सरकार ने तेल कंपनियों से की 19,000 करोड़ रुपए की मांग, जानिए क्या है मामला

Edited By vasudha,Updated: 16 Jan, 2020 10:41 AM

government demands rs 19 000 crore from oil companies

केन्द्र सरकार ने तेल कम्पनियों से 19,000 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड डिवीडैंड मांगा है। यह आंकड़ा बीते एक साल की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक है। मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार सरकार अपने खर्च के लिए रकम जुटाना चाहती है। इस सूची में सबसे ऊपर नाम ओ.एन.जी.सी....

बिजनेस डेस्क: केन्द्र सरकार ने तेल कम्पनियों से 19,000 करोड़ रुपए का रिकॉर्ड डिवीडैंड मांगा है। यह आंकड़ा बीते एक साल की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक है। मामले से जुड़े सूत्रों के अनुसार सरकार अपने खर्च के लिए रकम जुटाना चाहती है। इस सूची में सबसे ऊपर नाम ओ.एन.जी.सी. और इंडियन ऑयल का है, जो सरकार को बतौर डिवीडैंड 60 प्रतिशत हिस्सा भुगतान करने वाली हैं। वित्त मंत्रालय ने कम्पनियों से पहले की तरह या उससे अधिक डिवीडैंड देने दे लिए कहा है। कम्पनी के अधिकारियों का कहना है कि मुनाफा गिरने के बावजूद सरकार ने यह मांग की है।

 

सूत्रों का कहना है कि सरकारी तेल कम्पनियों में सरकार की हिस्सेदारी कम हो जाने के बाद भी वह अधिक डिवीडैंड की मांग कर रही हैं। सरकार को ओ.एन.जी.सी. से 6,500 करोड़ रुपए, इंडियन ऑयल से 5,500 करोड़, भारत पैट्रोलियम से 2,500 करोड़, गेल से 2,000 करोड़ और ऑयल इंडिया से 1,500 करोड़ रुपए के डिवीडैंड की उम्मीद है। 

 

क्या होता है डिवीडैंड?
डिवीडैंड यानी लाभांश का मतलब अपने ‘सहयोगी’ के साथ मुनाफा सांझा करना होता है। शेयर मार्कीट की भाषा में सहयोगी का मतलब शेयर होल्डर से है। कम्पनियां अपने शेयर होल्डर को समय-समय पर अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा देती रहती हैं। मुनाफे का यह हिस्सा वे शेयर होल्डर को डिवीडैंड के रूप में देती हैं। डिवीडैंड देने का फैसला कम्पनी की बोर्ड मीटिंग में लिया जाता है। यह पूरी तरह कम्पनी के फैसले पर निर्भर करता है।

 

कम्पनियों में विरोध के सुर 
कम्पनियां इस मांग का विरोध कर रही हैं। वे सरकार से डिवीडैंड की रकम घटाने का अनुरोध करेंगी। उनका कहना है कि यदि सरकार अपने लक्ष्य को कम करे तो उनके लिए यह कड़वा घूंट पीना आसान होगा। अधिकारियों का कहना है कि अधिक डिवीडैंड देने के लिए कम्पनियों को कर्ज भी लेना पड़ सकता है। एक कम्पनी के अधिकारी ने कहा कि सरकार की मांग इस साल के मुनाफे के साथ मेल नहीं खाती। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि अधिक डिवीडैंड का अर्थ कम खर्च या ज्यादा कर होता है। इंजीनियर्स इंडिया (4 प्रतिशत ऊपर) को छोड़ दें तो हालिया छमाही में अन्य सभी सरकारी तेल कम्पनियों की कमाई कम हुई है। हालांकि एक कम्पनी के अधिकारी ने कहा कि सरकार का अधिक डिवीडैंड मांगना जायज है। शेयरधारकों को कम्पनी से कुछ रिटर्न की उम्मीदें होती हैं और कम्पनी प्रबंधन को उन पर खरा उतरने का प्रयास करना चाहिए। बड़ी कम्पनियों के लिए थोड़ा कर्ज लेकर डिवीडैंड देना बड़ी बात नहीं है। 

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