नकदी संकट से टैंशन में FMCG कम्पनियां, सेल्स को लग सकता है झटका

Edited By Supreet Kaur,Updated: 20 Apr, 2018 11:51 AM

fmcg companies in tension due to cash crisis

देश के कई राज्यों में कैश क्रंच होने से फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफ.एम.सी.जी.) कम्पनियों के माथे पर बल पड़ने लगे हैं। उनका कहना है कि इस साल विधानसभा चुनाव वाले 4 राज्यों और उनके आसपास के प्रदेशों में नकदी का संकट पैदा होने से सेल्स रिकवरी को...

नई दिल्लीः देश के कई राज्यों में कैश क्रंच होने से फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफ.एम.सी.जी.) कम्पनियों के माथे पर बल पड़ने लगे हैं। उनका कहना है कि इस साल विधानसभा चुनाव वाले 4 राज्यों और उनके आसपास के प्रदेशों में नकदी का संकट पैदा होने से सेल्स रिकवरी को झटका लग सकता है।

कैश की किल्लत से होगी परेशानी
कम्पनियों का कहना है कि नोटबंदी और जी.एस.टी. के असर से उनका कारोबार धीरे-धीरे उबरने लगा था लेकिन करंसी नोटों की किल्लत से परेशानी हो सकती है। पिछले कुछ हफ्तों से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, बिहार, गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में करंसी शॉर्टेज दिख रही है। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 12 मई को होगा। वहीं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में जनवरी, 2019 तक चुनाव होने हैं। आम चुनाव 2019 की गर्मियों में हो सकते हैं। चुनाव में राजनीतिक दल प्रचार पर बहुत पैसा बहाते हैं और इसमें मुख्य रूप से कैश का इस्तेमाल होता है।

तंगी बढ़ी तो कंजम्पशन पर पड़ेगा असर 
ब्रिटानिया के एम.डी. वरुण बेरी ने कहा कि अगर कैश की तंगी फिर बढ़ेगी तो कंजम्पशन पर असर पड़ेगा। फिलहाल हमारे ट्रेड पार्टनर्स स्टेबल ट्रैंड्स की रिपोर्ट दे रहे हैं लेकिन हम सतर्कता बरत रहे हैं। डाबर इंडिया के सी.ई.ओ. सुनील दुग्गल ने कहा कि अगर कम डिनॉमिनेशन वाले नोटों की तंगी होगी तो इसका असर कंजम्पशन पर निश्चित तौर पर पड़ेगा। रोजमर्रा के ग्रॉसरी कंजम्पशन का तीन-चौथाई से ज्यादा हिस्सा कैश पर निर्भर है।

ट्रेड चैनल्स में पैसे के सर्कुलेशन पर दबाव
संतूर साबुन, फेसवॉश, डिटर्जैंट बनाने वाली विप्रो कंज्यूमर केयर एंड लाइटिंग के चीफ  एग्जीक्यूटिव (कंज्यूमर केयर बिजनैस.इंडिया) अनिल चुघ ने कहा कि पिछले 2 हफ्तों से रूरल मार्कीट्स में हमें कुछ परेशानी दिख रही है। ट्रेड चैनल्स में पैसे के सर्कुलेशन पर दबाव दिख रहा है। कंज्यूमर की ओर से खर्च पर अभी नोटबंदी के दिनों जैसा असर नहीं पड़ा है। उम्मीद है कि यह सब अस्थायी होगा। नवम्बर, 2016 में नोटबंदी के ऐलान के बाद ग्रोथ की राह पर वापसी करने में कंज्यूमर गुड्स सैक्टर को 10-12 महीने लगे थे।  

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