सरकार सुधार जारी रखे, राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर टिकी रहे: पनगढिय़ा

Edited By jyoti choudhary,Updated: 18 Nov, 2018 04:01 PM

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केंद्र सरकार को वित्त वर्ष 2018-19 के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर टिके रहना चाहिए और पिछले चार साल में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए सुधारों को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिय़ा ने रविवार को ये बातें कही।

नई दिल्लीः केंद्र सरकार को वित्त वर्ष 2018-19 के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर टिके रहना चाहिए और पिछले चार साल में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए सुधारों को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिय़ा ने रविवार को ये बातें कही।

पनगढिय़ा ने कहा कि मौजूदा सरकार ने माल एवं सेवा कर (जीएसटी) तथा दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) जैसे कुछ मुश्किल संरचनात्मक सुधारों को लागू करने की दिशा में शानदार प्रगति की जिन्हें लेकर पिछली सरकारों को दिक्कतें आ रहीं थी। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को राजकोषीय घाटे के संबंध में लक्ष्य में बदलाव नहीं करना चाहिए। राजकोषीय अनुशासन सरकार के लिए प्रमुख उपलब्धि रही है और यह पिछले चार साल में अर्थव्यवस्था में दिखी वृहद आर्थिक स्थिरता में केंद्रीय भूमिका में रहा है।’’ 

सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए 3.3 प्रतिशत राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तय किया है। यह इसलिए भी अहम हो जाता है कि सरकार के 5 साल पूरे होने वाले हैं और 15 मई 2019 से पहले आम चुनाव होने वाले हैं। पनगढिय़ा ने कहा, ‘‘इस स्थिति में उच्च शिक्षा आयोग विधेयक जैसे किसी भी सुधार जिसमें विधायी संशोधन की जरूरत होगी, उसके लिए चुनाव तक रुकना पड़ेगा लेकिन नियमों एवं नियमनों को बदलकर होने वाले सुधार जारी रखे जा सकते हैं। लोक सेवा में सीधी भर्ती ऐसा ही सुधार है। सूचीबद्ध सरकारी कंपनियों का निजीकरण और खस्ताहाल सरकारी कंपनियों को बंद करना भी इसी तरह के अन्य सुधार हैं।’’ 

उन्होंने कहा, जो सबसे महत्वपूर्ण है वह नेतृत्व है। यदि शीर्ष नेतृत्व सुधारों में यकीन रखता है तो आप क्रियान्वयन जारी रख सकते हैं। पनगढिय़ा ने इस बात का भी जिक्र किया कि पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के अंतिम दो साल के दौरान 5.9 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर की तुलना में मौजूदा सरकार के चार साल में वृद्धि दर औसतन 7.3 प्रतिशत रही है। उन्होंने यह भी माना कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में सरकार का नेतृत्व सोनिया गांधी ने ही प्रभावी ढंग से किया लेकिन उनकी संरचनात्मक सुधारों के क्रियान्वयन में कोई दिलचस्पी नहीं थी। 

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