72% भारतीयों ने माना मोदी राज में महंगाई बढ़ी, आमदनी घटी

Edited By vasudha,Updated: 31 Jan, 2020 11:27 AM

inflation increase under the rule of modi government

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में रोजमर्रा की वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के कारण आम जनता में बेचैनी बढ़ रही है। केन्द्रीय बजट से पहले किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है...

बिजनेस डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में रोजमर्रा की वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के कारण आम जनता में बेचैनी बढ़ रही है। केन्द्रीय बजट से पहले किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। आई.ए.एन.एस.-सी.वी.ओटर सर्वेक्षण में लगभग 72 प्रतिशत भारतीयों ने माना कि मोदी राज में महंगाई बढ़ी और लगभग 40 प्रतिशत ने कहा कि बढ़ती महंगाई का उनके जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मोदी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सब्जियों की कीमतों में तेज वृद्धि के बाद से पहले से ही निशाने पर बना हुआ है। खासकर प्याज की बढ़ी कीमतों ने देश भर के घरों का गणित खराब कर दिया है। 

 

दिसम्बर माह में खुदरा महंगाई दर 7.35 प्रतिशत रही, जो 5 साल में सबसे अधिक थी। यह जुलाई 2016 के बाद पहली बार है जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी.पी.आई.) मुद्रास्फीति सरकार द्वारा रिजर्व बैंक ऑफ  इंडिया (आर.बी.आई.) के लिए निर्धारित 2 से 6 प्रतिशत मुद्रास्फीति बैंड सैट से अधिक हो गई। अपेक्षित मुद्रास्फीति से अधिक होने पर केन्द्रीय बैंक सतर्क हो जाता है हालांकि आर.बी.आई. अगली पॉलिसी बैठक में ब्याज दर में वृद्धि नहीं भी कर सकता है लेकिन दर में कटौती जो आदर्श रूप से लगातार धीमी होती अर्थव्यवस्था की पृष्ठभूमि में आनी चाहिए, वह भी अब संभव नहीं लगती है। इसके अलावा थोक महंगाई में डब्ल्यू.पी.आई. के आंकड़ों में भी तेजी देखी गई। नवम्बर में जहां यह 0.58 प्रतिशत थी, वहीं यह उछलकर दिसंबर में 2.59 प्रतिशत हो गई। कांग्रेस ने पहले कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की इस हालत के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है।

 

66% लोगों के लिए घर का खर्चा चलाना हुआ मुश्किल
सर्वे में एक और चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। आम आदमी पर महंगाई और आॢथक मंदी की दोहरी मार पड़ रही है। हालत यह है लगभग 66 प्रतिशत लोगों को अपने घर का खर्च चलाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि वेतन या तो जस का तस है या फिर यह घट रहा है लेकिन महंगाई दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है, जिसका असर उनके खर्चों पर दिख रहा है। बजट पूर्व किए गए इस सर्वेक्षण में आॢथक पहलुओं पर मौजूदा समय की वास्तविकता और संकेत उभरकर सामने आए हैं क्योंकि वेतन में वृद्धि हो नहीं रही, जबकि खाद्य पदार्थों सहित आवश्यक वस्तुओं की कीमतें पिछले कुछ महीनों में बढ़ी हैं।

 

यूपीए सरकार में भी लोग थे खर्च प्रबंधन करने में असमर्थ
पिछले साल जारी की गई बेरोजगारी दर का आंकड़ा 45 सालों की ऊंचाई पर है। दिलचस्प बात यह है कि 2014 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) सरकार के समय पर भी लगभग 65.9 प्रतिशत लोगों ने माना था कि वे अपने खर्चों का प्रबंधन करने में असमर्थ हैं। हालांकि 2015 की अपेक्षा लोगों का मूड अभी नरम है। साल 2015 में लगभग 46.1 प्रतिशत लोगों ने महसूस किया था कि वे अपने दैनिक खर्चों का प्रबंधन करने में दबाव महसूस कर रहे हैं। ङ्क्षचताजनक बात यह है कि चालू वर्ष के लिए लोगों के नकारात्मक दृष्टिकोण में काफी वृद्धि देखी जा रही है। 

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