Edited By jyoti choudhary,Updated: 15 Nov, 2019 02:34 PM
भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री मौजूदा वक्त में संकट से गुजर रही है। मोबाइल टेलीकॉम सर्विस प्रदाता कंपनियां सरकार की नीतियों और विभिन्न चार्ज को इसके लिए जिम्मेदार मानती हैं। यही वजह है कि बीते कुछ सालों में देश का टेलीकॉम सेक्टर काफी सिकुड़ गया है और...
बिजनेस डेस्कः भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री मौजूदा वक्त में संकट से गुजर रही है। मोबाइल टेलीकॉम सर्विस प्रदाता कंपनियां सरकार की नीतियों और विभिन्न चार्ज को इसके लिए जिम्मेदार मानती हैं। यही वजह है कि बीते कुछ सालों में देश का टेलीकॉम सेक्टर काफी सिकुड़ गया है और मौजूदा वक्त में इसमें 4 अहम कंपनियां रिलायंस जियो, वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल और बीएसएनल/एमटीएनएल ही शामिल हैं। गौरतलब है कि देश के टेलीकॉम सेक्टर की कंपनियों पर कुल 1.3 लाख करोड़ रुपए का बकाया है, जिसमें लाइसेंस फीस, स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज, जुर्माना और ब्याज की रकम शामिल है।
बीते 4 सालों में टेलीकॉम सेक्टर से अनिल अंबानी की रिलायंस कम्यूनिकेशंस, टाटा टेलीसर्विसेज, एयरसेल, टेलीनोर, सिस्टेमा और वीडियोकोन जैसी कंपनियां गायब हो गई हैं। इनमें से कई कंपनियां दिवालिया हो गई हैं, तो वहीं कुछ कंपनियों का बड़ी कंपनी में मिश्रण हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लगा झटका
बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए Adjusted Gross Revenue (AGR) में नॉन-कोर आइटम को भी शामिल करने की मंजूरी दी थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भारती एयरटेल को सरकार को 41,000 करोड़, वोडाफोन-आइडिया को 39,000 करोड़ रुपए बकाए के रुप में सरकार को देने होंगे। ऐसे में पहले ही घाटे से गुजर रहीं इन कंपनियों को कोर्ट के ताजा फैसले से बड़ा झटका लगा है।
रिलायंस जियो के आने से कड़ी हुई प्रतिस्पर्धा
साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने 122 मोबाइल लाइसेंस कैंसिल कर दिए थे। वहीं साल 2016 में रिलायंस जियो की टेलीकॉम सेक्टर में एंट्री भी देश की टेलीकॉम इंडस्ट्री के विघटन का कारण बनी। मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस जियो ने देश में डाटा बेस्ड डिजिटल इकोसिस्टम के निर्माण में 3.5 लाख करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि खर्च है। ऐसे में इस सेक्टर के छोटे प्लेयर्स के लिए काफी मुश्किल पैदा हो गई है। आज रिलायंस जियो देश के टेलीकॉम सेक्टर की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है, जिसके सब्सक्राइबर्स की संख्या 350 मिलियन को पार कर चुकी है। पहले नंबर पर वोडाफोन-आइडिया का कब्जा है।
BSNL/MTNL को उबारने की कोशिशें जारी
हाल ही में सरकार ने घाटे में चल रहीं बीएसएनएल/एमटीएनएल को उबारने के लिए दोनों कंपनियों को एक करने, कई कर्मचारियों को वीआरएस देने और कंपनी की संपत्तियों के मुद्रीकरण का फैसला लिया गया है। सार्वजनिक कंपनी को अगले दो साल में घाटे से उबारने और फायदे में ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। कंपनी की सेवाओं को बेहतर और प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सरकार करीब 70 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश कर रही है।
वोडाफोन-आइडिया ने वोडाफोन और आइडिया को एक करके अपने आप को प्रतिस्पर्धा में बनाए रखा है। हालांकि भारी कर्ज के बोझ और बढ़ते घाटे ने कंपनी की मुश्किलें काफी बढ़ा दी हैं। इसी तरह एयरटेल भी अपने बढ़ते घाटे से परेशान है। सितंबर माह की तिमाही में एयरटेल को 23 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा हुआ है।