होने तक जारी रहेगी। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने कहा कि डील के दौरान पार्श्वनाथ डिवेलपर्स ने आदेश दिया था कि यह प्रॉजैक्ट लखनऊ डिवेलपमेंट अथॉरिटी से अप्रूव्ड है और इसके लिए सभी जरूरी परमिशन ले ली गई हैं लेकिन जब फ्लैटों के आवेदक जब पूरी राशि जमा कराने के बाद कंस्ट्रक्शन साइट पर पहुंचे तो बताया गया कि काम रूका हुआ है और यह 2015 तक पूरे हो पाएंगे। यही नहीं पहले से तय शर्तों के मुताबिक निर्माण कार्य भी नहीं किया गया है।

पार्श्वनाथ डिवेलपर्स के अधिकारी ने पूरे मामले को लेकर कहा, ''यह आदेश हमें दो दिन पहले ही मिला है। हम इस पर कानूनी मशविरा करेंगे।'' वहीं, ग्राहकों के अधिवक्ता ने सर्वेश शर्मा ने कहा कि हम इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक का रुख करेंगे ताकि अलॉटमेंट के लिए टाइम लिमिट तय हो सके और इस दौरान अधिकतम मुआवजा दिया जाए।

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