Edited By jyoti choudhary,Updated: 04 Feb, 2019 12:16 PM
तमाम उतार-चढ़ावों के बाद एचएसबीसी जेनेवा के इंडियन क्लाइंट्स के स्विस अकाउंट्स का किस्सा आखिरी दौर में पहुंचता दिख रहा है। पिछले हफ्ते से स्विस फेडरल टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन ने इन कस्टमर्स को लेटर भेजने शुरू किए हैं।
मुंबईः तमाम उतार-चढ़ावों के बाद एचएसबीसी जेनेवा के इंडियन क्लाइंट्स के स्विस अकाउंट्स का किस्सा आखिरी दौर में पहुंचता दिख रहा है। पिछले हफ्ते से स्विस फेडरल टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन ने इन कस्टमर्स को लेटर भेजने शुरू किए हैं। इनमें भारतीय अधिकारियों को अकाउंट्स की जानकारी देने से पहले क्लाइंट्स से इस बात की सहमति मांगी जा रही है। स्विट्जरलैंड के कानून में सहमति लेने का रिवाज है।
एक सूत्र ने बताया कि कम से कम चार लोगों को स्विस एफटीए का लेटर मिला है। इनमें एक हीरा कारोबारी, एक होलसेल ट्रेडर और मझोले आकार की मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को संभाल रहे लोग शामिल हैं। इन लोगों को दस दिनों में जवाब देना है।
सहमति दें या ना दें
विदेशी खातों से जुड़े मामलों में एक शख्स ने कहा, 'देर-सबेर जानकारी भारत आएगी ही। अगर वे रजामंदी देंगे तो यह स्विस खातों में बेहिसाबी रकम रखने के अपराध की स्वीकारोक्ति होगी। अगर वे रजामंदी न दें तो उनके लिए बचाव की रणनीति बनाना मुश्किल होगा क्योंकि उन्हें पता नहीं होगा कि किस तरह की जानकारी भारत से साझा की गई।'
सहमति दे दिए जाने पर डेटा तुरंत ही इंडिया के टैक्स डिपार्टमेंट और कस्टमर को भी दे दिया जाएगा। हालांकि रजामंदी न देने वाले कस्टमर्स से जुड़ी जानकारी भी एक समय के बाद स्विस ऑफिशल गजट में दर्ज होने के बाद साझा कर दी जाएगी।
बच जाएंगे ये लोग
जिन भारतीयों ने पहली अप्रैल 2011 से पहले अपने अकाउंट्स को बंद कर दिया होगा, वे ताजा कदम के दायरे में आने से बच सकते हैं। सूत्र ने बताया, 'स्विट्जरलैंड और भारत के बीच सूचना साझेदारी का करार लागू होने की तारीख से पहले जो अकाउंट्स बंद हो गए होंगे, उनकी जानकारी कोई भी स्विस बैंक नहीं देगा।'