सरकार ने दी राहत, कंपनी डूबने पर होमबायर्स को हिस्सा

Edited By jyoti choudhary,Updated: 23 May, 2018 04:37 PM

government gives relief shareholdings to homeboys on company drowning

केंद्र सरकार ने होम बायर्स को बड़ी राहत देते हुए इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड में बदलाव को मंजूरी दे दी है। बुधवार सुबह हुई कैबिनेट मीटिंग में कोड में बदलाव की सिफारिशों को मंजूरी दे दी।

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने होम बायर्स को बड़ी राहत देते हुए इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड में बदलाव को मंजूरी दे दी है। बुधवार सुबह हुई कैबिनेट मीटिंग में कोड में बदलाव की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। अब किसी रियल्टी कंपनी के डूबने पर उसमें होम बायर्स का भी हिस्सा होगा। रियलटी सेक्टर की कंपनियों के डूबने की स्थिति में अब तक संपत्ति की नीलामी में बैंक का ही हिस्सा होने की बात थी लेकिन अब नीलामी में होम बायर्स का भी हिस्सा होगा। बता दें कि ग्रेटर नोएडा समेत तमाम शहरों में निर्माण कंपनियों के डूबने के मामलों में हजारों होम बायर्स का पैसा फंसा है। ऐसे में सरकार का यह फैसला उनके लिए बड़ी राहत का सबब लेकर आया है। 

यह फैसला देश में उन हजारों परिवारों के लिए राहत है, जिनके पैसे अंडर-कंस्ट्रक्शन रियल्टी प्रॉजेक्ट में फंसे हुए हैं। बैंकरप्ट्सी कोड में बदलाव के लिए गठित कमिटी ने सिफारिश की थी कि दिवालिया बिल्डर की संपत्ति बेचने पर उन घर खरीदारों को भी हिस्सा दिया जाए, जिन्हें पजेशन नहीं मिला है। उनको कितना हिस्सा दिया जाए, यह उस बिल्डर द्वारा लोन पर आधारित होगा। वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि कमिटी की सोच है कि बिल्डर के दिवालिया होने पर उन घर खरीददारों को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता, जिन्हें पजेशन नहीं मिला है। इससे तो उनके सारे पैसे डूब जाएंगे और उन्हें घर भी नहीं मिलेगा। 

कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दिवालिया होने पर बिल्डर या बिल्डर कंपनी की सम्पत्ति बेचने पर जितना धन मिलेगा, उसमें कितना फीसदी घर खरीददारों को दिया जाए, इस बात का फैसला कई पैमानों पर तय किया जा सकता है। सबसे पहले यह देखा जाए कि बिल्डर पर कितना पैसा बकाया है। कितने घर खरीददारों को पजेशन नहीं मिला है और उनकी कितनी देनदारी है। यह देखा जाए कि कितने का लोन बिल्डर पर बकाया है। इसके बाद यह तय किया जाए कि सम्पत्ति बेचने के बाद उससे प्राप्त धन में कितनी हिस्सा घर खरीददारों को दिया जा सकता है। इसके लिए बैंकों और अन्य एक्सपर्ट से बात करके अंतिम फैसला लिया जा सकता है। 
 

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