Edited By jyoti choudhary,Updated: 04 Sep, 2018 12:23 PM
भारत चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता तो है ही लेकिन अब वह ब्राजील को पीछे छोड़कर सबसे बड़ा उत्पादक भी बनने जा रहा है। हालांकि यह इस उद्योग के लिए परेशानी का सबब बनेगा और यह एक अत्यधिक नियंत्रित क्षेत्र की समस्याओं को उजागर करता है।
नई दिल्लीः भारत चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता तो है ही लेकिन अब वह ब्राजील को पीछे छोड़कर सबसे बड़ा उत्पादक भी बनने जा रहा है। हालांकि यह इस उद्योग के लिए परेशानी का सबब बनेगा और यह एक अत्यधिक नियंत्रित क्षेत्र की समस्याओं को उजागर करता है। चीनी उद्योग का कच्चे माल की कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं है और सरकार चीनी की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर कदम उठाती रहती है। भारत ऐसे समय चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक बनेगा, जब वैश्विक स्तर पर बड़ी मात्रा में सरप्लस के कारण ब्राजील गन्ने का इस्तेमाल एथेनॉल उत्पादन में करने लगा है। दूसरी ओर भारत अपने वर्तमान स्टॉक का ठीक से प्रबंधन नहीं कर पा रहा है, जबकि आगे भी रिकॉर्ड उत्पादन के आसार नजर आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में सात चीनी मिलों की मालिक त्रिवेणी इंजीनियरिंग ऐंड इडस्ट्रीज के वाइस चेयरमैन और प्रबंध निदेशक तरुण साहनी ने कहा, 'देश के सबसे बड़ा चीनी उत्पादक बनने से भारतीय चीनी उद्योग को अब तक के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजरना पड़ेगा। जितने सरप्लस का अनुमान है, उससे मिलों को बड़ी मात्रा में नुकसान हो सकता है।'
ब्राजील में चीनी उद्योग काफी हद तक नियंत्रण मुक्त है। वहां चीनी सीजन 2018-19 में करीब 310 लाख टन चीनी उत्पादित होने का अनुमान है, जो पिछले साल की तुलना में करीब 22 फीसदी कम है। दूसरी ओर भारत में चीनी सीजन (अक्टूबर से सितंबर) 2018-19 में 355 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है, जिससे 2017-18 में 320 लाख टन का रिकॉर्ड टूट जाएगा। देश में सालाना घरेलू खपत करीब 250 लाख टन है। इससे 100 लाख टन चीनी सरप्लस बच जाएगी। जब चालू चीनी वर्ष सितंबर में खत्म होगा, तब उद्योग के पास पहले ही 100 लाख टन चीनी अतिरिक्त होगी। अगर उद्योग ने कुछ लाख टन चीनी का निर्यात नहीं किया तो सितंबर 2019 तक कुल सरप्लस 200 लाख टन से अधिक हो जाएगा। देश में कभी इतना बड़ा सरप्लस नहीं रहा।