सुधारों के रास्ते पर आगे बढ़ी सरकार, पर उन्हें अंजाम तक पहुंचाने की चुनौती

Edited By ,Updated: 23 Dec, 2016 06:19 PM

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आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर वर्ष 2016 को जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक पारित करने और कालेधन के खिलाफ सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के लिए याद किया जाएगा।

नई दिल्ली: आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर वर्ष 2016 को जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक पारित करने और कालेधन के खिलाफ सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के लिए याद किया जाएगा। 

वर्ष 2016 में सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), बेनामी लेनदेन और नोटबंदी सहित आर्थिक मोर्चे पर कई सुधारों को आगे बढ़ाया है लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं है। सरकार के सामने अब इन सुधारों को अगले साल तार्किक अंजाम तक पहुंचाने की चुनौती होगी। सभी की निगाह वित्त मंत्री अरुण जेतली के आम बजट पर है। बजट में जेतली के समक्ष नोटबंदी की वजह से लोगों के समक्ष आने वाली परेशानियों के मद्देनजर कुछ अतिरिक्त कदम उठाने की चुनौती होगी। 

विशेषरूप से यह देखते हुए कि नए साल में उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार ने कई योजनाएं तथा कानून आगे बढ़ाए हैं। इसके तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा सबसिडी व्यवस्था को पारदर्शी बनाया गया है। वर्ष 2014 में जब राजग सरकार सत्ता में आई थी तो उससे सुधारों के मोर्चे पर काफी बड़ी उम्मीदें लगाई गई थीं लेकिन पहले 2 साल एेसा कोई बड़ा सुधार देखने को नहीं मिला।   सरकार ने किसी बड़े सार्वजनिक उपक्रम का निजीकरण भी नहीं किया।

भूमि अधिग्रहण विधेयक तथा जीएसटी पर भी प्रगति धीमी रही। वहीं इन 2 वर्षों में बुनियादी ढांचे में भी एेसा बड़ा निवेश नहीं हुआ लेकिन वर्ष 2016 में कई बडेे सुधार देखने को मिले। आधार को सामाजिक लाभ स्थानांतरण योजनाओं से जोड़ा गया। दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता को संसद को मंजूरी मिली है। इससे डूबे कर्ज के बोझ से दबे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बड़ी राहत मिल सकती है। साथ ही यह कारोबार की स्थिति सुगम करने में भी मददगार होगा। इसी तरह खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) संशोधन अधिनियम तथा रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) कानून, 2016 सुधारों की दृष्टि से दो अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं। जिन लोगों को पिछले सालों में निराशा हुई थी उनकी धारणा 2016 में बदली है। 

सरकार ने इस साल नवंबर में 500 और 1,000 के नोटों को बंद कर सबको चौंका दिया। नोटबंदी के बाद जिस तरह से घटनाक्रम बदले हैं। यहां तक कि कई घोषणाओं को पलटा भी गया है। उससे आगे सरकार की राह आसान नहीं दिखती है। हालांकि, 2016 में मोदी सरकार को लेकर यह धारणा अवश्य बनी है कि वह बड़े फैसले ले सकती है। सरकार जीएसटी पर संविधान संशोधन को पारित कराने में सफल रही है लेकिन अभी इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए काफी मेहनत करने की जरूरत होगी। इसके अलावा सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बढ़ती गैर निष्पादित आस्तियों की चुनौती से भी निपटना होगा। 

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