Edited By jyoti choudhary,Updated: 24 Aug, 2018 02:42 PM
रुपए में आ रही नरमी से भारतीय उद्योग जगत के लिए विदेशी मुद्रा में कर्ज लेना महंगा हो रहा है और इससे कंपनियों का मुनाफा भी प्रभावित हो रहा है। विश्लेषकों का कहना है
मुंबईः रुपए में आ रही नरमी से भारतीय उद्योग जगत के लिए विदेशी मुद्रा में कर्ज लेना महंगा हो रहा है और इससे कंपनियों का मुनाफा भी प्रभावित हो रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि कारोबारी घरानों को इस बढ़ी लागत का भार खुद वहन करना होगा क्योंकि घरेलू बाजार में उधारी लेने के अवसर सीमित हैं। इंडिया रेटिंग्स एवं रिसर्च के एसोसिएट निदेशक सौम्यजित नियोगी ने कहा, 'सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कारोबारी घरानों के कर्ज के प्रमुख स्रोत हैं लेकिन फंसे कर्ज के बोझ तले दबे घरेलू बैंक बड़ा कर्ज देने की स्थिति में नहीं हैं।' उन्होंने कहा कि कंपनियों के पास फिलहाल बाहरी स्रोतों से कर्ज लेने की संभावना तलाशने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
बजाज समूह के अध्यक्ष प्रवाल बनर्जी ने कहा, 'देश के जोखिम परिदृश्य के कारण कर्ज की लागत 25 से 50 आधार अंक बढ़ सकती है। अगर जोखिम प्रोफाइल में बदलाव होता है तो इसमें और इजाफा हो सकता है और कर्जदार को बढ़ी लागत वहन करनी होगी।' रुपए में नरमी का असर कंपनियों की कमाई पर दिखने लगा है। अप्रैल-जून 2018 तिमाही में भारतीय कंपनियों का समेकित ब्याज व्यय पिछली 11 तिमाहियों में सबसे तेजी से बढ़ा है। भारतीय उद्योग जगत, खास तौर पर बैंक वैश्विक बाजारों से कर्ज लेने में सबसे आगे रहते हैं।
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2018 को समाप्त साल में भारतीय कारोबारी घरानों ने करीब 42.3 अरब डॉलर का कर्ज विदेशी बाजारों से लिया है, जो चीन से बाहर उभरते बाजारों में सबसे अधिक है। इस दौरान तुर्की की फर्मों ने करीब 40 अरब डॉलर का कर्ज लिया है।
पिछले 12 महीने में भारत का कुल बाह्य कर्ज 12.5 फीसदी बढ़कर मार्च 2018 के अंत में 530 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल मार्च में 471 अरब डॉलर था। इससे पहले 2014 से 2016 तक भारत की बाह्य उधारी लगभग स्थिर रही थी। विश्लेषकों ने कहा कि रुपए में गिरावट से कर्ज लागत बढ़ गई है क्योंकि कर्जदाता लंदन इंटरबैंक ऑफर रेट पर ज्यादा स्प्रेड चाहते हैं। उदाहरण के लिए डॉलर/रुपये का एक साल का फॉरवर्ड प्रीमियम सितंबर 2017 में 80 आधार अंक अधिक था जो अब 320 आधार अंक हो गया है। फॉरवर्ड प्रीमियम रुपए की वायदा और हाजिर दर का अंतर होता है।