Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jun, 2018 09:00 PM
प्रवासियों के लिए मेलबर्न और फ्रैंकफर्ट के बजाय देश की वाणिज्यक राजधानी मुंबई में रहना ज्यादा महंगा पड़ता है। एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। वैश्विक सलाहकार कंपनी मर्सर के रहन-सहन लागत सर्वेक्षण 2018 के मुताबिक दुनियाभर के बड़े शहरों में लागत के...
मुंबई: प्रवासियों के लिए मेलबर्न और फ्रैंकफर्ट के बजाय देश की वाणिज्यक राजधानी मुंबई में रहना ज्यादा महंगा पड़ता है। एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। वैश्विक सलाहकार कंपनी मर्सर के रहन-सहन लागत सर्वेक्षण 2018 के मुताबिक दुनियाभर के बड़े शहरों में लागत के हिसाब से मुंबई का स्थान 55वां हैं जबकि इस सूची में मेलबर्न 58वें, फ्रैंकफर्ट 68वें, ब्यूनस आयर्स 76वें, स्टाकहोम 89वें, एटलांटा 95वें स्थान पर रहे।
रहन-सहन लागत में मुबंई का ऊपर चढ़ना
इस सूची में शामिल अन्य भारतीय शहरों में दिल्ली 103वें स्थान पर रहा जबकि चेन्नई 144वें, बेंगलूरू 170वें और कोलकाता 182वें स्थान पर रहा। इस लिहाज से भारत के इन शहरों में रहना प्रवासियों के लिए कहीं ज्यादा सस्ता है। अध्ययन के मुताबिक जहां एक तरफ मेलबर्न और ब्यूनास आयर्स जैसे शहर रहन-सहन लागत के मामले में सूची में नीचे आएं हैं मुंबई का इस सूची में ऊपर चढऩा इस बात को भी इंगित करता है कि इस शहर में खाद्य पदार्थों, एल्कोहल और दूसरी घरेलू जरूरतों की महंगाई बढ़ी है।
हांग- कांग इस सूची में सबसे ऊपर
इस सूची में हांग कांग सबसे ऊपर रहा है। हांग कांग रहन-सहन के लिहाज से यहां प्रवास करने आने वाले दूसरे देश के लोगों के लिए सबसे महंगा शहर है। अध्ययन के दौरान जिन भारतीय शहरों में सर्वेक्षण किया गया उनमें सबसे ज्यादा मुद्रास्फीति 5.57 प्रतिशत रही। यह सर्वेक्षण उन्हीं सामानों के लिए किया गया जो एक प्रवासी की जरूरत होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार प्रवासियों के जरूरी सामान जैसे कि मक्खन, मीट, पॉल्ट्री, प्रीमियम कृषि उत्पादों के दाम काफी बढ़े हैं। इसके साथ ही एल्कोहल भी महंगी हुई है।
परिवहन लागत, टैक्सी लागत व अन्य लागतों में बढ़ोत्तरी
इसके साथ ही खेलकूद, फुरसत में समय बिताने जैसी गतिविधियां भी महंगी हुई हैं। परिवहन लागत भी बढ़ी है। टैक्सी किराया तथा अन्य लागतें भी बढ़ी हैं। इस अध्ययन का मकसद बहुराष्ट्रीय कंपनियों और सरकारों के लिए उनके विदेशों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए बेहतर मुआवजा रणनीति तैयार करने के लिहाज से किया गया है। ज्यादातर कंपनियां अपने विदेशों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए रहन-सहन लागत के मुताबिक भत्ता उन्हें देती हैं।