Edited By jyoti choudhary,Updated: 03 Jun, 2019 10:54 AM
वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्ती के बीच अब 2 दिन पहले भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बुरी खबर आ चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एन.डी.ए. सरकार के दोबारा सत्ता में आने के तुरंत बाद आर्थिक मोर्चे पर बीते 5 सालों में सबसे बड़ी चुनौती...
नई दिल्लीः वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्ती के बीच अब 2 दिन पहले भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बुरी खबर आ चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एन.डी.ए. सरकार के दोबारा सत्ता में आने के तुरंत बाद आर्थिक मोर्चे पर बीते 5 सालों में सबसे बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था ने भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। गत शुक्रवार को सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 की पहली तिमाही में भारत की आर्थिक ग्रोथ बीते 5 सालों के न्यूनतम स्तर पर फिसलते हुए 5.8 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई है।
नहीं कम हो रही उधार लेने की लागत
इस साल केंद्रीय बैंक ने लगातार 2 बैठकों में ब्याज दरों में कटौती की थी लेकिन इसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में उधार लेने की लागत कम नहीं हो रही है। हालिया महीनों में बाजार को तरलता की कमी से जूझना पड़ा है। बाजार में तरलता की कमी के 2 प्रमुख कारण रहे हैं। पिछले साल सितम्बर में आई.एल.-एफ.एस. डिफाल्ट सामने आना पहला कारण रहा। वहीं दूसरा कारण लोकसभा चुनाव के चलते नकदी की बढ़ती मांग रही है। तरलता की कमी के चलते अर्थव्यवस्था में निवेश के साथ-साथ खपत में भी कमी आई है। इन सब कारणों के बाद अब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए केंद्रीय बैंक पर दबाव बढ़ गया है।
‘उदार’ करना होगा अर्थव्यवस्था का नजरिया
केंद्रीय बैंक को अब केवल ब्याज दरों में कटौती ही नहीं करनी होगी बल्कि अर्थव्यवस्था का नजरिया भी ‘उदार’ करना होगा। साथ ही केंद्रीय बैंक को वित्तीय सिस्टम में तरलता को बढ़ाने के लिए भी कदम उठाने होंगे। बजट घाटे में लगातार बढ़ौतरी के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एन.डी.ए. सरकार को आर.बी.आई. से बड़ी उम्मीद होगी। मुद्रास्फीति मध्यम अवधि में 4 फीसदी से कम रही है। ऐसे में केंद्रीय बैंक के पास कुछ अहम फैसले लेने का मौका है। हालांकि, बीते कुछ समय में आर.बी.आई. ने ओपन बॉन्ड पर्चेज, फॉरेन एक्सचेंज के जरिए बाजार में नकदी बढ़ाने का प्रयास भी किया है लेकिन इन सबके बावजूद वित्तीय माहौल में कोई सुधार देखने को नहीं मिला है।