‘वर्षा सिंचित खेती की संभावनाएं बढ़ाने से 7-8% पर पहुंच सकती है कृषि वृद्धि दर’

Edited By jyoti choudhary,Updated: 17 Feb, 2019 12:37 PM

increasing the possibility of rain fed farming can reach 7 8 of the

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि देश में किसानों की आय विशेषकर छोटे कृषकों की आय बढ़ाने के लिए वर्षा निर्भर खेती में विविधता लाने और उपज के विपणन की समुचित व्यवस्था करना जरूरी है।

नई दिल्लीः कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि देश में किसानों की आय विशेषकर छोटे कृषकों की आय बढ़ाने के लिए वर्षा निर्भर खेती में विविधता लाने और उपज के विपणन की समुचित व्यवस्था करना जरूरी है। राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) डॉ अशोक दलवई ने दावा किया कि वर्षा सिंचित क्षेत्र की संभावनाओं को बढ़ाकर कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर को सात से आठ प्रतिशत किया जा सकता है। यह अभी तीन से चार प्रतिशत है।  

दलवई किसानों की आय को दोगुना करने से संबंधित समिति के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा कि देश में 65 प्रतिशत छोटा किसान है जो खेती के लिए वर्षा जल पर निर्भर हैं। ऐसे किसानों के लिए फसल के विपणन की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें अपनी उपज को औने पौने दाम पर बेचना पड़ता है। उन्होंने कहा कि सरकार का ध्यान केवल बड़ी फसलों और बड़े किसानों पर उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने और उन्हें बैंकों से सस्ता कर्ज उपलब्ध कराने पर ही होता है लेकिन जब तक छोटे किसानों के लिए खेती में विविधता तथा उनकी उपज के विपणन की समुचित व्यवस्था नहीं होगी, खेती करने वालों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘हरित क्रांति के दौर के बाद पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में भी उत्पादन में अब ठहराव की स्थिति आ गई है। इन जगहों के किसान चावल और गेहूं जैसी दो फसलों ही पर विशेष ध्यान देते हैं।’’ उन्होंने कहा कि वर्षा सिंचित क्षेत्र में फसलों के विविधीकरण की असीम संभावनाएं छुपी हैं। दलवई ने कहा कि इन क्षेत्रों में पहले से ही जैव विविधता मौजूद है और किसान रागी, ज्वार, बाजरा, मक्का और मोटे अनाज जैसे अन्य पोषक अनाज पैदा कर रहे हैं। दूसरी तरफ पंजाब और हरियाणा जैसी हरित क्रांति के गढ़ में किसान दो मुख्य फसल (गेहूं और चावल) ले रहे हैं। इन जगहों पर भारी मात्रा में उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण मिट्टी के सूक्ष्म जीव जन्तु खत्म हो रहे हैं जो मृदा को बंजर बना रहे हैं। इस भूमि को फिर उपजाऊ करना बेहद जरूरी है और यह वर्षा सिंचित क्षेत्र में होने वाली खेती के तौर तरीकों से ही संभव है।     

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