कीटनाशक और रासायनिक खाद से पर्यावरण को खतरा:प्राक्लन समिति

Edited By shukdev,Updated: 30 Dec, 2018 08:25 PM

hazard of environment from pesticides and chemical fertilizers

भारत में ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र के लगातार बढ़ते योगदान में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की अग्रणी भूमिका चिंताजनक स्तर पर पहुंचने के कारण पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जैविक और जीरो बजट खेती को इस संकट का कारगर...

नई दिल्ली: भारत में ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र के लगातार बढ़ते योगदान में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की अग्रणी भूमिका चिंताजनक स्तर पर पहुंचने के कारण पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जैविक और जीरो बजट खेती को इस संकट का कारगर उपाय बताया है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए मंत्रालय की कार्ययोजना को लागू करने के बारे में संसद की प्राक्लन समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अविवेकपूर्ण तरीके से कीटनाशकों का इस्तेमाल पर्यवरण प्रदूषण का मुख्य कारण बन गया है।

भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली समिति की हाल ही में लोकसभा में पेश रिपोर्ट में कीटनाशकों और खाद के अलावा गेहूं, चावल, सरसों और सोयाबीन सहित 11 प्रमुख फसलों का ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में योगदान का स्पष्ट उल्लेख है। समिति के समक्ष मंत्रालय द्वारा पेश विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों के हवाले से कहा गया है कि कीटनाशक पर्यावरण में हवा, मिट्टी और पानी को दूषित करने के प्रमुख कारक हैं। भारत में कीटनाशकों के इस्तेमाल का स्तर दुनिया में सबसे कम (0.6 किग्रा प्रति हेक्टेयर) है लेकिन इसका अविवेकपूर्ण और असावधानी से होने वाला इस्तेमाल पर्यावरण के लिए खतरा बन गया है।

रिपोर्ट के अनुसार इससे न सिर्फ मनुष्यो एवं अन्य जीवों की सेहत को खतरा है बल्कि पेड़ पौधों, खरपतवार और लाभदायक कीट पतंगों के वजूद के लिए संकटकारी बन गया है। मंत्रालय ने समिति को बताया है कि भारत ने कृषि से ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन के आंकलन के लिए देसी मॉडल विकसित किया है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित इस मॉडल के तहत ग्रीनहाऊस गैसों के सर्वाधिक उत्सर्जन वाली 11 फसलों (चावल, गेंहू, मक्का, चारा, बाजरा, आलू, मूंगफली, सरसों, मटर,चना और सोयाबीन) से उत्सर्जन का आंकलन किया जा सकता है। भारत सहित 46 देशों में दो हजार स्थानों पर इस मॉडल का प्रयोग किया जा रहा है।

मंत्रालय की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार जैविक खेती ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन और मिट्टी में कार्बन डाइ ऑक्साइड के अवशोषण को कम करने में अहम भूमिका निभाती है। क्योंकि ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन के प्रमुख कारक के रूप में नाइट्रोजन तत्वों का प्रयोग जैविक खेती में बिल्कुल नहीं नहीं होता है। समिति ने जैविक खेती से कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में 48-66 प्रतिशत गिरावट के अनुमान को देखते हुए इसे बढ़ावा देने के हरसंभव उपाय करने का सुझाव दिया है। फिलहाल सिक्किम शत प्रतिशत जैविक खेती वाला देश का पहला राज्य है। इसके अलावा समिति ने विभिन्न फसलों पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों और फसलों के उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए जीरो बजट प्राकृतिक खेती को भी देशव्यापी बनाने की सिफारिश की है।

बिना रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल वाली खेती की इस पद्धति में सिचाई में पानी के परंपरागत इस्तेमाल की सिर्फ दस प्रतिशत हिस्सेदारी है। देश में फिलहाल 50 लाख किसान ही इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। मंत्रालय की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार जीरो बजट खेती से कपास के उत्पादन में 11 प्रतिशत, धान में 12 प्रतिशत, मूंगफली में 23 प्रतिशत और मिर्च के उत्पादन में 34 प्रतिशत इजाफा दर्ज किया गया है। जबकि जीरो बजट प्रणाली में इन फसलों की उत्पादन लागत आधी रह जाती है।

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