उत्तर प्रदेश में शीतकालीन अमरूद के उत्पादन में भारी गिरावट

Edited By jyoti choudhary,Updated: 24 Oct, 2021 12:57 PM

huge fall in winter guava production in uttar pradesh

मौसम में हो रहे बदलाव का असर बागवानी फसलों पर होने लगा है और इस बार विश्व प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश के अमरूद उत्पादन क्षेत्र में इसके शीतकालीन फसल के उत्पादन में भरी गिरावट आई है। इस बार बारिश का मौसम अत्यधिक थी और यह

नई दिल्लीः मौसम में हो रहे बदलाव का असर बागवानी फसलों पर होने लगा है और इस बार विश्व प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश के अमरूद उत्पादन क्षेत्र में इसके शीतकालीन फसल के उत्पादन में भरी गिरावट आई है। इस बार बारिश का मौसम अत्यधिक थी और यह सितंबर तक जारी रही। बरसात के मौसम की अधिकता के कारण सर्दियों की फसल के उत्पादन के लिए फूल नहीं आए क्योंकि बारिश के मौसम की अधिक होने के कारण नए कल्ले नहीं निकले।

किसानों के अनुसार सर्दियों की फसल पिछले वर्ष की फसल का लगभग 20 प्रतिशत थी। वर्षा ऋतु की फसल का अधिक मात्रा में होने का एक अन्य कारण हल्का तापमान (ग्रीष्मकाल के दौरान सामान्य तापमान से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस कम) था। ग्रीष्मकाल के दौरान लगातार बारिश भी वर्षा ऋतु के फलों के विकास के लिए जिम्मेदार थी । प्रयागराज और कौशाम्बी उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण अमरूद उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। हालांकि 2020 के दौरान, राज्य के अधिकांश भाग में फसल विफल रही, परन्तु इस विश्व प्रसिद्ध अमरूद उत्पादक क्षेत्र में जाड़े की कम फसल एक विचारणीय विषय है। 

प्रयागराज में सर्दियों की फसल की विफलता के कारणों की खोज और अमरूद के उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार के प्रयास के लिए पिछले दिनों एक समिति का गठन किया गया था, जिसमें केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ के निदेशक डॉ. एस. राजन, निदेशक, प्रधान वैज्ञानिक पादप रोग डॉ पी.के. शुक्ल और कीट वैज्ञानिक डॉ. गुंडप्पा शामिल थे। समिति ने सर्दियों के दौरान फसल की विफलता के कारणों को समझने के लिए अमरूद उत्पादकों, उद्यान विभाग के अधिकारियों और कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के साथ बातचीत की। 

समस्या के विश्लेषण के लिए किसानों और अधिकारियों सहित एक केंद्रित समूह चर्चा भी आयोजित की गई। इसके अतिरिक्त, प्रयागराज और कौशाम्बी के गहन अमरूद उत्पादक क्षेत्रों में विभिन्न बागों का अध्ययन किया गया। चर्चाओं और बागों के भ्रमण के आधार पर, सर्दियों के दौरान फलों की काम उत्पादकता के लिए अधिक वर्षा को जिम्मेदार माना गया। बरसात के मौसम की अधिकता के कारण सर्दियों की फसल के उत्पादन के लिए फूल नहीं आये क्योंकि बारिश के मौसम की फसल अधिक होने के कारण नए कल्ले नहीं निकले। किसानों ने बताया कि सर्दियों की फसल पिवर्ष की फसल का लगभग 20 प्रतिशत थी। वर्षा ऋतु की फसल का अधिक मात्रा में होने का एक अन्य कारण हल्का तापमान (ग्रीष्मकाल के दौरान सामान्य तापमान से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस कम) था। 

ग्रीष्मकाल के दौरान लगातार बारिश भी वर्षा ऋतु के फलों के विकास के लिए जिम्मेदार थी जो अप्रैल-जून फूल से विकसित हुए थे। मृदा में पानी की कमी और उच्च तापमान, बरसात के मौसम की फसल को समाप्त करने का प्राकृतिक तरीका है। गर्मी में मिट्टी में कम नमी के कारण फूल और छोटे फल गिर जाते हैं। इस वर्ष गर्मी में नियमित वर्षा और सामान्य से कम तापमान के कारण उक्त परिस्थिति उत्पन्न नहीं हुई। परिणाम स्वरूप बरसात की फसल की फलत अधिक रही और जुलाई से सितंबर तक फूल निकलने नहीं पाये और यह स्थिति सर्दियों की कम फसल के लिए जिम्मेदार थी। नियमित बारिश के कारण फलों की मक्खी का प्रकोप अधिक था और फल इस कीट द्वारा बड़ी मात्रा में संक्रमित हुए जिससे यह उपयोग के लिए अयोग्य थे।  

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