Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Jul, 2017 11:39 AM
अब पुराने सामानों की बिक्री के बिजनेस से जुड़े डीलर भी जीएसटी के दायरे में आएंगे। सरकार ने कहा कि गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (जीएसटी)
नई दिल्ली: अब पुराने सामानों की बिक्री के बिजनेस से जुड़े डीलर भी जीएसटी के दायरे में आएंगे। सरकार ने कहा कि गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (जीएसटी) में यदि परचेज प्राइस की तुलना में कम कीमत पर सामान बेचा और खरीदा जाता है तो उस पर जीएसटी नहीं लगेगा। इससे साफ है कि पुराना सामान अगर ज्यादा कीमत पर बेचा गया तो उस पर जी.एस.टी. चुकाना होगा।
हाल में इस पर सवाल उठ रहे थे कि जी.एस.टी.के दायरे में आने वाली मार्जिन स्कीम सेकंड हैंड यानी पुराने सामान के बिजनेस से जुड़े डीलर्स पर लागू होगी या नहीं। इसके बाद ही फाइनेंस मिनिस्ट्री ने यह सफाई जारी की है। जी.एस.टी. के तहत पुराने सामान के डीलरों और इस्तेमाल की जा चुकी बोतलों के कारोबारियों के लिए शुरू की गई मार्जिन स्कीम को लेकर आशंकाएं जताई जा रही हैं।
प्रॉफिट पर लगेगा जी.एस.टी.
पुराने सामान में बदलाव नहीं करने वाली कुछ चीजों जिनके लिए इनपुट क्रेडिट नहीं दिया जाएगा, उन पर सिर्फ गुड्स के परचेज प्राइस और सेलिंग प्राइस में अंतर पर जी.एस.टी. लगेगा। यदि यह अंतर निगेटिव है यानी यदि सेलिंग प्राइस, परचेज प्राइस से कम है तो इसकी अनदेखी की जा सकती है और यही मार्जिन स्कीम है।
डबल टैक्सेशन से बचाने के लिए पहल
मिनिस्ट्री ने कहा कि सेंट्रल टैक्स रेट के संबंध में जारी नोटिफिकेशन में ऐसे रजिस्टर्ड लोगों को सेंट्रल टैक्स छूट दी गई है जो गैर रजिस्टर्ड लोगों से पुराने गुड्स की खरीद और बिक्री का बिजनेस करता है और इन गुड्स की आउटवर्ड सप्लाई पर सेंट्रल टैक्स चुकाता है। फाइनेंस मिनिस्ट्री के मुताबिक, रजिस्टर्ड लोगों को गुड्स की सप्लाई पर डबल टैक्सेशन से बचाना है, क्योंकि मार्जिन स्कीम के तहत काम करने वालों को सेकंड हैंड गुड्स की खरीद पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का फायदा नहीं मिलता।
जी.एस.टी. के दायरे में आएंगी लीगल सर्विसेस
टैक्स डिपार्टमेंट ने साफ किया कि एडवोकेट्स द्वारा दी जाने वाली लीगल सर्विसेस जी.एस.टी. के दायरे में आएंगी, लेकिन इस टैक्स की देनदारी क्लाइंट की ही होगी।