वोडाफोन मामले में लड़ाई हारने के बाद कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही है सरकार

Edited By rajesh kumar,Updated: 04 Oct, 2020 12:22 PM

government considering legal after losing battle vodafone case

सरकार वोडाफोन के साथ बहुचर्चित अंतरराष्ट्रीय कर मध्यस्थता (पंचाट) मामले में लड़ाई हारने के बाद अब कानूनी विकल्प़ों पर विचार कर रही है। सिर्फ वोडाफोन ही नहीं, सरकार का केयर्न एनर्जी के साथ भी ऐसा ही मामला चल रहा है।

नई दिल्ली: सरकार वोडाफोन के साथ बहुचर्चित अंतरराष्ट्रीय कर मध्यस्थता (पंचाट) मामले में लड़ाई हारने के बाद अब कानूनी विकल्प़ों पर विचार कर रही है। सिर्फ वोडाफोन ही नहीं, सरकार का केयर्न एनर्जी के साथ भी ऐसा ही मामला चल रहा है। सरकार इस मामले में भी फैसला खिलाफ जाने की स्थिति में विकल्पों पर विचार कर रही है, ताकि नुकसान को कम से कम किया जा सके।

पिछले महीने एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने व्यवस्था दी थी कि भारत सरकार द्वारा पुराने कर कानूनों के जरिये दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज कंपनी वोडाफोन से 22,100 करोड़ रुपये के कर के भुगतान की मांग करना ‘उचित और समान व्यवहार की गारंटी’ का उल्लंघन है। भारत और नीदरलैंड के बीच द्विपक्षीय निवेश संरक्षण करार के तहत यह गारंटी दी गई है।

सिंगापुर में एक अदालत के समक्ष इस फैसले को चुनौती देने पर विचार
वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि सरकार सिंगापुर में एक अदालत के समक्ष इस फैसले को चुनौती देने पर विचार कर रही है। इसके बारे में सरकार कानूनी राय लेकर फैसला करेगी। इस मामले में लागत काफी सीमित है। सरकार को वोडाफोन को कानूनी लागत के रूप में सिर्फ 85 करोड़ रुपये देने होंगे। हालांकि, सरकार ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी पीएलसी से संबंधित एक अलग मध्यस्थता मामले को लेकर भी विचार कर रही है।

यदि कोई अलग मध्यस्थता पैनल पुराने कानूनों के जरिये 10,247 करोड़ रुपये की मांग को गैरकानूनी ठहराता है, तो सरकार को केयर्न को डेढ़ अरब डॉलर या 11,000 करोड़ रुपये देने होंगे। यह राशि केयर्न के उन शेयरों के मूल्य के बराबर होगी, जो सरकार ने कर वसूली के लिए बेचे थे। इसमें लाभांश और जब्त कर रिफंड भी शामिल है। सूत्रों ने बताया कि वोडाफोन इंटरनेशल होल्डिंग (नीदरलैंड की कंपनी) ने फरवरी, 2007 में केमैन आइलैंड की कंपनी सीजीपी इन्वेस्टमेंट्स के 100 प्रतिशत शेयर 11.1 अरब डॉलर में खरीदे थे। इससे उसके पास अप्रत्यक्ष तरीके से भारतीय कंपनी एचिसन एस्सार लि. का 67 प्रतिशत नियंत्रण आ गया था।

जानें क्या है पूरा मामला
कर विभाग का मानना था कि यह सौदा भारत में पूंजीगत लाभ कर बचाने के लिए किया गया था। इसके बाद विभाग ने कंपनी से कर का भुगतान करने की मांग की थी।  उच्चतम न्यायालय ने 2012 में सरकार की इस मांग को खारिज कर दिया था। भारतीय परिसंपत्तियों के इस तरह के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण को रोकने के मकसद से 2012 में कानून में संशोधन किया गया और भारत में इस तरह के हस्तांतरण को कर योग्य बनाया गया। उसके बाद वोडाफोन से नए सिरे से कर का भुगतान करने की मांग की गई।

सूत्रों ने कहा कि केयर्न एनर्जी से कर की मांग का मामला अलग है। यह कंपनी द्वारा भारतीय संपत्तियों को नई कंपनी को स्थानांतरित करने और उन्हें शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कराने से हुए पूंजीगत लाभ से संबंधित मांग है। जे सागर एसोसिएट्स के भागीदार धीरज नायर का मानना है कि सरकार को वोडाफोन मामले में फैसले को चुनौती देनी चाहिए क्योंकि इसका प्रभाव अन्य मध्यस्थता मामलों पर भी पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि असंतुष्ट पक्ष को फैसले को चुनौती देने का अधिकार है। इस तरह फैसले को चुनौती देना न्यायोचित है।
 

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